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आंतरिक सुरक्षा

कॅरियर एविएशन का महत्त्व

  • 02 May 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

INS विक्रांत, INS विक्रमादित्य, हिंद महासागर क्षेत्र, भारत-पाक युद्ध 1971, रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ, सृजन पोर्टल, परियोजना 75I, रक्षा खरीद नीति

मेन्स के लिये: 

INS विक्रांत की मुख्य विशेषताएँ, भारत की समुद्री सुरक्षा में विमान वाहक का महत्त्व 

स्रोत: द हिंदू  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय नौसेना के दो विमान वाहक, INS विक्रमादित्य और INS विक्रांत ने "ट्विन कॅरियर ऑपरेशन" में भाग लिया, जिसमें दोनों वाहकों से MiG-29 K लड़ाकू जेट के एक साथ टेक-ऑफ करने तथा उसके बाद उनकी क्रॉस-डेक लैंडिंग शामिल थी, यह क्षमता केवल कुछ चुनिंदा राष्ट्रों के पास ही मौज़ूद है। 

भारतीय विमान वाहक की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • भारत के पास दो परिचालन विमानवाहक पोत हैं, जिनमें से प्रत्येक के पास अपना एक समृद्ध इतिहास और अद्वितीय क्षमताएँ रही हैं।
  • मूल:
    • INS विक्रांत पहला घरेलू स्तर पर निर्मित विमानवाहक पोत है, जिसमें 76% स्वदेशी सामग्री है। इसका निर्माण कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में किया गया था, यह भारत की बढ़ती जहाज़ निर्माण क्षमता का प्रतीक है।
    • दूसरी ओर, INS विक्रमादित्य एक संशोधित कीव श्रेणी का विमानवाहक है, जो मूल रूप से सोवियत संघ की नौसेना के लिये तैयार किया गया था। पूरी मरम्मत और आधुनिकीकृत करने के बाद, इसे वर्ष 2013 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया।
  • आकार और चाल:
    • INS विक्रांत का वज़न करीब 43,000 टन और लंबाई 262 मीटर है। इसका डिज़ाइन 28 नॉट की शीर्ष गति के साथ गतिशीलता को प्राथमिकता देता है।
    • वहीं, INS विक्रमादित्य वज़न में थोड़ा बड़ा करीब 44,500 टन का और इसकी लंबाई 284 मीटर है। यह 30 समुद्री मील की शीर्ष तक की गति तक पहुँच सकता है।
  • मारक क्षमता और लचीलापन:
    • दोनों के पास विमान का एक समान शस्त्रागार है, जिसमें हवाई रक्षा एवं ज़मीनी हमले के लिये  MiG-29K लड़ाकू विमान, हवाई प्रारंभिक चेतावनी के लिये कामोव-31 हेलीकॉप्टर, बहु-भूमिका संचालन के लिये MH-60R हेलीकॉप्टर और उपयोगिता कार्यों हेतु स्वदेशी रूप से निर्मित उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (ALH) शामिल हैं। 
  • आधुनिकता और नवीनता:
    • INS विक्रांत में डिज़ाइन, सेंसर और इलेक्ट्रॉनिक्स में नवीनतम प्रगति शामिल है। यह एक नई युद्ध प्रबंधन प्रणाली का दावा करता है, जो संभावित रूप से बेहतर स्थितिजन्य जागरूकता और परिचालन दक्षता प्रदान करती है।
    • INS विक्रांत STOBAR (शॉर्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी) पद्धति का उपयोग करके प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सटीक संचालन सुनिश्चित करता है।
    • जबकि आधुनिकीकरण करने के बाद, INS विक्रमादित्य अभी भी पुरानी तकनीक का उपयोग करता है।
  • भारत की भविष्य की योजनाएँ:
    • भारत अपनी नौसैनिक उपस्थिति को मज़बूत करने के लिये तीन के बजाय चार विमान वाहक युद्ध समूह (CBGs) रखने की योजना बना रहा है।
    • भारतीय नौसेना की 15-वर्षीय योजना में चार बेड़े (fleet) वाहक और दो हल्के बेड़े वाहक शामिल हैं।
    • नया स्वदेशी विमान वाहक पोत INS विशाल, जिसे स्वदेशी विमान वाहक 3 (IAC-3) के रूप में भी जाना जाता है, INS विक्रांत की भाँति कोचीन शिपयार्ड में निर्मित किया जाएगा।

विमान वाहक बनाम पनडुब्बियों के लिये बहस:

  • तकनीकी विकास के कारण नौसेनाओं के बीच इस बात पर बहस छिड़ गई है कि पनडुब्बियों या विमान वाहक पर ध्यान केंद्रित किया जाए अथवा नहीं।
  • जहाज़-रोधी मिसाइलों, हाइपरसोनिक मिसाइलों और नवीन विमान-रोधी प्रणालियों जैसे तकनीकी विकास ने विमान वाहक की भेद्यता के विषय में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
  • विमान वाहकों की आर्थिक लागत अत्यधिक है, जिससे कई देशों की पनडुब्बियों एवं विमान वाहकों, दोनों को संचालित करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • विमान वाहक पोतों की तुलना में पनडुब्बियों को उनके गोपनीय रहने की क्षमता एवं अपेक्षाकृत कम लागत के कारण एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जाता है।

Vikrant

विमान वाहकों के स्वदेशीकरण से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

  • तकनीकी जटिलताएँ:
    • एक विमानवाहक पोत के निर्माण में प्रणोदन प्रणाली से लेकर युद्ध प्रबंधन और विमानन सुविधाओं तक कई उन्नत प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करना शामिल है।
      • भारत ने प्रारंभ में एक कैटापल्ट लॉन्च सिस्टम (CATOBAR) तैयार करने की योजना बनाई थी, परंतु बाद में तकनीकी सीमाओं के कारण अरेस्टेड रिकवरी (STOBAR) के साथ स्की-जंप लॉन्च तकनीक का प्रयोग किया गया। STOBAR एक सिद्ध प्रणाली है, जो भारी तथा अधिक उन्नत विमानों की परिचालन क्षमताओं को सीमित करती है।
  • समय लेने वाली प्रक्रिया और उच्च लागत:
    • एक विमानवाहक पोत जैसे जटिल युद्धपोत का डिज़ाइन तैयार करना, आवश्यक सामग्री खरीदना और उसका निर्माण करना एक समय लेने वाली प्रक्रिया है। निर्माण प्रक्रिया में देरी से समग्र लागत और रणनीतिक योजना पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • INS विक्रांत का डिज़ाइन तैयार करना 1999 में प्रारंभ हुआ, परंतु इस विमान वाहक को दो दशकों से अधिक की देरी के बाद वर्ष 2023 तक प्रारंभ नहीं किया गया।
    • इस विस्तारित समय-सीमा के कारण, कुछ एसी तकनीकी प्रगति हो जाएगी, जिससे इस विमान वाहक के कुछ पहलू इसके पूर्ण होने से पहले ही अप्रचलित हो जाएँगे।
      • विमानवाहक पोत का निर्माण एक महँगा उपक्रम है, जिसके लिये सामग्री, श्रम और विशेष प्रौद्योगिकियों में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है।
  • कुशल श्रमशक्ति एवं औद्योगिक आधार: 
    • एक विमानवाहक पोत के निर्माण के लिये विभिन्न विषयों में विशेषज्ञता वाले कुशल श्रमिकों के एक बड़े समूह की आवश्यकता होती है।
      • भारत को INS विक्रांत के निर्माण के कुछ पहलुओं के लिये विदेशी विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर निर्भर होना पड़ा, जो इसके घरेलू जहाज़ निर्माण उद्योग को तथा अधिक विकसित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • विदेशी सामग्री पर निर्भरता:
    • स्वदेशी डिज़ाइन के साथ भी, कुछ महत्त्वपूर्ण सामग्रियों और घटकों को अभी भी आयात करने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता होगी।
      • यद्यपि INS विक्रांत में स्वदेशी सामग्री का प्रतिशत उच्च है, परंतु उच्च-तन्यता वाले स्टील तथा विशेष इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कुछ प्रमुख तत्त्व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयतित हो सकते हैं।
      • यह आयात निर्भरता भू-राजनीतिक तनाव के समय में कमज़ोरियाँ उत्पन्न कर सकती  है।

आधुनिक रणनीतिक शर्तों में भारत के लिये वाहक विमानन का क्या महत्त्व है? 

  • भूमि और वायु संचालन में सहायता:
    • भारत की भूमि सीमाओं पर चल रहे विवादों के संदर्भ में सीमा संघर्षों की संभावना बनी हुई है, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि भविष्य के संघर्षों में मज़बूत विमान वाहक रणनीतिक लाभ प्रदान करेंगे।
      • बांग्लादेश की आज़ादी के लिये 1971 के अभियानों के दौरान, INS विक्रांत युद्धपोत   ने पूर्वी पाकिस्तान के आंतरिक क्षेत्रों में हमला करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भूमि युद्धों का समर्थन करने में इसके रणनीतिक महत्त्व को उजागर किया गया।
  • संचार की समुद्री लाइनों की सुरक्षा बनाए रखना: 
    • सैन्य संघर्ष के दौरान, एक विमान वाहक प्राथमिक नौसैनिक संपत्ति के रूप में कार्य करता है जो भारत में सामरिक  सामग्री को ले जाने के लिये महत्त्वपूर्ण व्यापारिक नौवहन मार्गों की व्यापक रूप से रक्षा करने में सक्षम है।
      • पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीन की रणनीतिक उपस्थिति के कारण होर्मुज़  जलडमरूमध्य के माध्यम से ऊर्जा आयात की सुभेद्यता के बारे में चिंता जताई गई है, जो संचार की समुद्री सीमा की सुरक्षा में वाहकों के महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में उपस्थिति सुनिश्चित करना:
    • भारत के सुरक्षा हित हिंद महासागर और उसके आसपास के तटीय क्षेत्र से जटिल रूप से जुड़े हुए हैं, जहाँ चीनी रणनीतिक संपत्तियों की उपस्थिति भारत के प्रभाव के लिये चुनौतियाँ पेश करती हैं। 
      • एक विमानवाहक पोत भारत को इन जलक्षेत्रों में अपना प्रभाव जमाने और अतिरिक्त-क्षेत्रीय शक्तियों से होने वाले संभावित खतरों को नियंत्रित करने में सक्षम बनाता है, जिससे IOR में उसके हितों की रक्षा होती है।
  • महत्त्वपूर्ण विदेशी हितों का संरक्षणः 
    • वाहक विमानन भारत को विदेशों में अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करने की क्षमता प्रदान करता है, विशेष रूप से राजनीतिक, सामाजिक-आर्थिक और जातीय अस्थिरताओं का सामना कर रहे एफ्रो-एशियाई राष्ट्रों में।
      • इन क्षेत्रों में भारत की आर्थिक और रणनीतिक हिस्सेदारी बढ़ रही है, जिससे उभरते खतरों का प्रभावी ढंग से जवाब देने तथा विदेशों में अपने नागरिकों एवं संपत्तियों की रक्षा करने की क्षमता की आवश्यकता होती है।
  • द्वीप क्षेत्रों को सुरक्षित करनाः
    • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जैसे भारत के दूरदराज़ के द्वीप क्षेत्रों की रक्षा के लिये एकीकृत नौसैनिक विमानन आवश्यक है, जो अपने भौगोलिक प्रसार एवं सीमित बुनियादी ढाँचे के कारण असुरक्षित हैं।
      • एक विमान वाहक की उपस्थिति इन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए संभावित विदेशी सैन्य कब्ज़े या दावों के खिलाफ निवारक के रूप में कार्य करती है।
  • अन्य गैर-सैन्य मिशन:
    • अपनी सैन्य भूमिका से परे, एक विमानवाहक पोत क्षेत्रीय समुद्रों या तटीय क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं का जवाब देने के लिये भारत की परिचालन क्षमताओं का महत्त्वपूर्ण रूप से विस्तार करता है।
    • एक तैरते शहर के समान अपनी क्षमता के साथ, एक वाहक आवश्यक सेवाएँ और रसद सहायता प्रदान कर सकता है, मौज़ूदा सीलिफ्ट प्लेटफॉर्मों को पूरक कर सकता है तथा भारत की आपदा प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
    • मॉड्यूलर अवधारणाओं को शामिल करने के प्रयास गैर-सैन्य मिशनों के लिये वाहक की बहुमुखी प्रतिभा को और बढ़ाते हैं, जिससे विशिष्ट मानवीय मिशनों के लिये विशेष संसाधनों की तेज़ी से तैनाती संभव हो पाती है।

निष्कर्ष:

स्वदेशी उत्पादन पर भारत का ध्यान और अतिरिक्त वाहकों के लिये महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ भविष्य के लिये उपयुक्त एवं शक्तिशाली नौसेना के निर्माण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती हैं। जबकि विमान वाहक और पनडुब्बियों के बीच बहस जारी है, भारत के ट्विन कॅरियर ऑपरेशन  एक व्यापक समुद्री रक्षा रणनीति के लिये दोनों का लाभ उठाने के अपने रणनीतिक इरादे को प्रदर्शित करते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारतीय विमानवाहक पोत की प्रमुख विशेषताओं के बारे में चर्चा कीजिये। साथ ही, आधुनिक सामरिक दृष्टि से भारत के लिये वाहक विमानन के महत्त्व का उल्लेख कीजिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न.1 'INS अस्त्रधारिणी का ' जिसका हाल ही में समाचारों में उल्लेख हुआ था,कौन-सा सर्वोत्तम वर्णन है ? (2016)

(a) उभयचर युद्धपोत
(b) नाभिकीय शक्ति- चालित पनडुब्बी
(c) टारपीडो प्रमोचन और पुनर्प्राप्ति जलयान
(d) नाभिकीय शक्ति-चालित विमान-वाहक

उत्तर: (c)


प्रश्न.2 हिंद महासागर नौसैनिक परिसंवाद (सिंपोज़ियम) (IONS) के संबंध में निम्नलिखित पर विचार कीजिये:  (2017)

  1. प्रारंभी (इनागुरल) IONS भारत में 2015 में भारतीय नौसेना की अध्यक्षता में हुआ था।
  2. IONS एक स्वैच्छिक पहल है जो हिंद महासागर क्षेत्र के समुद्रतटवर्ती देशों (स्टेट्स) की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ाना चाहता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)

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