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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

राज्य स्वामित्व वाली इकाइयों को विदेशी ऋण की अनुमति

  • 21 Apr 2017
  • 5 min read

संदर्भ
हाल ही में कैबिनेट ने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जिसके तहत राज्य सरकारों के स्वामित्व वाली ऐसी इकाइयाँ, जिनका सालाना राजस्व 1000 करोड़ रुपए से अधिक हो और जो 5000 करोड़ रुपए से अधिक की परियोजनाओं पर कार्य कर रही हों, अब विदेशी ऋण प्राप्त कर सकती हैं। 

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • अब, राज्य सरकार की  योग्य इकाइयाँ (जो इसके लिये निर्धारित उपरोक्त शर्तों को पूरा करती हों) अंतर्राष्ट्रीय द्विपक्षीय वित्तीयन एजेंसियों अथवा द्विपक्षीय ‘आधिकारिक विकास सहायता’ (Officia। Deve।opmenta। Assistance- ODA) सहभागियों से प्रत्यक्ष रूप से ऋण प्राप्त कर सकती हैं। 
  • वित्तीयन एजेंसियाँ इन इकाइयों को यह ऋण केंद्र सरकार की गारंटी पर प्रदान करेंगी, लेकिन ऋण और ब्याज की देनदारी प्रत्यक्ष रूप से संबंधित इकाई की होगी।
  • हालाँकि, किसी इकाई द्वारा लिये गए ऋण की प्राथमिक गारंटी संबंधित राज्य सरकार की होगी, लेकिन भारत सरकार उस ऋण के लिये उधारदाता को काउंटर गारंटी प्रदान करेगी।
  • उदहारण के तौर पर, 18000 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत वाले मुंबई ट्रांस-हार्बर लिंक प्रोजेक्ट में लगभग 15000 करोड़ रुपए  तो ‘जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी’ (जे.आई.सी.ए.) द्वारा लगाए जाने हैं।
  • अगर वर्तमान स्थिति के आलोक में देखें तो इस लागत के चलते महाराष्ट्र का विकास व्यय काफी कम हो जाएगा क्योंकि एफ.आर.बी.एम. के तहत निर्धारित उधार की सीमा तो पूरी हो चुकी होगी।

वर्तमान स्थिति 

  • वर्तमान में जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी सरीखी द्विपक्षीय वित्तीयन एजेंसियाँ केवल राज्य सरकारों और केंद्रीय क्षेत्र के सार्वजनिक उद्यमों को ऋण प्रदान करती हैं, राज्य सरकार के उद्यमों को नहीं। 
  • अगर राज्य के किसी उद्यम को अपनी किसी परियोजना के लिये वित्त की आवश्यकता है तो इसके लिये उसे राज्य सरकार से संपर्क करना होता है और राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराया गया इस तरह का वित्त एफ.आर.बी.एम. अधिनियम के तहत निर्धारित राज्य सरकार की उधार लेने की सीमा के अंतर्गत शामिल होगा।  

कल्याणकारी योजनाओं पर प्रभाव  

  • चूँकि कल्याणकारी योजनाओं पर होने वाला भी राज्य सरकार के बजट का ही हिस्सा होता है, ऐसे में अगर राज्य सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त ऋण एफ.आर.बी.एम. की निर्धारित सीमा के अंदर ही होगा तो इसका परिणाम यह होगा कि अवसंरचना परियोजनाओं (Infrastructre projects) को सीमित वित्त में पूरा कर पाना मुश्किल हो जाएगा।
  • अब, वर्तमान प्रावधान से मुंबई ट्रांस-हार्बर लिंक जैसी परियोजनाओं को वित्त की कमी से नहीं जूझना पड़ेगा, क्योंकि मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MMRDA) को इस परियोजना को पूरा करने के लिये जे.आई.सी.ए. से प्रत्यक्ष रूप से ऋण प्राप्ति सकेगी।

सावधानी बरतनी आवश्यक

  • अवसंरचना क्षेत्र की परियोजनाओं को निर्धारित समय में पूरा करने की दिशा में यह पहल बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि इसमें कुछ सावधानियाँ भी बरतनी होंगी। 
  • सरकार को चाहिये कि केवल चुनिन्दा परियोजनाओं के लिये ही इस माध्यम से ऋण ले, अन्यथा राज्य सरकारें एफ.आर.बी.एम. की सीमा से परे जाकर सभी तरह की परियोजनाओं के लिये ऋण लेने के प्रति उन्मुख होंगी।
  • इस बात के प्रति भी सावधानी बरतने की आवश्यकता है कि भावी सरकारें ऐसी शर्तें, जो फिलहाल बहुत उदार प्रतीत हो रही हों (लेकिन भविष्य में महँगी साबित हों), पर अत्याधिक दीर्घकालिक ऋण लेने के लिये प्रेरित न हों।
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