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सामाजिक न्याय

सैन्य कर्मियों के मध्य गंभीर तनाव

  • 12 Jan 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (United Service Institution of India- USI) नामक सर्विस थिंक टैंक (Service Think Tank) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार,  भारतीय सेना के आधे से अधिक कर्मचारी गंभीर तनाव की स्थिति में हैं।

प्रमुख बिंदु: 

तनावग्रस्त सैन्य कार्मिक:

  • सेना प्रतिवर्ष  किसी भी दुश्मन या आतंकवादी गतिविधियों की तुलना में आत्महत्या, फ्रेट्रिकाइड ( जवानों द्वारा एक-दूसरे पर हमला करना) तथा अन्य अप्रिय घटनाओं के कारण अधिक सैन्य कर्मियों को खो रही है।
    • भारतीय सेना के जवानों का लंबे समय तक काउंटर इंसर्जेंसी एंड काउंटर टेररिज्म (Counter Insurgency and Counter Terrorism- CI/CT) गतिविधियों में शामिल होना तनाव के स्तर में वृद्धि के प्रमुख कारकों में से एक रहा है।
    • यह नुकसान सशस्त्र बलों द्वारा संचालित किसी सैन्य कार्यवाही/ऑपरेशन की तुलना में काफी अधिक है। इसके अलावा उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मनोविकृति, न्यूरोसिस और अन्य संबंधित बीमारियों से कई सैनिक एवं अधिकारी प्रभावित हो रहे हैं।
  • जूनियर कमीशंड ऑफिसर्स (Junior Commissioned Officers -JCO) और अन्य रैंक (Other Ranks-OR) की तुलना में उच्च अधिकारियों द्वारा अपेक्षाकृत अधिक तनाव का अनुभव किया जाता है।

तनाव का कारण:

  • उच्च सैन्य अधिकारियों में: नेतृत्व गुणवत्ता का अभाव , कार्य के प्रति प्रतिबद्धता में कमी, संसाधनों का अभाव , अव्यवस्थाओं का होना, पोस्टिंग और पदोन्नति में निष्पक्षता और पारदर्शिता की कमी, उचित आवास सुविधा का अभाव , असैनिक अधिकारियों का उदासीन रवैया आदि।
  • लोअर रैंक के अधिकारियों में: अत्यधिक व्यस्तता, घरेलू समस्याएँ, गरिमा की कमी, मनोरंजन सुविधाओं की कमी और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ-साथ अधीनस्थों के साथ संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होना आदि।

कार्य पर तनाव का प्रभाव:

  • तनाव के कारण सैन्य यूनिट्स और सब-यूनिट्स में अनुशासनहीनता की स्थिति उत्पन्न होना, प्रशिक्षण के दौरान असंतोषजनक स्थिति, सैन्य उपकरणों के अपर्याप्त रखरखाव तथा सैन्य मनोबल में कमी की संभावना बढ़ सकती है, जो सेना की युद्ध तैयारी और परिचालन प्रदर्शन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है।

सुझाव:

  • नेतृत्व द्वारा तनाव की रोकथाम और प्रबंधन हेतु इकाइयों तथा उनके गठन (Unit and Formation) के स्तर पर उपचार किया जाना चाहिये।

सेना का रुख:

  • सेना द्वारा अध्ययन को खारिज करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया गया कि "दूरगामी" निष्कर्ष पर पहुंँचने के लिये सर्वेक्षण में शामिल डेटा अत्यधिक कम है ।
    • यह एक व्यक्ति द्वारा किया गया अध्ययन है, जिसमें लगभग 400 सैनिकों को शामिल किया गया है।

उठाए गए कदम:

  • कपड़े, भोजन, आवास, यात्रा सुविधा, स्कूली शिक्षा, मनोरंजन आदि और सामयिक लोक-कल्याण के लिये बैठक जैसी सुविधाओं की बेहतर गुणवत्ता का प्रावधान।
  • तनाव प्रबंधन के लिये एक उपकरण के रूप में  योग और ध्यान का संचालन।
  • मनोवैज्ञानिक परामर्शदाताओं का प्रशिक्षण और तैनाती।
  • उत्तरी और पूर्वी कमान में सैनिकों द्वारा तनाव को कम करने हेतु ‘MILAP’ और ‘Y SAYYOG’ परियोजनाओं का संस्थानीकरण करना।
  • सेना और वायु सेना द्वारा पेशेवर परामर्श लेने के लिये एक 'मानसिक सहायता हेल्पलाइन' (Mansik Sahayata Helpline) की व्यवस्था की गई है।
  • मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता (Mental Health Awareness) पूर्व-प्रेरण प्रशिक्षण के दौरान प्रदान की जाती है।
  • सैन्य मनोरोग उपचार केंद्र (Military Psychiatry Treatment Centre) की व्यवस्था INHS अस्विनी (Asvini) पर और मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों (Mental Health Centre) की स्थापना मुंबई, विशाखापत्तनम, कोचि, पोर्ट ब्लेयर, गोवा तथा कारवार में की गई है।
  • इससे पहले डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ साइकोलॉजिकल रिसर्च (Defence Institute of Psychological Research) ने रणभूमि और शांत क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के मध्य आत्महत्याओं के कारणों की पहचान करने पर केंद्रित अनुसंधान परियोजनाओं को पूरा किया था। इसने अपने अध्ययन में पाया कि समय पर छुट्टी न मिलना तनावपूर्ण कारकों में से एक था जो आत्मघाती व्यवहार को बढ़ावा देता था।
    • सिफारिशें: इसमें सैनिकों की छुट्टी का तर्कसंगत निर्धारण, छुट्टी हेतु परामर्श, कार्यभार में कमी, तैनाती के कार्यकाल में कमी, वेतन व भत्ते में वृद्धि, रहने की स्थिति में सुधार और अधिकारियों के साथ बेहतर पारस्परिक संबंध, तनाव प्रबंधन प्रशिक्षण कार्यक्रम व मनोवैज्ञानिक परामर्श, बुनियादी एवं मनोरंजन गतिविधियों को बढ़ाना तथा शिकायतों का निवारण आदि को शामिल किया गया।

स्रोत: द हिंदू

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