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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

उपकक्षीय उड़ान

  • 14 Jul 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

उपकक्षीय उड़ान, सिरीशा बंदला, कारमन रेखा

मेन्स के लिये:

उपकक्षीय उड़ान का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘वर्जिन गेलेक्टिक’ (Virgin Galactic) के ‘वीएसएस यूनिटी स्पेसशिप’ पर छह व्यक्तियों के एक चालक दल ने ‘एज ऑफ स्पेस’ की संक्षिप्त यात्रा की, जिसे उपकक्षीय उड़ान (Suborbital Flight) के रूप में जाना जाता है।

  • भारत में पैदा हुई अंतरिक्ष यात्री ‘सिरीशा बंदला’ (Sirisha Bandla) चालक दल का हिस्सा थीं। वह कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के बाद अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की तीसरी महिला हैं।
  • ‘वर्जिन गेलेक्टिक’ एक ब्रिटिश-अमेरिकी स्पेसफ्लाइट कंपनी है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में कार्यरत है।

प्रमुख बिंदु

  • उपकक्षीय उड़ान/प्रक्षेपवक्र:

    • जब कोई वस्तु लगभग 28,000 किमी./घंटा या अधिक की क्षैतिज गति से यात्रा करती है, तो वह वायुमंडल से ऊपर होते हुए कक्षा में चली जाती है।
      • पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिये उपग्रहों को उस गति सीमा (कक्षीय वेग) तक पहुँचने की आवश्यकता होती है।

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  • ऐसा उपग्रह गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी की ओर गति कर रहा होगा। लेकिन इसकी क्षैतिज गति इतनी तेज़ होती है कि नीचे की गति को लंबवत कर सके ताकि यह एक वृत्ताकार पथ पर ही आगे बढ़े।
  • 28,000 किमी./घंटा से धीमी गति से यात्रा करने वाली किसी भी वस्तु को अंततः पृथ्वी पर वापस लौटना होगा।
  • अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कोई भी वस्तु जब अंतरिक्ष में बने रहने के लिये पर्याप्त क्षैतिज वेग तक पहुँचती है तो वह वापस पृथ्वी पर गिर जाती है। इसलिये वे एक उपकक्षीय प्रक्षेपवक्र में उड़ते हैं।
    • इसका मतलब यह है कि जब ये यान अंतरिक्ष की अनिर्धारित सीमा को पार करेंगे, तो वे इतनी तेज़ी से नहीं जा सकेंगे कि एक बार वहाँ पहुँचने के बाद अंतरिक्ष में रह सकें।
  • उप-कक्षीय उड़ानों का महत्त्व:

    • स्थापित पहुँच :
      • यह उच्च अनुमानित उड़ान दर के कारण नवाचार और प्रयोगात्मक परिवर्तन के लिये तैयार की गई उड़ान की स्थापित पहुँच प्रदान करेगा।
    • अनुसंधान:
      • सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण अनुसंधान के लिये उपकक्षीय उड़ानें सहायक होंगी। सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण या माइक्रोग्रैविटी वह स्थिति है जिसमें लोग या वस्तु भारहीन प्रतीत होते हैं।
      • उप-कक्षीय उड़ानें भी हवाई जहाज़ो में परवलयिक उड़ानों का एक विकल्प हो सकती हैं, वर्तमान में जिसे अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा ​​शून्य गुरुत्वाकर्षण का अनुकरण करने के लिये उपयोग किया जाता है।
        • शून्य गुरुत्वाकर्षण या शून्य-जी को केवल भारहीनता की अवस्था या परिस्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
    • प्रभावी लागत:
  • अंतरिक्ष का क्षोर/कारमन रेखा:

    • अंतरिक्ष की सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत सीमा को कारमन रेखा (Karman Line) के रूप में जाना जाता है। इंटरनेशनल एयरोनॉटिकल फेडरेशन (FAI) द्वारा समुद्र तल से पृथ्वी के औसतन 100 कि.मी. की ऊँचाई पर एक काल्पनिक रेखा को कारमन रेखा के रूप में परिभाषित करता है।
      • FAI आकाशीय क्षेत्रों के लिये विश्व शासी निकाय है तथा मानव अंतरिक्षयान के संबंध में परिभाषाओं का भी संचालन करता है।

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    • कारमन रेखा की तुलना अंतर्राष्ट्रीय जल से की गई है क्योंकि इस रेखा से दूर-दूर तक कोई राष्ट्रीय सीमाएँ एवं मानवीय कानून लागू नहीं हैं।
    • इसका नाम हंगेरियन अमेरिकी इंजीनियर और भौतिक विज्ञानी थिओडोर वॉन कारमन (Theodore von Karman,1881-1963) के नाम पर रखा गया है, जो मुख्य रूप से वैमानिकी एवं अंतरिक्ष विज्ञान में सक्रिय थे।
    • वह ऊँचाई की गणना करने वाले प्रथम व्यक्ति थे, वैमानिकी उड़ान के ज़रिये उन्होंने स्वयं 83.6 किमी. की दूरी तय की तथा इस बात का समर्थन किया कि ऊँचाई पर वातावरण बहुत क्षीण/दुर्बल हो जाता है ।
    • हालाँकि अन्य संगठन इस परिभाषा को नहीं अपनाते हैं। अंतरिक्ष के क्षोर को परिभाषित करने वाला कोई अंतर्राष्ट्रीय कानून नहीं है, इसलिये राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र की यह एक सीमा है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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