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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

श्रीलंका की ऊर्जा आवश्यकता -भारत के लिये एक अवसर

  • 20 May 2017
  • 6 min read

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि श्रीलंका अपने ऊर्जा क्षेत्र में बड़े सुधार करने जा रहा है| इसका ध्यान मुख्यतः नवीकरणीय ऊर्जा पर केंद्रित है जोकि भारत के लिये एक सुनहरा अवसर है| 

प्रमुख बिंदु

  • विदित हो कि श्रीलंका के पास पहले से ही मौज़ूद 4,000 मेगावाट क्षमता में पवन और सौर ऊर्जा का योगदान मात्र 550 मेगावाट है; परन्तु इसकी नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी में वृद्धि हो रही है|
  • दरअसल, श्रीलंका की ऊर्जा योजनाओं में इसके उत्तर-पश्चिम में स्थापित 100 मेगावाट की एक पवन परियोजना (जिसकी अनुमानित विद्युत उत्पादन क्षमता 5,000 मेगवाट है), देश में प्रत्येक स्थान पर 1 मेगावाट क्षमता वाले 60 सौर ऊर्जा संयंत्रों के वितरण के लिये बनाया गया कार्यक्रम, 100 मेगावाट क्षमता के अन्य सौर ऊर्जा संयंत्र शामिल हैं|
  • मन्नार की पवन विद्युत् परियोजना को सरकारी स्वामित्व वाली सुविधा सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (Ceylon Electricity Board) द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में लिया जाएगा और ऊर्जा संयंत्र का निर्माण करने के लिये एक वैश्विक टेंडर भी निकाला जाएगा| यह 100 मेगावाट क्षमता का संयंत्र श्रीलंका के 375 मेगावाट क्षमता वाले कार्यक्रम का एक भाग है जिसमें उत्पादन की भविष्यवाणी तथा उसका प्रबंधन करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा का एक केंद्र भी होगा|
  • वास्तव में भारत का श्रीलंका के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में एक अच्छा प्रभाव है| इसके भारतीय सहायक के माध्यम से स्पेनिश विंड टरबाइन मैन्युफैक्चरर (Spanish wind turbine manufacturer) श्रीलंका के लोगों के लिये 76 मेगावाट क्षमता वाले पवन ऊर्जा संयंत्र को स्थापित कर चुका है|
  • गेमेसा(Gamesa) ने भी कुछ समय पहले ही हंबनटोटा के निकट 20 मेगावाट के सोलर संयंत्र का निर्माण कार्य पूरा किया है| यह देश का पहला व्यापक सुविधाओं वाला सौर ऊर्जा संयंत्र है| पवन टरबाइन विनिर्माता सुजलोन(Suzlon )और रेगेन पॉवरटेक(ReGen Powertech) ने भी इसके लिये अपने उपकरणों का विक्रय कर दिया है|
  • यह द्वीप(श्री लंका) सोलर और पवन ऊर्जा दोनों के लिये अनुकूल है| इसके पश्चिमी किनारे पर अवस्थित कल्पतिया(Kalpatiya) और पुट्टलम(Puttalam) पवन ऊर्जा फ़ार्म के लिये पवन की गति 8 मीटर प्रति सेकण्ड है| इसी प्रकार हंबनटोटा में एक मेगावाट सौर ऊर्जा से 2.2 मिलियन किलो वाट घंटा विद्युत का उत्पादन होता है|
  • पवन और सौर ऊर्जा के अतिरिक्त श्रीलंका तरल प्राकृतिक गैस(LNG) की कल्पना भी ऊर्जा के एक भण्डार के रूप में कर रहा है तथा इससे संबंधित ऊर्जा प्रोजेक्टों पर बल दे रहा है| श्रीलंका के 900 मेगावाट क्षमता वाले संयंत्र का निर्माण कार्य कई चरणों में पूरा किया जाएगा| यह 500 मेगावाट के दो संयंत्रों से बिलकुल अलग है| इन 500 मेगावाट के दो संयंत्रों में से एक संयंत्र का निर्माण भारत कर रहा है| इससे पूर्व भी भारत सामपुर (Sampur) में कोयला आधारित 500 मेगावाट के एक संयंत्र का निर्माण करना चाहता था परन्तु इस वार्ता के 10 वर्ष पश्चात भी पर्यावरणीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस प्रोजेक्ट को निरस्त कर दिया गया| यहाँ अन्य 500 मेगावाट के एक अन्य प्रोजेक्ट का कार्यान्वयन जापानी कंपनी द्वारा किया जाएगा|
  • श्रीलंका के ऊर्जा प्रोजेक्टों में भारत की महवपूर्ण भागीदारी इन दोनों देशों के मध्य एक संचरण रेखा(transmission line) का निर्माण करके ही सुनिश्चित की जा सकती है जिसके लिये कई वर्षों से इन दोनों देशों के मध्य वार्ता चल रही है|
  • श्रीलंका द्वारा एक पुराने पथ का नवीकरण किया जा रहा है ताकि दोनों देशों के मध्य की दूरी को 50 किलोमीटर तक कम किया जा सके| इसके अतिरिक्त,भारत का पॉवर ग्रिड निगम भी इसके निर्माण कार्य में संलग्न है|
  • दोनों देशों के मध्य एक संचरण रेखा का निर्माण करके ऊर्जा का द्वि - मार्गी प्रवाह संभव हो सकता है| श्रीलंका में ऊर्जा का मूल्य बहुत अधिक है जबकि यहाँ के 5.5 मिलियन लोगों में से 2.8 मिलियन लोग एक महीने में 90 किलो वाट घंटा से भी कम बिजली का उपभोग करते थे तथा इसी कारण वे कम मूल्य चुकाते हैं| सीलोन का ऊर्जा विद्युत बोर्ड पवन और सोलर ऊर्जा के लिये लगभग 22 एलकेआर (LKR) का भुगतान करता है|

निष्कर्ष
श्रीलंका भारत से सस्ती विद्युत खरीदने की क्षमता रखता है जिसके लिये दोनों देशों के मध्य वार्ता चल रही है| इसके विपरीत यदि पवन ऊर्जा में संपन्न मन्नार क्षेत्र का विकास किया जाता है तो इससे भारत को भी लाभ पहुँचेगा|

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