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भारतीय समाज

IPC की धारा 304B: दहेज हत्याएँ

  • 02 Jun 2021
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304B

मेन्स के लिये:

भारत में दहेज़ प्रथा तथा उससे संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304B के दायरे को यह संकेत देकर विस्तृत किया है कि महिलाओं के खिलाफ क्रूरता को निर्धारित करने के लिये कोई उपयुक्त फॉर्मूला नहीं है।

प्रमुख बिंदु:

IPC की धारा 304B:

  • धारा 304 के अनुसार दहेज हत्या का मामला बनाने के लिये महिला की शादी के सात वर्ष के भीतर जलने या अन्य शारीरिक चोटों (सामान्य परिस्थितियों के अलावा) से मृत्यु होनी चाहिये।
  • दहेज की मांग के संबंध में मृत्यु से ठीक पहले उसे पति या ससुराल वालों से क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो।

निर्णय की मुख्य बातें:

  • दुल्हन को जलाने और दहेज की मांग संबंधी सामाजिक बुराई को रोकने की विधायी मंशा को ध्यान में रखते हुए IPC की धारा 304B की व्याख्या की जानी चाहिये।
  • न्यायालय को यह निर्धारित करने के लिये अपने विवेक का उपयोग करना चाहिये कि क्या क्रूरता या उत्पीड़न और पीड़ित की मृत्यु के बीच की अवधि "सून बिफोर" पद के भीतर आएगी।
    • इस तरह के निर्धारण के लिये एक महत्त्वपूर्ण कारक पीड़ित के साथ हुई क्रूरता और परिणामी मृत्यु के बीच "निकट और जीवंत संबंध" की स्थापना है।
    • वर्षों से न्यायालयों ने धारा 304B में 'सून बिफोर' वाक्यांश की व्याख्या 'इमीडिएटली बिफोर' के रूप में की थी। यह व्याख्या एक पीड़ित महिला के लिये यह आवश्यक शर्त निर्धारित करती है कि मरने से पहले उसे परेशान किया गया हो।
  • यहाँ तक ​​​​कि क्रूरता का दायरा भी काफी विविध है, क्योंकि यह शारीरिक, मौखिक या भावनात्मक रूप से भी हो सकती है। इसलिये उपयुक्त फार्मुलों को यह परिभाषित करने के लिये निर्धारित नहीं किया जा सकता है कि 'सून बिफोर’ वाक्यांश सटीक है या नहीं।
  • इसके अलावा इस खंड में ‘सामान्य परिस्थितियों के अलावा’ वाक्यांश एक व्याख्या की मांग करता है।
    • IPC की धारा 304-B मृत्यु को मानव हत्या या आत्मघाती या आकस्मिक रूप में वर्गीकृत करने में एक ‘पिज़न अप्रोच’ का प्रयोग नहीं करती है।
  • साथ ही आरोपी के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री के संबंध में निष्पक्ष तरीके से जाँच की जाए।
    • हालाँकि अन्य महत्त्वपूर्ण विचारों को संतुलित करने की आवश्यकता है जैसे कि त्वरित परीक्षण का अधिकार।

दहेज हत्या पर रिपोर्ट:

  • वर्ष 1999 से 2018 तक लगभग एक दशक तक देश में दहेज के लिये होने वाली मौतों में 40% से 50% की हत्या हुई।
  • वर्ष 2019 में भारतीय दंड संहिता की धारा 304B के तहत दहेज हत्या के 7,115 मामले दर्ज किये गए।

दहेज:

  • ‘दहेज’ शब्द को IPC में परिभाषित नहीं किया गया है बल्कि दहेज निषेध अधिनियम, 1961 में परिभाषित किया गया है। अधिनियम के अनुसार, इसे किसी भी संपत्ति या मूल्यवान वस्तु के रूप में परिभाषित किया गया है या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसे देने के लिये सहमति व्यक्त की गई हो:
    • एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को विवाह के लिये या
    • विवाह में भाग लेने वाले दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति ने किसी दूसरे पक्ष अथवा किसी व्यक्ति को विवाह के समय, विवाह के पहले या विवाह के बाद विवाह की एक आवश्यक शर्त के रूप में दिया हो या देना स्वीकार किया हो।
  • हालाँकि विभिन्न समाजों में प्रचलित प्रथागत भुगतान, जैसे कि बच्चे के जन्म के समय आदि दहेज के अंतर्गत नहीं आते हैं।
  • दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध हैं।
  • दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अतिरिक्त कानूनों को और अधिक कठोर बनाया गया है, अर्थात्,
    • धारा 304B (दहेज मृत्यु) और धारा 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) को भारतीय दंड संहिता में एकीकृत किया गया है।
    • दहेज प्रथा और संबंधित मौतों के इस जघन्य कृत्य की समाप्तिन या इसे कम से कम करने के लिये धारा 113B (दहेज मृत्यु के रूप में अनुमान) को भारतीय साक्ष्य अधिनियम का हिस्सा बनाया गया है।

स्रोत-द हिंदू

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