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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दक्षिण-चीन सागर

  • 05 Oct 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

दक्षिण-चीन सागर, स्प्रैटली द्वीप समूह, पार्सल द्वीप समूह, प्रतास द्वीप समूह, नटुना द्वीप और स्कारबोरो शोल, आसियान, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय

मेन्स के लिये:

दक्षिण चीन सागर का महत्त्व और संबंधित मुद्दे

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में फिलीपींस के तट रक्षकों ने स्कारबोरो शोल(Shoal) के लैगून के प्रवेश द्वार पर चीनी जहाज़ों द्वारा लगाए गए अवरोधों को हटा दिया।

  • यह घटना तब हुई जब चीनी तटरक्षक जहाज़ों ने फिलीपींस की नौकाओं को प्रवेश करने से रोकने के लिये 300 मीटर लंबा अवरोध लगाया, जिससे दक्षिण-चीन सागर में लंबे समय से चल रहा तनाव बढ़ गया।

दक्षिण-चीन सागर का महत्त्व:

  • सामरिक स्थिति: दक्षिण-चीन सागर की सीमा उत्तर में चीन एवं ताइवान से पश्चिम में भारत-चीनी प्रायद्वीप (वियतनाम, थाईलैंड, मलेशिया एवं सिंगापुर सहित), दक्षिण में इंडोनेशिया और ब्रुनेई तथा पूर्व में फिलीपींस से लगती है (पश्चिम फिलीपीन सागर के रूप में जाना जाता है)। 
    • यह ताइवान जलडमरूमध्य द्वारा पूर्वी-चीन सागर से और लूज़ाॅन जलडमरूमध्य द्वारा फिलीपीन सागर (प्रशांत महासागर के दोनों सीमांत समुद्र) से जुड़ा हुआ है।
  • व्यापारिक महत्त्व: वर्ष 2016 में लगभग 3.37 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का व्यापार दक्षिण चीन सागर के माध्यम से किया गया, जिससे यह एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक व्यापारिक मार्ग बन गया।
    • सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ (CSIS) के अनुसार, मात्रा के हिसाब से वैश्विक व्यापार का 80% और मूल्य के हिसाब से 70% हिस्सा समुद्री मार्ग से परिवहन किया जाता है, जिसमें 60% एशिया से होकर गुजरता है तथा वैश्विक नौ-परिवहन का एक तिहाई हिस्सा दक्षिण-चीन सागर से होकर गुजरता है।
    • विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन, दक्षिण-चीन सागर पर बहुत अधिक निर्भर है, जिसका अनुमानित 64% व्यापार इस क्षेत्र से होता है। इसके विपरीत अमेरिकी व्यापार का केवल 14% इन जलमार्गों से परिवहन होता है।
    • भारत अपने लगभग 55% व्यापार के लिये इस क्षेत्र पर निर्भर है।
  • मत्स्यन क्षेत्र: दक्षिण-चीन सागर एक समृद्ध मत्स्यन क्षेत्र भी है, जो इस क्षेत्र के लाखों लोगों को आजीविका और खाद्य सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है।

दक्षिण-चीन सागर में प्रमुख विवाद:

  • विवाद:
    • दक्षिण-चीन सागर विवाद का केंद्र भूमि सुविधाओं (द्वीपों और चट्टानों) और उनसे संबंधित क्षेत्रीय जल पर क्षेत्रीय दावों के इर्द-गिर्द घूमता है।
      • दक्षिण-चीन सागर में प्रमुख द्वीप और चट्टान संरचनाएँ स्प्रैटली द्वीप समूह, पैरासेल द्वीप समूह, प्रैटस, नटुना द्वीप तथा स्कारबोरो शोल हैं।
    • इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रवाल द्वीप और टापू विवाद के अधीन हैं, चीन, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया एवं ताइवान सभी इन विवादित क्षेत्रों पर 90 से अधिक चौकियाँ बना रहे हैं।
    • चीन अपने "नाइन-डैश लाइन" मानचित्र के साथ समुद्र के 90% हिस्से पर दावा करता है और नियंत्रण स्थापित करने के लिये इसने द्वीपों का भौतिक रूप से विस्तार किया है तथा वहाँ सैन्य प्रतिष्ठानों का निर्माण किया है।
      • चीन पारासेल और स्प्रैटली द्वीप समूह में विशेष रूप से सक्रिय है, वह वर्ष 2013 से व्यापक ड्रेजिंग एवं कृत्रिम द्वीप-निर्माण में संलग्न होकर 3,200 एकड़ नई भूमि का निर्माण कर रहा है।
      • चीन निरंतर तटरक्षक उपस्थिति के माध्यम से स्कारबोरो शोल को भी नियंत्रित करता है।
  • विवाद सुलझाने के प्रयास:
    • कोड ऑफ कंडक्ट (CoC): चीन और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) के बीच चर्चा का उद्देश्य स्थिति को प्रबंधित करने के लिये एक COC स्थापित करना है, लेकिन आंतरिक आसियान विवादों एवं चीन के दावों की भयावहता के कारण इसकी प्रगति धीमी रही है।
    • पार्टियों के आचरण पर घोषणा (DoC): वर्ष 2002 में आसियान और चीन ने अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार शांतिपूर्ण विवाद समाधान के लिये अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए DOC को अपनाया।
      • DoC का उद्देश्य CoC के लिये मार्ग प्रशस्त करना था, जो अभी भी अस्पष्ट है।
    • मध्यस्थता कार्यवाही: वर्ष 2013 में फिलीपींस ने समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय  (UNCLOS) के तहत चीन के खिलाफ मध्यस्थता कार्यवाही शुरू की।
      • वर्ष 2016 में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) ने चीन के "नाइन-डैश लाइन" दावे के खिलाफ निर्णय सुनाया और कहा कि यह UNCLOS के साथ संगत नहीं था।
      • चीन ने मध्यस्थता के निर्णय को खारिज़ कर दिया और PCA के अधिकार को चुनौती देते हुए अपनी संप्रभुता एवं ऐतिहासिक अधिकारों का दावा किया।

नोट: UNCLOS के तहत प्रत्येक देश 12 समुद्री मील तक का एक क्षेत्रीय समुद्र और क्षेत्रीय समुद्री आधार रेखा से 200 समुद्री मील तक का एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) स्थापित कर सकता है।

आगे की राह

  • बहुपक्षीय जुड़ाव: राजनयिक प्रयासों को सुविधाजनक बनाने, किसी भी समाधान का निष्पक्ष और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों (विशेष रूप से समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय) के अनुरूप होना सुनिश्चित करते हुए, संबद्ध क्षेत्र के बाहर के देशों सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • पर्यावरण संरक्षण: दक्षिण-चीन सागर में समुद्री पर्यावरण की रक्षा के प्रयासों हेतु परस्पर सहयोग की आवश्यकता है। 1950 के दशक से इस क्षेत्र में मछलियों के कुल स्टॉक में 70 से 95% की गिरावट को देखते हुए इन सहयोगों में अवैध मत्स्य पलान की समस्या का निपटान, प्रदूषण को कम करने और जैवविविधता को संरक्षित करने के उपाय शामिल हैं। सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रवाल भित्तियों में प्रति दशक 16% की गिरावट देखी गई है।
  • मरीन पीस पार्क: दक्षिण चीन सागर में मरीन पीस पार्क (Marine Peace Park) अथवा संरक्षित क्षेत्र के निर्माण की संभावनाओं पर भी विचार किया जा सकता है। स्थलीय राष्ट्रीय उद्यानों के समान इन क्षेत्रों को अनुसंधान, संरक्षण और पारिस्थितिक पर्यटन जैसी गैर-राजनीतिक गतिविधियों के लिये उपयोग किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016)

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