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मौसम की भविष्यवाणी : संख्याओं का खेल

  • 03 Oct 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?
वर्ष 2017 के लिये भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department) द्वारा की गई मानसून की भविष्यवाणी के गलत साबित होते ही इसके प्रतिरूपण के विषय में चर्चा आरंभ हो गई है। ध्यातव्य है कि अप्रैल में आई.एम.डी. द्वारा मानसून के दौरान "सामान्य के करीब" या 96% बारिश होने की भविष्यवाणी की गई थी। हालाँकि इसके कुछ महीनों बाद इसमें परिवर्तन करते हुए 98% बारिश होने की संभावना व्यक्त की गई।

मुद्दा क्या है?

  • इन आँकड़ों के अनुसार, तकरीबन 89 सेंटीमीटर के अनुपात में बारिश (मानसूनी वर्षा का 50 वर्ष का औसत) होनी चाहिये थी। हालाँकि, मानसून के अंत में देश में "सामान्य से नीचे" बारिश हुई (जो कि 50 वर्ष की लंबी अवधि के औसत से 96% कम है)। 
  • इसी प्रकार पिछले साल की तुलना में फसल की बुवाई के समय थोड़ा कम वर्षा होने की संभावना व्यक्त की गई थी है, लेकिन इसमें रिकार्ड स्तर पर वृद्धि दर्ज़ की गई है। हालाँकि अधिकतर ज़िलों में कम बारिश दर्ज़ की गई। 
  • उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों से वर्षा की कमी और खाद्य उत्पादन के मध्य संतुलन स्थापित करने में देश की सूखा प्रबंधन व्यवस्था काफी कमज़ोर पड़ी है। परंतु, आई.एम.डी. द्वारा मानसून के दौरान होने वाली बारिश की भविष्यवाणी के संबंध में निरंतर अर्थहीन अभ्यास जारी हैं।

वास्तविक स्थिति 

  • हालाँकि, सूखा या कमज़ोर बारिश के बारे में चेतावनी देने के कार्य में कठोरता लाने संबंधी उपायों के प्रतिरूपण के विषय में पहले भी विचार किया गया। इन सबके इतर मौसम की भविष्यवाणी अब केवल सांख्यिकीय आकलन मार्जिन और किलिष्ट परिभाषाओं में व्यक्त संख्याओं एवं आँकड़ों का अभ्यास मात्र रह गई है, ताकि जब भी मौसम के संबंध में कोई गलत पूर्वानुमान व्यक्त हो तो उसके लिये इस व्यवस्था को दोषी ठहराया जा सके। 
  • जबकि मौसम की भविष्यवाणी के संदर्भ में 96% या 95%, मात्र एक संख्या का अंतर भी बारिश के स्तर में’ "अधिकता’" या "सामान्य से कम" होने का अनुमान व्यक्त करती है, तथापि इस संबंध में आई.एम.डी. कभी अपनी त्रुटि स्वीकार नहीं करता है। 
  • इस प्रकार 98% बारिश के पूर्वानुमान का अर्थ होता है 94% से 102% तक की सीमा में बारिश होने की संभावना, यानि बारिश सामान्य से अधिक भी हो सकती है और सामान्य से कम भी हो सकती है।

इसका परिणाम क्या हुआ?

  • भारतीय मानसून की भौगोलिक और मात्रात्मक रूप से भिन्न स्थिति को ध्यान में रखते हुए मात्र संख्याओं पर ध्यान केंद्रित करने का नतीजा यह हुआ है कि नीति निर्माताओं से लेकर स्टॉक मार्केट तक हर किसी को “सामान्य मानसून” की भविष्यवाणी ने भ्रमित करने का काम किया। 
  • वस्तुतः इन संख्याओं के कारण हर किसी को ऐसा अनुमान था कि संभवतः इस वर्ष अच्छी बारिश होगी। यही कारण है कि चाहे वह मुंबई, असम और बिहार की बाढ़ हो या फिर कर्नाटक और विदर्भ में भयावह सूखे की स्थिति हो, सभी को एक ही छतरी के नीचे रख कर इनके संबंध में व्यवस्था की गई।

समस्या एवं समाधान

  • उल्लेखनीय है कि एक बहुत लंबे अरसे से भारतीय मानसून सुसंगत रूप से लगभग 89 सेमी. के आसपास (कभी इसमें 10% की कमी दर्ज़ की गई तो कमी) ही रहा है।
  • इसके अंतर्गत चुनौती मुख्यतः अंतर-मौसमी बदलाव अथवा वैश्विक मौसम (जैसे कि तूफान या चक्रवात) में अचानक परिवर्तन होने संबंधी भविष्यवाणी करने में निहित है, क्योंकि इस प्रकार की मौसमी स्थिति कुछ विशिष्ट ज़िलों को बुरी तरह से प्रभावित करने की क्षमता रखती है।
  • यही कारण है कि यह मात्र चार महीने का मौसमी पूर्वानुमान बहुत अधिक प्रभावी साबित नहीं हो पाता है। विशेषकर उस स्थिति में जब अधिक से अधिक किसान न केवल फसल बीमा को अपना रहे हैं बल्कि फसल की बुवाई एवं कटाई हेतु बेहतर मौसमी स्थितियों के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करने के लिये निरंतर मौसम की भविष्यवाणी पर निर्भर हैं।
  • उल्लेखनीय है कि ज़िला स्तर पर मौसम परिवर्तन संबंधी चेतावनी हेतु आई.एम.डी. तेज़ी से सुपर कंप्यूटर और अधिक परिष्कृत मॉडल पर निर्भर हो रहा है। इन स्थानीयकृत अनुमानों का उद्देश्य मौसम संबंधी चेतावनी देना है। 
  • इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये अनुमान संख्यात्मक जाल के विपरीत कहीं अधिक सफल है। स्पष्ट रूप से आई.एम.डी. को इस व्यवस्था के संबंध में विचार करना चाहिये, ताकि भविष्य में गलत मौसमी भविष्यवाणी से अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।
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