शासन व्यवस्था
गंभीर आरोपों के तहत मंत्रियों को हटाना
- 23 Aug 2025
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प्रिलिम्स के लिये: मंत्रिपरिषद, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988।
मेंस के लिये: निर्वाचित प्रतिनिधियों का शासन और जवाबदेही, विधायी निगरानी में संसद और न्यायपालिका की भूमिका
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने गंभीर आपराधिक आरोपों में लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहे केंद्रीय और राज्य मंत्रियों को हटाने के लिये लोकसभा में 130वाँ संविधान (संशोधन) विधेयक, 2025 प्रस्तुत किया है।
130वाँ संविधान (संशोधन) विधेयक, 2025
- संशोधन: विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है, जो क्रमशः केंद्रीय मंत्रिपरिषद, राज्य मंत्रिपरिषद तथा केंद्रशासित प्रदेशों के मंत्रियों से संबंधित हैं।
- मुख्य उपबंध: इस कानून के दायरे में मंत्री (मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री सहित) को भी शामिल किया जाएगा। पाँच वर्ष या उससे अधिक की सज़ा वाले अपराधों के लिये गिरफ्तारी के बाद लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रखे गए व्यक्ति को प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जाएगा।
- हिरासत से रिहाई के बाद उसका निष्कासन प्रतिवर्ती हो सकता है अर्थात् वह पुनः पद धारण कर सकता है।
- उद्देश्य: संवैधानिक नैतिकता तथा सुशासन को कायम रखना, यह सुनिश्चित करना कि गंभीर आरोपों के तहत मंत्री पद पर बने न रह सकें और जनता का विश्वास बना रहे।
हिरासत में लिये गए मंत्रियों को पद से हटाने के लिये वर्तमान विधिक ढाँचा क्या है?
- गिरफ्तारी के बाद किसी मंत्री को स्वतः पद से नहीं हटाया जाता। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) की धारा 8 के तहत, विधायकों (मंत्रियों सहित) को केवल दो साल या उससे अधिक की हिरासत वाले कुछ अपराधों हेतु दोषी ठहराए जाने पर ही अयोग्य ठहराया जाता है।
- RPA, 1951 की धारा 8(1) के तहत, यदि कोई विधायक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत दोषी ठहराया जाता है और उसे केवल जुर्माने से दंडित किया जाता है, तो उसे छह वर्ष के लिये अयोग्य घोषित किया जाता है।
- यदि कारावास की सज़ा सुनाई जाती है, तो अयोग्यता संपूर्ण कारावास अवधि के साथ-साथ रिहाई के बाद छह वर्ष तक रहती है।
- मंत्रियों की योग्यताएँ विधायकों के समान ही होती हैं, यद्यपि उनके कर्तव्य भिन्न होते हैं।
- RPA, 1951 की धारा 8(1) के तहत, यदि कोई विधायक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत दोषी ठहराया जाता है और उसे केवल जुर्माने से दंडित किया जाता है, तो उसे छह वर्ष के लिये अयोग्य घोषित किया जाता है।
- निर्दोषता की धारणा दोषसिद्धि होने तक लागू होती है; केवल गिरफ्तारी के आधार पर किसी को पद से हटाया नहीं जाता।
मंत्रिस्तरीय जवाबदेही संबंधी प्रमुख न्यायिक घोषणाएँ
- पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन जनहित याचिका (2018): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह संसद के प्रावधानों से परे अयोग्यता/निर्हरता हेतु कानून नहीं बना सकता या नए आधार नहीं जोड़ सकता। अयोग्यता पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद के पास है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने एक सख्त कानून की सिफारिश की जिसके तहत राजनीतिक दलों को जघन्य अपराधों के आरोपियों की सदस्यता रद्द करने तथा उन्हें टिकट देने से इनकार करने की आवश्यकता होगी।
- मनोज नरूला बनाम भारत संघ (2014): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले मंत्रियों की नियुक्ति पर विधि के तहत कोई रोक नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री को सलाह दी कि वे गंभीर या जघन्य अपराधों के आरोपी लोगों को चुनने से बचें।
- वी. सेंथिल बालाजी मामला: वर्ष 2025 में, सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी को स्वतंत्रता या पद के बीच किसी एक का चयन करने का निर्देश दिया था, क्योंकि न्यायालय ने पाया था कि कथित नकद-के बदले-नौकरी घोटाले में जमानत के बाद उनकी पुनर्नियुक्ति से न्यायालय को गुमराह किया गया था।
- इसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी जमानत जारी रही।
- अरविंद केजरीवाल केस (2024): सर्वोच्च न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल को शराब नीति मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दे दी, उन्हें आधिकारिक कर्तव्यों से रोक दिया, त्याग-पत्र देने के लिये मजबूर नहीं किया गया, लेकिन बाद में उन्होंने स्वेच्छा से पद से त्याग-पत्र दे दिया।
- नए प्रावधानों की आवश्यकता क्यों है?
- राजनीति के आपराधिकरण से निपटना: कई निर्वाचित प्रतिनिधियों पर आपराधिक मामले लंबित रहते हैं। वर्तमान कानून केवल दोषसिद्धि के बाद ही उन्हें अयोग्य घोषित करते हैं, जिससे आरोपी मंत्री वर्षों तक पद पर बने रहते हैं और जनता का भरोसा कमज़ोर होता है।
- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) 2025 की रिपोर्ट बताती है कि विश्लेषित विधायकों में से 45% ने आपराधिक मामलों की घोषणा की है, जिनमें से 29% पर हत्या, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आरोप हैं।
- मंत्रियों की जवाबदेही मज़बूत करना: मंत्रियों के पास कार्यकारी शक्ति होती है और वे जाँच को प्रभावित कर सकते हैं।
- भारत में न्यायिक प्रक्रियाएँ धीमी हैं। जब तक दोषसिद्धि होती है, तब तक मंत्री दीर्घकालिक अवधि तक पद पर बने रह सकते हैं, जिससे जवाबदेही का उद्देश्य विफल हो जाता है।
- इसलिये आवश्यक है कि ऐसी व्यवस्था हो, जिससे गंभीर अपराधों में हिरासत में लिये गए मंत्री पद पर बने रहने से रोके जा सकें।
- शासन में जनता का विश्वास बढ़ाना: यह सुनिश्चित करना कि गंभीर आरोपों का सामना कर रहे मंत्रियों को अस्थायी रूप से हटा दिया जाए, सरकार की अखंडता की रक्षा करता है और नागरिकों को नैतिक शासन के बारे में आश्वस्त करता है।
- मंत्रिस्तरीय जवाबदेहिता को मज़बूत करने के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?
- कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों को मजबूत करना: गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे मंत्रियों को हटाने अथवा निलंबित करने के लिये स्पष्ट नियम लागू करना, यहाँ तक कि जाँच या हिरासत के दौरान भी।
- विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (1999) में विधायकों को तब अयोग्य घोषित करने का प्रस्ताव किया गया था, जब उन अपराधों के लिये आरोप सिद्ध हो जाते हैं, जिनमें पाँच वर्ष तक कारावास की सजा हो सकती है, पाँच वर्ष तक या रिहाई होने तक, जो भी पहले हो।
- चुनाव आयोग (2004) तथा विधि आयोग की 244वीं रिपोर्ट (2014) ने इस दृष्टिकोण का समर्थन किया।
- 244वीं विधि आयोग रिपोर्ट (2014) में प्रस्तावित किया गया था कि अयोग्यता तब होनी चाहिये जब न्यायालय द्वारा आरोप सिद्ध कर दिये जाएं, जिससे प्रथम दृष्टया न्यायिक संतुष्टि का संकेत मिलता हो कि मुकदमे के लिये पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है।
- विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (1999) में विधायकों को तब अयोग्य घोषित करने का प्रस्ताव किया गया था, जब उन अपराधों के लिये आरोप सिद्ध हो जाते हैं, जिनमें पाँच वर्ष तक कारावास की सजा हो सकती है, पाँच वर्ष तक या रिहाई होने तक, जो भी पहले हो।
- पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया: सुनिश्चित करना कि राजनीतिक दल मंत्रियों का चयन करते समय उचित सावधानी बरतें तथा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों से बचें।
- मंत्रिस्तरीय नियुक्तियों में सत्यनिष्ठा को प्राथमिकता देने के लिये प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के लिये दिशानिर्देश लागू करें।
- संसदीय निगरानी: मंत्रियों के आचरण की निगरानी के लिये समितियों और आचार समितियों की भूमिका को मज़बूत करना। संसद में जाँच के लिये उनकी संपत्तियों, देनदारियों और लंबित मामलों का समय-समय पर प्रकटीकरण को अनिवार्य करना।
- नैतिक शासन एवं आचार संहिता: पारदर्शिता, सत्यनिष्ठा और जनता की सेवा पर ज़ोर देते हुए एक बाध्यकारी मंत्रिस्तरीय आचार संहिता लागू करना।
- राजनीतिक दलों को आंतरिक जवाबदेही तंत्र अपनाने और नैतिक मानकों को लागू करने के लिये प्रोत्साहित करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: संवैधानिक और कानूनी उपाय निर्दोषता की धारणा को संतुलित करते हुए मंत्रिस्तरीय जवाबदेहिता को किस प्रकार मज़बूत कर सकते हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
मेन्स
प्रश्न. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत किसी जनप्रतिनिधि को किन आधारों पर अयोग्य ठहराया जा सकता है? ऐसे व्यक्ति को अयोग्य ठहराए जाने के विरुद्ध उपलब्ध उपायों का भी उल्लेख कीजिये (2019)
प्रश्न. अक्सर कहा जाता है कि 'राजनीति' और 'नैतिकता' एक साथ नहीं चलते। इस बारे में आपकी क्या राय है? अपने उत्तर को उदाहरणों द्वारा पुष्ट कीजिये। (2013)
प्रश्न. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद या राज्य विधानमंडल के सदस्य के चुनाव से उत्पन्न विवादों के निपटारे की प्रक्रियाओं पर चर्चा कीजिये। वे कौन से आधार हैं जिन पर किसी निर्वाचित उम्मीदवार का चुनाव शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष के पास क्या उपाय उपलब्ध हैं? संबंधित न्याय दृष्टांतों का संदर्भ लीजिये। (2022)