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भारतीय राजव्यवस्था

भारत में राज्यपाल के पद में सुधार

  • 02 Dec 2025
  • 86 min read

प्रिलिम्स के लिये: राज्यपाल, मुख्यमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, त्रिशंकु विधानसभा, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सरकारिया आयोग (1988), पूंछी आयोग (2010)। 

मेन्स के लिये: राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच विभिन्न तनाव के क्षेत्र, तनाव को कम करने के लिये समितियों की सिफारिशें और न्यायिक निर्णय, राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच स्वस्थ संबंध बनाए रखने के लिए आगे किये जाने वाले उपाय

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने केरल राज्यपाल की आलोचना की क्योंकि उन्होंने कुलपतियों (VC) की नियुक्ति पर अदालत द्वारा नियुक्त समिति की सिफारिशों की अवहेलना की, जिससे राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच तनाव उजागर हुआ।

  • अगस्त 2025 में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति धूलिया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया ताकि उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्टिंग की जा सके, जिससे राज्यपाल के कुलाधिपति पद में तनाव और संघर्ष उजागर हुआ।

भारत में राज्यपाल की भूमिका से संबंधित प्रमुख विवाद क्या हैं?

  • राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में भूमिका: अधिकांश मामलों में राज्यपाल स्वतःस्फूर्त (ex-officio) रूप से राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में कार्य करते हैं। कुलपति की नियुक्ति या विश्वविद्यालय प्रशासन के मामलों में जब राज्यपाल राज्य सरकार की सलाह के विपरीत कार्य करते हैं तब विवाद उत्पन्न होते हैं।
    • इससे संस्थानिक स्वायत्तता, राज्यपाल की वैकल्पिक शक्तियों की सीमा और केंद्र सरकार (जो राज्यपाल की नियुक्ति करती है) तथा राज्य सरकारों के बीच नियंत्रण को लेकर संघर्ष जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • विधेयकों को अनुमोदन देने में विलंब: प्रमुख विवाद तीन राज्यपाल शक्तियों से जुड़ा है:
    • अनुमोदन रोकना – राज्य के कानूनों को रोकने के लिये अनुमोदन न देना।
    • विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना – कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति के निर्णय के लिये सुरक्षित रखना।
    • लंबे समय तक निष्क्रिय रहना – विधेयकों को लंबे समय तक लंबित छोड़ देना।
  • राज्यपाल की नियुक्ति और कार्यकाल: राज्यपाल अक्सर राजनीतिक नियुक्ति माने जाते हैं, आमतौर पर वे सेवानिवृत्त राजनेता या केंद्रीय सत्ताधारी पार्टी के नजदीकी नौकरशाह होते हैं, जिससे उस राज्य में किसी अन्य पार्टी के शासन के दौरान पक्षपाती होने की धारणा उत्पन्न होती है।
    • उनका कार्यकाल “राष्ट्रपति की इच्छा” पर निर्भर करता है, जिससे केंद्र सरकार उन्हें कभी भी हटा सकती है, खासकर सरकार बदलने के बाद और इससे इस पद की स्वतंत्रता और गरिमा कमज़ोर हो जाती है।
  • राज्यपाल का विधायी हस्तक्षेप: विवाद तब उत्पन्न होते हैं जब राज्यपाल विधानसभा बुलाने में देरी करते हैं या बहुमत संकट के दौरान मुख्यमंत्री की सलाह को अनदेखा करके विधानसभा भंग करने के बजाय प्रतिद्वंद्वी को सरकार बनाने का निमंत्रण देते हैं
    • राज्यपाल कभी-कभी लोकसभा अध्यक्ष को अनदेखा करके विपक्ष के दावों के आधार पर फ्लोर टेस्ट का आदेश देते हैं और कभी ऐसी प्रक्रियाएँ (जैसे, वॉयस वोट बनाम फिजिकल डिवीजन) तय करते हैं जो सत्तारूढ़ पार्टी के लिये असुविधाजनक होती हैं
  • मुख्यमंत्री की नियुक्ति: किसी अधूरी बहुमत वाली विधानसभा (Post-Hung Assembly) में, राज्यपाल की वैकल्पिक शक्ति विवाद का कारण बनती है, जब उन्हें सबसे बड़ी पार्टी को दरकिनार करके या ऐसे गठबंधन को सरकार बनाने का आमंत्रण देने के लिये देखा जाता है, जिसका बहुमत स्पष्ट रूप से साबित नहीं होता।
    • इसके अलावा किसी मुख्यमंत्री की मृत्यु या त्यागपत्र के बाद, राज्यपाल द्वारा उत्तराधिकारी के चयन को लेकर विवाद हो सकता है, खासकर जब सत्तारूढ़ पार्टी आंतरिक रूप से विभाजित हो, जिससे पक्षपाती हस्तक्षेप के आरोप लगते हैं।

राज्यपाल के कार्यालय और आचरण में सुधार से संबंधित विभिन्न समितियाँ/आयोग क्या हैं?

          समितियाँ

                                              सिफारिशें

सरकारिया आयोग (1988)

  • एक अंतर-सरकारी परिषद को केंद्र-राज्य के मुद्दों को हल करना चाहिये ,जिसमें अनुच्छेद 356 का संयम से उपयोग किया जाए और राज्य विधानसभा को केवल संसद की मंजूरी से ही भंग किया जाए।

वेंकटचलैया आयोग (2002)

  • राज्यपाल अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करते हैं, तथा उन्हें शीघ्र हटाने के लिये मुख्यमंत्री से परामर्श की आवश्यकता होती है ।

पुंछी आयोग (2010)

  • राज्यपाल की कुलाधिपति की भूमिका संवैधानिक कर्तव्यों तक सीमित होनी चाहिये ,विधेयकों पर निश्चित समय-सीमा (आरक्षित विधेयकों के लिये छह महीने) के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिये, तथा अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को रोकने के लिये मज़बूत सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है ।

राज्य और राज्यपाल के बीच तनाव को हल करने के लिये प्रमुख न्यायिक घोषणाएँ क्या हैं?

  • नबाम रेबिया मामला 2016 : सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विधानसभा को बुलाने या स्थगित करने की राज्यपाल की शक्ति विवेकाधीन नहीं है और इसका प्रयोग केवल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर ही किया जाना चाहिये । 
  • शिवराज सिंह चौहान मामला, 2020 : सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि स्पीकर और राज्यपाल दोनों फ्लोर टेस्ट का आदेश दे सकते हैं - स्पीकर, यदि सरकार के बहुमत खोने की संभावना है, और राज्यपाल, यदि विश्वसनीय जानकारी बताती है कि बहुमत संदेह में है।
  • तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल मामला, 2023 : न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्यपालों को पुनः पारित विधेयकों को स्वीकृति देनी होगी, जब तक कि उनमें कोई महत्त्वपूर्ण अंतर न हो, तथा इसके लिये कठोर समय-सीमा निर्धारित की गई, अर्थात स्वीकृति रोकने के लिये एक माह , कैबिनेट की सलाह के विरुद्ध कार्रवाई के लिये तीन माह, तथा पुनर्विचारित विधेयकों के लिये एक माह।
  • 2025 राज्यपाल की शक्तियों पर राष्ट्रपति का संदर्भ (अनुच्छेद 143 के अंतर्गत) : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायालय अनुच्छेद 200 या 201 के अंतर्गत विधेयकों पर कार्रवाई के लिये राज्यपाल (या राष्ट्रपति) पर कोई कठोर समय-सीमा नहीं थोप सकते। इसने "मान्य स्वीकृति" के विचार को खारिज कर दिया। लेकिन न्यायालय ने दोहराया कि लंबे समय तक, बिना किसी कारण के की गई देरी सीमित न्यायिक समीक्षा को आकर्षित कर सकती है ।

राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच बार-बार होने वाले तनाव को कौन-से उपाय हल कर सकते हैं?

  • राज्यपाल के 'विवेकाधिकार' को संहिताबद्ध करना: सर्वोच्च न्यायालय और केंद्र सरकार को अनुच्छेद 163 के अस्पष्ट प्रावधान से आगे बढ़कर, उन विशिष्ट परिस्थितियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित और विस्तृत रूप से सूचीबद्ध करना चाहिये, जिनके तहत राज्यपाल अपने विवेक से कार्य कर सकते हैं। इससे मनमानी व्याख्याएँ कम होंगी।
  • प्रक्रियात्मक सुधार: बहुमत साबित करने के लिये ‘फ्लोर टेस्ट’ ही एकमात्र कानूनी रूप से स्वीकार्य तंत्र होना चाहिये। राज्यपाल को केवल सबसे अधिक समर्थन वाले दावेदार को ही शपथ दिलानी चाहिये, जिसे 48 घंटों के भीतर सदन में बहुमत साबित करना होगा।
  • नियुक्ति प्रक्रिया को संस्थागत बनाना: राज्यपालों के चयन के लिये एक स्वतंत्र कॉलेजियम या समिति (जैसे, प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष और संबंधित मुख्यमंत्री की सदस्यता वाली) की स्थापना करना। इससे नियुक्तियों का राजनीतिकरण नहीं होगा और निष्पक्षता सुनिश्चित होगी।
  • स्थापित परंपराओं का पालन करना: राज्यपालों को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना चाहिये तथा टकराव के बजाय सहयोग सुनिश्चित करने के लिये मुख्यमंत्री के साथ पारदर्शी, नियमित संवाद बनाए रखना चाहिये।
  • आयोग की सिफारिशों का कार्यान्वयन: सरकारिया आयोग (1988) और पुंछी आयोग (2010) द्वारा प्रस्तावित प्रमुख सुधार - जिनमें राज्यपाल की नियुक्ति से पहले मुख्यमंत्री से परामर्श करना और राज्य के बाहर से प्रतिष्ठित व्यक्तियों का चयन करना शामिल है - को गंभीरता से लागू किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच बार-बार उत्पन्न होने वाले तनाव का मुख्य कारण उनके विवेकाधिकार संबंधी शक्तियों की अस्पष्टता और राजनीतिक आधार पर होने वाली नियुक्तियाँ हैं।
एक स्थायी समाधान के लिये आवश्यक है कि प्रमुख समितियों की सुझाव को लागू किया जाए, राज्यपाल के विवेकाधिकार को स्पष्ट रूप से संहिताबद्ध किया जाए और निर्वाचित सरकार की सलाह और सहायता पर कार्य करने की संवैधानिक भावना का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाए।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: राज्यपाल का पद अक्सर केंद्र-राज्य संबंधों में एक 'आधार स्तंभ' (linchpin) के रूप में वर्णित किया जाता है, फिर भी यह बार-बार 'टकराव का केंद्र' (flashpoint) बन जाता है। इस विरोधाभास के कारणों का विश्लेषण कीजिए और उपचारात्मक उपाय सुझाइए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों को कौन-सा संवैधानिक प्रावधान नियंत्रित करता है?
अनुच्छेद 163 विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान करता है, लेकिन राज्यपाल को सामान्यतः मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना चाहिये।

2. राज्यपालों के संबंध में सरकारिया आयोग की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?
असंबद्ध वैधानिक शक्तियों को सीमित करना, पाँच वर्ष के कार्यकाल का सम्मान करना तथा हटाने या नियुक्ति से पहले परामर्श सुनिश्चित करना।

3. अनुच्छेद 143 के अंतर्गत 2025 के राष्ट्रपति संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का रुख क्या था?
यद्यपि न्यायालय ने विधेयकों पर स्वीकृति के लिये कठोर समय-सीमा लागू करने से इनकार कर दिया, परंतु उसने यह भी कहा कि राज्यपाल द्वारा की गई लंबी और अस्पष्ट देरी न्यायिक समीक्षा के अधीन है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में कोई आपराधिक कार्यवाही संस्थापित नहीं की जाएगी।  
  2. किसी राज्य के राज्यपाल की परिलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किये जाएँगे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (C)


प्रश्न. प्निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना।  
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना। राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना।  
  3. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 1 और 3

(c) केवल 2, 3 और 4

(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2013)

(a) भारत में एक ही व्यक्ति को एक समय में दो या अधिक राज्यों में राज्यपाल नियुक्त नहीं किया जा सकता।

(b) भारत में राज्यों के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किये जातें हैं, ठीक वैसे ही जैसे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जातें हैं।

(c) भारत के संविधान में राज्यपाल को उसके पद से हटाने हेतु कोई भी प्रक्रिया अधिकथित नहीं है।

(d) विधायी व्यवस्था वाले संघ राज्यक्षेत्र में मुख्यमंत्री की नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा बहुमत समर्थन के आधार पर की जाती है।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग के लिये आवश्यक शर्तों की चर्चा कीजिये। राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों को विधायिका के समक्ष रखे बिना पुन: प्रख्यापित करने की वैधता पर चर्चा कीजिये। (2022)

Q. यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज्म) सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये।

(2014)

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