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सामाजिक न्याय

किशोर न्याय संशोधन विधेयक, 2021

  • 26 Mar 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 [Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Amendment Bill, 2021] पारित किया गया है जो बच्चों की सुरक्षा और उन्हें गोद लेने के प्रावधानों को मज़बूत करने और कारगर बनाने का प्रयास करता है।

  • यह विधेयक किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 [Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015) में संशोधन करता है। इस विधेयक में उन बच्चों से संबंधित प्रावधान हैं जिन्होंने कानूनन कोई अपराध किया हो और जिन्हें देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता हो। विधेयक में बाल संरक्षण को मज़बूती प्रदान करने के उपाय किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

संशोधन की आवश्यकता:

  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights- NCPCR) द्वारा वर्ष 2020 में बाल देखभाल संस्थानों (Child Care Institutions- CCIs) का ऑडिट किया गया जिसमें पाया गया कि वर्ष 2015 के संशोधन के बाद भी 90% बाल देखभाल संस्थानों का संचालन  NGOs द्वारा किया जा रहा है  तथा 39% CCI पंजीकृत नहीं थे।
  • ऑडिट में पाया गया कि लड़कियों हेतु CCI की संख्या 20% से भी कम है जिनमें , 26% बाल कल्याण अधिकारियों की अनुपस्थित है तथा कुछ राज्यों में लड़कियों हेतु CCI स्थापित ही नहीं किये गए हैं। 
    • इसके अलावा ⅗ में शौचालय, 1/10 में पीने का पानी तथा 15% में अलग बिस्तर और डाइट प्लान (Diet Plans) का अभाव पाया गया।  
  • कुछ बाल देखभाल संस्थानों का प्राथमिक लक्ष्य बच्चों का पुनर्वास न होकर धन प्राप्त करना है क्योंकि इस प्रकार के संस्थानों में बच्चों को अनुदान प्राप्त करने हेतु रखा जाता है।

प्रस्तावित विधेयक में प्रमुख संशोधन: 

  • गंभीर अपराध: गंभीर अपराधों में वे अपराध भी शामिल होंगे जिनके लिये सात वर्ष से अधिक के कारावास का प्रावधान है तथा न्यूनतम सज़ा निर्धारित नहीं की गई है ।
    • गंभीर अपराध वे हैं जिनके लिये भारतीय दंड संहिता या किसी अन्य कानून के तहत सज़ा तथा तीन से सात वर्ष के कारावास का प्रावधान है।
    • किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) उस बच्चे की छानबीन करेगा  जिस पर गंभीर अपराध का आरोप है।
  • गैर-संज्ञेय अपराध: 
    • एक्ट में प्रावधान है कि जिस अपराध के लिये तीन से सात वर्ष की जेल की सज़ा हो, वह संज्ञेय (जिसमें वॉरंट के बिना गिरफ्तारी की अनुमति होती है) और गैर जमानती होगा।
      • विधेयक इसमें संशोधन करता है और प्रावधान करता है कि ऐसे अपराध गैर संज्ञेय होंगे।
  • गोद लेना/एडॉप्शन: एक्ट में भारत और किसी दूसरे देश के संभावित दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता द्वारा बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया निर्दिष्ट की गई है। संभावित दत्तक माता-पिता द्वारा बच्चे को स्वीकार करने के बाद एडॉप्शन एजेंसी सिविल अदालत में एडॉप्शन के आदेश प्राप्त करने के लिये आवेदन करती है। अदालत के आदेश से यह स्थापित होता है कि बच्चा एडॉप्टिव माता-पिता का है। बिल में प्रावधान किया गया है कि अदालत के स्थान पर ज़िला मजिस्ट्रेट (अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट सहित) एडॉप्शन का आदेश जारी करेगा।
  • अपील: विधेयक में प्रावधान किया गया है कि ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित गोद लेने/एडॉप्शन के आदेश से असंतुष्ट कोई भी व्यक्ति इस तरह के आदेश के पारित होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर संभागीय आयुक्त के समक्ष अपील दायर कर सकता है। 
    • इस प्रकार की अपीलों को दायर करने की तारीख से चार सप्ताह के भीतर निपटाया जाना चाहिये।
  • ज़िला मजिस्ट्रेट के अतिरिक्त कार्यों में शामिल हैं: (i) ज़िला बाल संरक्षण इकाई की निगरानी करना  (ii) बाल कल्याण समिति के कामकाज की त्रैमासिक समीक्षा करना।
  • अधिकृत न्यायालय:  इस विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि पहले के अधिनियम के तहत सभी अपराधों को बाल न्यायालय के अंतर्गत शामिल किया जाए।
  • बाल कल्याण समितियांँ (CWCs): इस अधिनियम में प्रावधान है कि कोई व्यक्ति CWCs का सदस्य बनने के योग्य नहीं होगा यदि:
    • उसका मानव अधिकारों या बाल अधिकारों के उल्लंघन का कोई रिकॉर्ड हो। 
    • अगर उसे नैतिक अधमता (भ्रष्टता) से जुड़े अपराध हेतु दोषी ठहराया गया हो और उस आरोप को पलटा न गया हो।
    • उसे केंद्र सरकार या राज्य सरकार या सरकार के स्वामित्व वाले किसी उपक्रम से हटाया अथवा बर्खास्त किया गया हो। 
    • वह ज़िले के बाल देखभाल संस्थान में प्रबंधन का एक हिस्सा हो।  
  • सदस्यों को हटाना: समिति के किसी भी सदस्य को राज्य सरकार की जांँच के बाद हटा दिया जाएगा यदि वह बिना किसी वैध कारण के तीन महीने तक लगातार CWCs की कार्यवाही में भाग नहीं लेता है या यदि एक वर्ष के भीतर संपन्न बैठकों में उसकी उपस्थिति तीन-चौथाई से कम रहती है ।

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 

  • यह अधिनियम किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 का स्थान लेता है।
  • शब्दावली में परिवर्तन:
    • इस अधिनियम में पूर्ववर्ती अधिनियम की शब्दावली में परिवर्तन करते हुए ‘किशोर’ शब्द को ‘बालक’ अथवा ‘ कानून से संघर्षरत बालक’ के साथ परिवर्तित कर दिया गया है। इसके अलावा ‘किशोर’ शब्द से जुड़े नकारात्मक अर्थ को भी समाप्त कर दिया गया है।
    • इसमें कई नई और स्पष्ट परिभाषाएँ भी शामिल हैं जैसे- अनाथ, परित्यक्त और आत्मसमर्पण करने वाले बच्चे तथा बच्चों द्वारा किये गए छोटे, गंभीर एवं जघन्य अपराध।
  • 16-18 की आयु वर्ग हेतु विशेष प्रावधान:
    • 16-18 वर्ष की आयु समूह में जघन्य अपराध करने वाले बाल अपराधियों से निपटने हेतु विशेष प्रावधानों को शामिल किया गया है।
  • जस्टिस बोर्ड हेतु अनिवार्य प्रावधान: 
    • यह विधेयक प्रत्येक ज़िले में किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों के गठन का प्रावधान करता है। दोनों (किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समिति) में कम-से-कम एक महिला सदस्य शामिल होनी चाहिये।
  • दत्तक से संबंधित खंड:
    • अनाथ, परित्यक्त और आत्मसमर्पण करने वाले बच्चों हेतु दत्तक/एडॉप्शन प्रक्रियाओं को कारगर बनाने के लिये दत्तक या  प्रक्रियाओं पर एक अलग नया अध्याय को शामिल किया गया है।
    • इसके अलावा केंद्रीय 'केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण' (Central Adoption Resource Authority- CARA) को एक वैधानिक निकाय का दर्जा प्रदान किया गया है ताकि वह अपने कार्य अधिक प्रभावी ढंग से कर सके।
    • अधिनियम में कहा गया है कि बच्चे को गोद लेने का अदालत का आदेश अंतिम होगा। वर्तमान में विभिन्न अदालतों में 629 दत्तक ग्रहण के मामले लंबित हैं।
  • बाल देखभाल संस्थान (CCI):
    • सभी बाल देखभाल संस्थान, चाहे वे राज्य सरकार अथवा स्वैच्छिक या गैर-सरकारी संगठनों द्वारा संचालित हों, अधिनियम के लागू होने की तारीख से 6 महीने के भीतर अधिनियम के तहत अनिवार्य रूप से पंजीकृत होने चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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