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ज़िला अदालतों का बुनियादी ढाँचा

  • 03 Aug 2018
  • 2 min read

चर्चा में क्यों?

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम. खानविलकर और डी. वाई. चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अपने 16 पेज के आदेश में कहा है कि देश भर में कि ज़िला अदालतों का बुनियादी ढाँचा वेंटिलेटर पर है और इसे बचाने की ज़रूरत है।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश अखिल भारतीय न्यायाधीश एसोसिएशन (All India Judges Association) द्वारा बेहतर सेवाएँ प्रदान करने के लिये सुविधाओं हेतु सन 1989 में दायर याचिका पर निर्णय देते हुए दिया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह देखा है कि “मज़बूत आधारभूत संरचना एक दृढ़ और स्थिर न्यायिक प्रणाली की धुरी है। "
  • इस तरह मज़बूत बुनियादी ढाँचे के बिना न्यायपालिका अपने इष्टतम स्तर पर काम नहीं कर पाएगी।
  • सर्वोच्च अदालत के अनुसार, देश भर की ज़िला अदालतों को निम्नलिखित सुविधाओं से लैस किये जाने की ज़रूरत है-

♦ ट्रांसजेंडर के लिये अलग शौचालय
♦ एमबीए की डिग्री के साथ 'कोर्ट मैनेजर्स'
♦ ब्रेल और रंग-संकेतों से युक्त चेतावनी संकेतक
♦ भीड़ प्रबंधन व्यवस्था
♦ शिशुगृह या क्रेच की व्यवस्था
♦ वादियों को सलाह देने के लिये फ्रंट डेस्क की सुविधा

  • अदालत ने राज्य के मुख्य सचिवों को एक समिति बनाने का आदेश दिया है जिसमें अदालतों के विकास के लिये योजना बनाने हेतु एक सदस्य के रूप में विधि विभाग के सचिव  भी शामिल होना चाहिये।
  • यह समिति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा मनोनीत एक अधिकारी को भी शामिल करेगी।
  • उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित ज़िला अदालतों में सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिये राज्यों द्वारा तैयार स्थिति रिपोर्ट और योजनाओं की जाँच के लिये 23 अगस्त की तिथि निर्धारित की है।
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