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जैव विविधता और पर्यावरण

जल से भारी धातुओं का निष्कासन

  • 18 Mar 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान ( Indian Institute of Technology- IIT), मंडी के शोधकर्त्ताओं के एक समूह द्वारा जल से भारी धातुओं (Heavy Metals) को निकालने हेतु एक नई विधि विकसित की गई है।

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • दूषित जल से भारी धातुओं को हटाने हेतु रासायनिक अवक्षेपण (Chemical Precipitation), आयन विनिमय (Ion exchange), अधिशोषण (Absorption), झिल्ली निस्पंदन (Membrane Filtration), रिवर्स ऑस्मोसिस ( Reverse Osmosis), सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन (Solvent Extraction) और विद्युत रासायनिक उपचार (Electrochemical Treatment) जैसे कई तरीकों का उपयोग किया गया है।
  • इनमें से कई विधियाँ उच्च पूंजी और परिचालन लागत वाली हैं। 
  • कम खर्चीली होने के कारण अधिशोषण (Adsorption) सबसे उपयुक्त विधियों में से एक है।  

शोध के बारे में:

  • शोध दल द्वारा एक बायोपॉलीमर आधारित सामग्री का उपयोग कर रेशेदार झिल्ली युक्त फिल्टर (Fibrous Membrane Filter) विकसित किया गया है जो जल के नमूनों से भारी धातुओं को अलग करने में मदद करता है।
    • इन झिल्लियों में अवशोषक (Adsorbents) सामग्री का उपयोग किया गया है जो जल से मिश्रित धातुओं को अलग करती है।
    • इन अवशोषकों में बड़े पैमाने पर चिटोसन नामक एक बायोपॉलीमर का प्रयोग किया गया है, जो केकड़े के खोल (Crab Shells ) से प्राप्त होता है और इसे बहुलक (नायलॉन) के साथ मिश्रित किया जाता है।
  • वित्तपोषण: इस अध्ययन का वित्तपोषण भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा किया गया है। 

अध्ययन में शामिल प्रक्रिया:  

  • इस अध्ययन में शोधकर्ताओं द्वारा ‘सॉल्यूशन ब्लोइंग’ (Solution Blowing) नामक एक प्रक्रिया का उपयोग किया गया है, जबकि नियमित फाइबर आधारित अवशोषक का उत्पादन ‘मेल्ट  ब्लोइंग’ (Melt Blowing) विधि द्वारा किया जाता है।
  • मेल्ट  ब्लोइंग: 
    • यह 0.5 माइक्रोन से पतले (माइक्रोमीटर की सीमा में) तंतुओं द्वारा सामग्री के निर्माण हेतु एक विशेष तकनीक है।
    • तंतुओं/फाइबर पर तीव्रता के साथ गर्म हवा को प्रवाहित किया जाता है जिससे इनकी लंबाई में वृद्धि होती है।
  • सॉल्यूशन ब्लोइंग: 
    • यह विलायक में बहुलक को मिश्रित करता है, जैसे- आयनिक तरल में सेल्यूलोज़।
    • विलयन को एक स्पिन नोज़ल (Spin Nozzle) के माध्यम से पंप किया जाता है जिसमें हवा को उच्च गति के साथ प्रवाहित किया जाता है।
    • सॉल्यूशन ब्लोइंग द्वारा ऐसे फाइबर का निर्माण किया जाता है जो व्यास में नैनोमीटर जितने होते हैं तथा एक मानव बाल की तुलना में सौ हज़ार गुना पतले होते हैं। ये मेल्ट  ब्लोइंग से प्राप्त उत्पादों की तुलना में अधिक महीन होते हैं। इनके तंतुओं की सतह का क्षेत्रफल काफी बढ़ जाता है, परिणामस्वरूप भारी जल से धातुओं को बेहतर तरीके से सोखा जा सकता है।
    • यह विधि नायलॉन जैसे सिंथेटिक पॉलीमर के साथ चिटोसन और लिग्निन जैसे प्राकृतिक पॉलीमर की उच्च सांद्रता के सम्मिश्रण में सक्षम है।
  • लाभ:
    • उच्च धातु निष्कासन क्षमता: सामान्य अवशोषक तंतु,  नैनोफाइबर झिल्लियों की सतह पर ही धातुओं को रोकने का कार्य करते हैं।
      • जबकि बायोपॉलीमर आधारित सामग्री जल की सतह के ऊपर ही भारी धातुओं को सोखने का कार्य करती है । 
    • झिल्ली का पुन: उपयोग: धातुओं को सोखने की क्षमता में कमी आने से पहले झिल्ली को कम-से-कम आठ बार पुन: उपयोग किया जा सकता है। 
    • अवशोषित तत्त्वों की प्राप्ति : मेटल-हाइड्रॉक्सिल नाइट्रेट फॉर्म (Metal-Hydroxyl Nitrat) में अवशोषक धातु को आसानी से अलग किया जा सकता है। 
    • औद्योगिक उत्पादन: शोधकर्त्ताओं ने धातु-दूषित जल के उच्च संस्करणों को साफ करने हेतु बड़े पैमाने पर फाइबर-आधारित अवशोषकों का उत्पादन करने के लिये एक विधि प्रदान की है।
    • पर्यावरण अनुकूल: सॉल्यूशन ब्लोइंग तकनीक सिंथेटिक पॉलीमर को प्राकृतिक पॉलीमर में परिवर्तित करने में सक्षम है।
      • जो वर्तमान समय में पर्यावरण जागरूकता के इस युग में एक स्वागत योग्य कदम होगा। 

भारी धातुएंँ

भारी धातुओं के बारे में:

  • भारी धातु शब्द किसी भी धात्विक रासायनिक तत्त्व (metallic chemical element) को संदर्भित करता है जिसका अपेक्षाकृत उच्च घनत्व (> 5 ग्राम / सेमी. 3) होता है तथा यह कम सांद्रता के साथ विषाक्त या ज़हरीली होती है।
  • भारी धातुओं के उदाहरणों में पारा (Hg), कैडमियम (Cd), आर्सेनिक (As), क्रोमियम (Cr), थैलियम (Tl), और सीसा (Pb) शामिल हैं।

भारी धातुओं का स्रोत: 

  • भारी धातुएँ पर्यावरण में प्राकृतिक तरीकों से या मानवीय गतिविधियों द्वारा शामिल होती हैं।
  • प्राकृतिक स्रोत
    • इसमें भौगोलिक घटनाएंँ जैसे- ज्वालामुखी विस्फोट, चट्टानों का अपक्षय आदि  शामिल हैं और नदियों के प्रवाह के कारण ये झीलों एवं महासागरों के जल में मिल जाती हैं।
    • मानवजनित स्रोत:
      • धातुओं का  खनन, विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, घरेलू अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट और उर्वरक उत्पादन जैसी मानव गतिविधियों के माध्यम से इन्हें जल में प्रवाहित किया जाता है।
      • केंद्रीय जल आयोग (CWC) के अनुसार, भारत की कई प्रमुख नदियों में स्थित जल गुणवत्ता केंद्रों से एकत्रित किये गए दो-तिहाई जल के नमूनों में भारी धातुओं की उपस्थिति मिली है, जिनकी मात्रा भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से अधिक है।
      • पश्चिम बंगाल के कई ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी में आर्सेनिक विषाक्तता (Arsenic Poisoning ) के कारण लोग अल्सर (Ulcers) की समस्या से पीड़ित हैं। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों की संख्या में पिछले पांँच वर्षों (वर्ष 2015 से वर्ष 2020) में 145% तक की वृद्धि हुई है।

मानव पर भारी धातुओं का प्रभाव:

  • कुछ आवश्यक भारी धातुएँ कोबाल्ट, तांबा, जस्ता और मैंगनीज़ मानव शरीर के लिये  आवश्यक होती हैं, लेकिन इनकी अधिकता स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो सकती है।
  • पीने के पानी में पाई जाने वाली भारी धातु जैसे- सीसा, पारा, आर्सेनिक और कैडमियम का हमारे शरीर पर कोई लाभकारी प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि शरीर में इन धातुओं का संचय गंभीर स्वास्थ्य समस्याएंँ उत्पन्न कर सकता है

धातु 

रोग 

पारा 

मिनीमाता 

कैडमियम

इटाई-इटाई 

लेड 

रक्ताल्पता

आर्सेनिक 

ब्लैक फुट

नाइट्रेट

ब्लू बेरी सिंड्रोम

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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