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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सऊदी अरब-पाकिस्तान मतभेद

  • 24 Aug 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

‘इस्लामिक सहयोग संगठन’, ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’

मेन्स के लिये:

भारत-सऊदी अरब संबंध, वैश्विक राजनीति में व्यापार और आर्थिक हितों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तानी सेना प्रमुख के नेतृत्त्व में सऊदी अरब के दौरे पर गए एक पाकिस्तानी प्रतिनिधि मंडल को सऊदी क्राउन प्रिंस के साथ बैठक की अनुमति नहीं प्राप्त हो सकी जिसने पिछले कुछ समय से दोनों देशों के बीच बढ़ते मतभेद को और अधिक स्पष्ट कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान को सऊदी अरब का समर्थन नहीं प्राप्त हो सका था।
  • सऊदी क्राउन प्रिंस के साथ बैठक संभव नहीं होने के बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने चीनी विदेश मंत्री से मुलाकात की है।

सऊदी-पाकिस्तान संबंध:

  • सऊदी अरब और पाकिस्तान के संबंध भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1971 के युद्ध के दौरान सबसे अधिक मज़बूत माने जाते हैं।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार, इस युद्ध के दौरान सऊदी अरब ने पाकिस्तान को लगभग 75 लड़ाकू जहाज़ उधार देने के साथ हथियार और अन्य उपकरण उपलब्ध कराए थे।
  • इस युद्ध के पश्चात सऊदी अरब ने पाकिस्तान के युद्ध बंदियों को लौटाए जाने की मांग का समर्थन किया था।
  • युद्ध के पश्चात वर्ष 1977 तक सऊदी अरब ने पाकिस्तान को अमेरिका से F-16 लड़ाकू जहाज़ और हार्पून मिसाइल सहित अन्य आवश्यक हथियार खरीदने के लिये लगभग 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण उपलब्ध कराया।
  • पाकिस्तान द्वारा परमाणु परीक्षण के बाद उस पर लगे प्रतिबंधों के बीच सऊदी अरब से प्राप्त होने वाले तेल और आर्थिक सहायता ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • पिछले दो दशकों के दौरान जब भी पाकिस्तान आर्थिक समस्याओं में पड़ा है सऊदी अरब ने उसे विलंबित भुगतान पर तेल उपलब्ध कराया है।
  • सऊदी अरब से मिलने वाली फंडिंग के कारण पाकिस्तान में मदरसों की संख्या में तीव्र वृद्धि हुई है, जिसने पाकिस्तान में धार्मिक चरमपंथ को भी बढ़ावा दिया है।
  • वर्ष 1990 में कुवैत पर इराक के हमले के दौरान पाकिस्तान ने सऊदी अरब की रक्षा के लिये अपनी थल सेना भेजी थी।

मतभेद:

  • सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच पिछले कुछ वर्षों से मतभेद बढ़ते जा रहे थे।
  • वर्ष 2015 में पाकिस्तान की संसद ने यमन में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार को बहाल करने के सऊदी सैन्य प्रयास का समर्थन न करने का फैसला किया।
  • वर्ष 2019 में पुलवामा हमले के दौरान अमेरिका के अतिरिक्त सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात या ‘युएई’ (UAE) ने विंग कमांडर अभिनंदन को छोड़ने के लिये पाकिस्तान पर दबाव बनाया।
  • पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने सऊदी अरब पर कश्मीर मामले में भारत के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन करने में विफल रहने का आरोप लगाया साथ ही पाकिस्तान ने इस मामले में ‘इस्लामिक सहयोग संगठन’ (Organisation of Islamic Cooperation- OIC) के नेतृत्त्व पर भी प्रश्न उठाया था।
  • पाकिस्तान द्वारा तुर्की और मलेशिया का बढ़ता समर्थन भी इस मतभेद को बढ़ाने का एक बड़ा कारण रहा है
    • गौरतलब है कि तुर्की वर्तमान में सऊदी अरब को चुनौती देते हुए स्वयं को मुस्लिम देशों के बीच एक नए नेतृत्त्व के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
  • पाकिस्तान के हालिया रवैये से नाराज़ होते हुए सऊदी अरब ने वर्ष 2018 में दिये 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण की वापस किये जाने की मांग की और विलंबित भुगतान पर पाकिस्तान को तेल बेचने से इंकार कर दिया।
    • ध्यातव्य है कि नवंबर 2018 में सऊदी अरब ने पाकिस्तान के लिये 6.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक सहायता पैकेज की घोषणा की थी।

चीन की भूमिका:

  • ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ (China-Pakistan Economic Corridor- CPEC) के माध्यम से चीन, पाकिस्तान के लिये एक बड़ा सहयोगी बनकर उभरा है।
    • CPEC की शुरूआती लागत 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर बताई गई थी परंतु वर्तमान में यह परियोजना लगभग 62 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई है।
  • सऊदी अरब ने भी CPEC परियोजनाओं में 10 बिलियन डॉलर का निवेश किया है परंतु पाकिस्तान वर्तमान में राजनयिक और आर्थिक समर्थन के लिये सऊदी अरब की अपेक्षा चीन को अधिक प्राथमिकता देता है।
  • पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने अपनी हालिया चीन यात्रा को पाकिस्तान और चीन की सामरिक सहकारी साझेदारी को मज़बूत बनाने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण बताया है।

सऊदी अरब और भारत:

  • पिछले कुछ वर्षों में सऊदी अरब ने खनिज तेल पर अपनी अर्थव्यवस्था की निर्भरता को कम करने पर विशेष ध्यान दिया है और इसका प्रभाव उसकी विदेश नीति पर भी देखने को मिला है।
  • सऊदी अरब अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के प्रयास में दक्षिण एशिया में भारत को एक महत्त्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखता है।
  • पिछले 6 वर्षों में भारत और अरब क्षेत्र के देशों (विशेषकर सऊदी अरब और UAE) के संबंधों में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखने को मिली है।
  • सऊदी अरब वर्तमान में भारत का चौथा (चीन, अमेरिका और जापान के बाद) सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
    • भारत और सऊदी अरब का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 28 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है।
    • भारत अपनी कुल आवश्यकता का लगभग 18% खनिज तेल सऊदी अरब से आयात करता है, साथ ही सऊदी अरब भारत के लिये ‘तरल पेट्रोलियम गैस’ या एलपीजी (LPG) का एक बड़ा स्त्रोत है।
  • अमेरिकी प्रतिबंधों के दबाव में भारत द्वारा ईरान से तेल के आयात को स्थगित करने के निर्णय के बाद भारत के लिये सऊदी अरब का महत्त्व और भी बढ़ गया है।

प्रभाव:

  • पाकिस्तान और सऊदी अरब के मतभेदों पर भारत ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी है, हालाँकि ‘जम्मू और कश्मीर’ तथा ‘नागरिकता संशोधन विधेयक-एनआरसी’(CAA-NRC) मुद्दे पर सऊदी अरब की चुप्पी ने भारत सरकार के आत्मविश्वास को बढ़ाया है।
  • भारत और सऊदी अरब दोनों के लिये यह द्विपक्षीय संबंध बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। वर्तमान में चीन के साथ सीमा-विवाद के समय पाकिस्तान तथा चीन की घनिष्ठता भारत के लिये एक चिंता का विषय है, परंतु ऐसे समय में सऊदी अरब का समर्थन भारत को पाकिस्तान के खिलाफ एक मज़बूत बढ़त प्रदान करेगा।

आगे की राह:

  • भारत के पक्ष में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वर्तमान में पाकिस्तान-चीन और पाकिस्तान-सऊदी अरब ध्रुव एक दूसरे से नहीं जुड़े हैं, अर्थात अभी यह एक पाकिस्तान-चीन-सऊदी-अरब त्रिकोणीय साझेदारी नहीं है।
  • ऐसे में इस क्षेत्र का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत इस स्थिति का किस प्रकार लाभ उठाता है।

स्त्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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