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भूगोल

समुद्र जल स्तर में वृद्धि

  • 21 Jun 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पेरिस समझौता, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज

मेन्स के लिये: 

समुद्र जल स्तर में वृद्धि के कारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण लक्षद्वीप द्वीप समूह के आसपास समुद्र का स्तर बढ़ जाएगा।

  • यह हवाई अड्डे और उन आवासीय क्षेत्रों को प्रभावित करेगा जो वर्तमान में समुद्र तट के काफी करीब हैं।
  • भारत का सबसे छोटा केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप एक द्वीपसमूह है जिसमें 36 द्वीप हैं इसका क्षेत्रफल 32 वर्ग किमी. है।

Arabian-Sea

प्रमुख बिंदु:

समुद्री जल स्तर में वृद्धि (SLR):

  • SLR जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण दुनिया के महासागरों के जल स्तर में हुई वृद्धि है, विशेष रूप से ग्लोबल वार्मिंग जो तीन प्राथमिक कारकों से प्रेरित है: तापीय विस्तार, ग्लेशियरों, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ पिघलना।
  • समुद्र स्तर को मुख्य रूप से ज्वार स्टेशनों और ‘सैटेलाइट लेज़र अल्टीमीटर’ का उपयोग करके मापा जाता है।

SLR के प्राथमिक कारक:

  • ऊष्मीय विस्तार: जब पानी गर्म होता है, तो वह फैलता है। पिछले 25 वर्षों में समुद्र के स्तर में वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा गर्म महासागरों के कारण है जो अपेक्षाकृत अधिक स्थान घेरते हैं।
  • ग्लेशियरों का पिघलना: ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप उच्च तापमान के कारण पर्वतीय हिमनद गर्मियों में अधिक पिघलते हैं।
    • यह अपवाह और समुद्र के वाष्पीकरण के बीच असंतुलन पैदा करता है, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ जाता है।
  • ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादरों को हानि: बढ़ी हुई गर्मी के कारण ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका को कवर करने वाली विशाल बर्फ की चादरें पर्वतीय ग्लेशियरों की तरह और अधिक तेज़ी से पिघल रही हैं तथा और समुद्र जल में भी तेज़ी सेवृद्धि हो रही है।

SLR की दर:

  • वैश्विक स्वरूप: पिछली शताब्दी में वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि हुई है और हाल के दशकों में इसकी दर में तेज़ी आई है। वर्ष 1880 और 2015 के बीच औसत वैश्विक समुद्र स्तर 8.9 इंच बढ़ा है। यह पिछले 2,700 वर्षों की तुलना में बहुत तेज़ है।
    • इसके अलावा ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (IPCC) ने वर्ष 2019 में 'द स्पेशल रिपोर्ट ऑन द ओशन एंड क्रायोस्फीयर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट' जारी की, जिसमें महासागरों, ग्लेशियरों और भूमि तथा समुद्र में बर्फ के जमाव में होने वाले गंभीर परिवर्तनों को रेखांकित किया गया।
  • क्षेत्रीय: यह दुनिया भर में एक समान नहीं है। उपप्रवाह, अपस्ट्रीम बाढ़ नियंत्रण, कटाव, क्षेत्रीय महासागरीय धाराओं, भूमि की ऊँचाई में भिन्नता और हिमयुग के हिमनदों के संकुचित भार के कारण क्षेत्रीय SLR वैश्विक एसएलआर से अधिक या कम हो सकता है।

SLR के परिणाम:

  • तटीय बाढ़: विश्व स्तर पर विश्व के 10 सबसे बड़े शहरों में से आठ एक तट के पास हैं, जिनको तटीय बाढ़ से खतरा है।
  • तटीय जैव विविधता का विनाश: SLR विनाशकारी क्षरण, आर्द्रभूमि बाढ़, जलभृत और नमक के साथ कृषि मिट्टी संदूषण और जैव विविधता आवास के विनाश का कारण बन सकता है।
  • खतरनाक तूफानों में वृद्धि: समुद्र का ऊँचा स्तर अधिक खतरनाक तूफानों का कारण बन रहा है जिससे जान-माल का नुकसान हो रहा है।
  • पार्श्व और अंतर्देशीय प्रवासन: निचले तटीय क्षेत्रों में बाढ़ लोगों को उच्च भूमि पर प्रवास करने के लिये मजबूर कर रही है जिससे विस्थापन हो रहा है और बदले में दुनिया भर में शरणार्थी संकट पैदा हो रहा है।
  • बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव: उच्च तटीय जल स्तर की संभावना से इंटरनेट की पहुँच जैसी बुनियादी सेवाओं को खतरा है।
  • अंतर्देशीय जीवन के लिये खतरा: बढ़ता समुद्र जल स्तर नमक के साथ मिट्टी और भूजल को दूषित कर सकता है।
  • पर्यटन और सैन्य तैयारी: तटीय क्षेत्रों में पर्यटन और सैन्य तैयारी भी एसएलआर में वृद्धि के कारण नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।

SLR से निपटने के लिये उठाए गए कदम:

  • स्थानांतरण: कई तटीय शहरों ने पुनर्वास को एक शमन रणनीति के रूप में अपनाने की योजना बनाई है। उदाहरण के लिये किरिबाती द्वीप ने फिज़ी में स्थानांतरण की योजना बनाई है, जबकि इंडोनेशिया की राजधानी को जकार्ता से बोर्नियो स्थानांतरित किया जा रहा है।
  • समुद्री दीवार का निर्माण: इंडोनेशिया की सरकार ने शहर को बाढ़ से बचाने के लिये वर्ष 2014 में एक विशाल समुद्री दीवार या "विशालकाय गरुड़" नामक एक तटीय विकास परियोजना शुरू की।
  • बिल्डिंग एनक्लोज़र: शोधकर्ताओं ने उत्तरी यूरोपीय संलग्नक बाँध (NEED) का प्रस्ताव दिया है, जिसमें उत्तरी सागर के सभी 15 देशों को बढ़ते समुद्रों से बचाने के लिये शामिल किया गया है। फारस की खाड़ी, भूमध्य सागर, बाल्टिक सागर, आयरिश सागर और लाल सागर को भी ऐसे क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया जो समान मेगा बाड़ों से लाभान्वित हो सकते हैं।
  • पानी के प्रवाह संचालन हेतु वास्तुकला: डच सिटी रॉटरडैम ने अस्थायी तालाबों के साथ "वाटर स्क्वायर" जैसी बाधाओं, जल निकासी और नवीन वास्तुशिल्प सुविधाओं का निर्माण किया।

भारत की भेद्यता:

  • भारत की 7,516 किलोमीटर लंबी तटरेखा में मुख्य भूमि पर 5,422 किलोमीटर और नौ राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों के द्वीपों पर 2,094 किलोमीटर की तटरेखा शामिल है।
  • समुद्र तट व्यापार देश के कुल व्यापार का 90% हिस्सा है और यह 3,331 तटीय गाँवों और 1,382 द्वीपों तक फैला है।

भारत के प्रयास:

  • तटीय विनियमन क्षेत्र:
    • समुद्र, खाड़ियों, नदियों और बैकवाटर के तटीय क्षेत्र जो उच्च ज्वार रेखा (HTL) से 500 मीटर तक के ज्वार से प्रभावित होते हैं और निम्न ज्वार रेखा (LTL) तथा उच्च ज्वार रेखा के बीच की भूमि को  1991 में तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) घोषित किया गया था।
    • नवीनतम विनियमन ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते समुद्र के स्तर को भी ध्यान में रखता है।
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना:
    • इसे वर्ष 2008 में जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री परिषद द्वारा लॉन्च किया गया था।
    • इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इसका मुकाबला करने के कदमों के बारे में जागरूकता पैदा करना है।

आगे की राह:

  • पेरिस समझौता ग्लोबल वार्मिंग और SLR को सीमित करने पर एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रदान करता है।
  • इस दिशा में कुछ अन्य कदमों को भी शामिल किया जाएगा:
    • जीवाश्म ईंधन से सौर, वन ऊर्जा जैसे स्वच्छ विकल्पों को अपनाना।
    • उद्योगों पर कार्बन टैक्स लगाना और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये सब्सिडी देना।
    • मौजूदा ग्रीनहाउस गैसों को पकड़ने के लिये भू-इंजीनियरिंग और प्राकृतिक तरीकों जैसे पीटलैंड और आर्द्रभूमि क्षेत्रों को बहाल करना।
    • वनों की कटाई को कम करना।
    • जलवायु परिवर्तन पर अनुसंधान कार्यों को सब्सिडी देना।

स्रोत-पीआईबी

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