इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कर्नाटक द्वारा अलग ध्वज की मांग का औचित्य

  • 17 Oct 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बंगलुरू में आयोजित कन्नड़ रक्षणा वैदिक रैली में कर्नाटक के मुख्यमंत्री  सिद्धारमैया ने एक बार फिर से राज्य के लिये अलग ध्वज की मांग बुलंद की है। विदित हो कि कर्नाटक द्वारा प्रस्तावित अलग ध्वज बनाने पर विचार करने के लिये एक समिति भी गठित की गई है।

अलग ध्वज का प्रस्ताव चिंताजनक क्यों? 

  • राज्यों को स्वयं का अलग ध्वज बनाने की अनुमति देना क्या हमारे राष्ट्रीय ध्वज के महत्त्व को कम करना नही है? इस प्रकार के कदमों से क्या लोगों में प्रांतवाद की भावना नहीं बढ़ेगी?
  • हालाँकि क्षेत्रीय ध्वज को महत्त्व देने का अर्थ यह नहीं है कि राष्ट्रीय ध्वज की गरिमा कम हो गई है और कर्नाटक ने भी कहा है कि उसके इस कदम का राष्ट्रीय ध्वज की महत्ता पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
  • दरअसल, अमेरिका, जर्मनी तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे संघीय व्यवस्था वाले अनेक देशों में राज्यों को अलग क्षेत्रीय पहचान बनाए रखने की छूट दी गई है।
  • फिर राज्य सरकार को यह बताना चाहिये कि क्षेत्रीय ध्वज की मौजूदगी के बीच वह कैसे राष्ट्रीय ध्वज की गरिमा को पूर्ववत बनाए रहेगी?

कर्नाटक को एक अलग क्षेत्रीय ध्वज क्यों चाहिये ?

  • विदित हो कि कानूनी प्रावधानों को संज्ञान में लिये बिना ही कर्नाटक सरकार के इस कदम को देशद्रोह बताया जा रहा है, जबकि सोचने वाली बात यह है कि आखिर दक्षिण भारतीय राज्य इतने आक्रामक क्यों हो रहे हैं?
  • दरअसल, आज जिस तरह से हिंदी को लेकर आक्रामकता दिख रही है उससे दक्षिण भारत के लोगों को लग रहा है कि उनकी भाषायी पहचान खतरे में है।
  • हाल ही में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि पासपोर्ट बनवाने के लिये दिया जाने वाला विवरण अंग्रेज़ी के साथ-साथ अब हिंदी में भी दिया जा सकता है। कर्नाटक सहित दक्षिण भारत के कई राज्यों की मांग है कि इसमें हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं के भी विकल्प दिये जाएँ। 
  • कुछ दिनों पहले कहा गया था कि भारत के राष्ट्रपति और अन्य मंत्री जल्द ही अपने भाषणों को केवल हिंदी में देने के लिये बाध्य होंगे। इस तरह के प्रयासों के कारण गैर-हिंदी भाषी राज्यों को यह डर सता रहा है कि कहीं आने वाले समय में उनकी भाषाई पहचान ही खत्म न हो जाए।
  • हालाँकि, दक्षिण भारतीय राज्यों द्वारा दिखाई जा रही इस आक्रामकता का कारण राजनीति से प्रेरित कुछ बयान और कदम भी हैं।

निष्कर्ष

  • विदित हो कि वर्ष 1994 के एस. आर. में बोम्मई बनाम  भारतीय संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा था कि संघवाद संविधान का मौलिक लक्षण है। संवैधानिक स्थिति यह है कि राज्यों द्वारा स्वयं का क्षेत्रीय ध्वज रखने पर संविधान में कोई निषेध नहीं है।
  • न्यायालय ने हालाँकि यह भी स्पष्ट किया कि जिस तरह से राज्य के क्षेत्रीय ध्वज फहराए जाते हैं किसी भी रूप में राष्ट्रीय ध्वज का अनादर नहीं होना चाहिये। क्षेत्रीय ध्वज को राष्ट्र ध्वज से नीचे रखते हुए फहराया जाना चाहिये।
  • फिर भी राज्यों द्वारा अलग ध्वज रखने का मामला एक नीतिगत विषय है, इसके फायदे और नुकसान पर विचार करके ही कोई फैसला लिया जाना चाहिये।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2