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रंगराजन गरीबी रेखा

  • 22 Oct 2025
  • 52 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग के अर्थशास्त्रियों ने एक पेपर प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2022-23 के आँकड़ों का उपयोग करके भारत के 20 प्रमुख राज्यों के लिये रंगराजन गरीबी रेखा को ‘अद्यतन’ किया।

RBI के ‘अद्यतन रंगराजन गरीबी रेखा’ पर आधारित पेपर की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • बड़ा सुधार: ओडिशा और बिहार में वर्ष 2011-12 के बाद से गरीबी के स्तर में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई, ओडिशा में ग्रामीण गरीबी 47.8% से घटकर 8.6% हो गई और बिहार में शहरी गरीबी 50.8% से घटकर 9.1% हो गई।
  • सबसे कम गिरावट: केरल और हिमाचल प्रदेश में गरीबी के प्रतिशत में सबसे कम गिरावट देखी गई, क्योंकि वहाँ गरीबी का स्तर पहले से ही कम था।
  • ग्रामीण और शहरी चरम सीमाएँ: वर्ष 2022-23 में ग्रामीण गरीबी हिमाचल प्रदेश में सबसे कम (0.4%) तथा छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक (25.1%) थी। शहरी गरीबी तमिलनाडु में सबसे कम (1.9%) एवं छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक (13.3%) थी।
  • उपभोग पैटर्न में परिवर्तन: अध्ययन में स्वीकार किया गया है कि वर्ष 2011-12 और 2022-23 के बीच उपभोग पैटर्न में परिवर्तन हुआ है, जिससे पता चलता है कि भविष्य में गरीबी रेखाओं को और अधिक अद्यतन करने की आवश्यकता हो सकती है।

गरीबी क्या है?

  • गरीबी: विश्व बैंक के अनुसार, गरीबी ‘सुख-सुविधा में स्पष्ट अभाव’ है। गरीब वे लोग हैं, जिनके पास न्यूनतम सीमा से ऊपर उठने के लिये पर्याप्त आय या उपभोग नहीं है।
    • नीति आयोग के अनुसार, गरीबी को गरीबी रेखा (बुनियादी सामाजिक रूप से स्वीकार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आवश्यक न्यूनतम व्यय) निर्धारित करके मापा जाता है और गरीबी अनुपात इस रेखा से नीचे रहने वाली आबादी के हिस्से को दर्शाता है।
    • विश्व बैंक ने अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा को 2.15 अमेरिकी डॉलर/दिन [2017 क्रय शक्ति समता (PPP)] से बढ़ाकर 3.00 अमेरिकी डॉलर/दिन (2021 PPP) कर दिया है।
  • गरीबी को मापने का महत्त्व: गरीबी को मापना अत्यंत आवश्यक है, ताकि हम विभिन्न परिवारों, क्षेत्रों और देशों के बीच अभाव की तुलना कर सकें, समय के साथ होने वाले परिवर्तनों को ट्रैक कर सकें, प्रवृत्तियों की निगरानी कर सकें और प्रभावी गरीबी-उन्मूलन रणनीतियों की योजना बनाने, उन्हें लागू करने तथा उनका मूल्यांकन करने में सहायता मिल सके।
  • भारत में गरीबी का अनुमान:
    • स्वतंत्रता-पूर्व: गरीबी का अनुमान लगाने के प्रयास दादाभाई नौरोजी की पुस्तक ‘भारत में गरीबी और गैर-ब्रिटिश शासन’ से शुरू हुए।इसके बाद राष्ट्रीय योजना समिति (1938) तथा बॉम्बे योजना (1944) आई, जिसमें न्यूनतम जीवन स्तर एवं आय के स्तर पर चर्चा की गई।
    • स्वतंत्रता के बाद: योजना आयोग (1962) ने आधिकारिक गरीबी आकलन शुरू किया।
      • बाद में अलघ समिति (1979) और लकड़ावाला समिति (1993) जैसी समितियों ने उपभोग व्यय एवं कैलोरी मानदंडों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कार्यप्रणाली को परिष्कृत किया।
    • तेंदुलकर कमेटी (2009): कैलोरी-आधारित मानकों से हटकर, इसने संपूर्ण भारत के लिये समान पॉवर्टी लाइन बास्केट (PLB) की सिफारिश की और मिक्स्ड रेफरेंस पीरियड (MRP) खपत डेटा को अपनाया।
      • इसने वर्ष 2011-12 की गरीबी रेखा का अनुमान ₹ 816 (ग्रामीण) और ₹ 1,000  (शहरी) प्रति व्यक्ति प्रति माह लगाया।
    • रंगराजन कमेटी (2014): तेंदुलकर पद्धति की आलोचना के बाद बनाई गई इस कमेटी ने ग्रामीण और शहरी PLB को अलग-अलग कर दिया, जिसमें प्रति व्यक्ति के लिये प्रति माह ₹ 972 (ग्रामीण) और ₹ 1,407 (शहरी) का अनुमान लगाया गया था।
      • हालाँकि, सरकार ने इसकी सिफारिशों को आधिकारिक रूप से लागू नहीं किया
  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव (OPHI) द्वारा वर्ष 2010 में प्रारंभ किया गया MPI गरीबी को केवल आय के आधार पर नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा तथा जीवन स्तर में कमी के रूप में मापता है।
    • यह न केवल गरीब आबादी के अनुपात को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि वे एक साथ कितनी विभिन्न वंचनाओं (Deprivations) का अनुभव कर रहे हैं।
    • वर्ष 2025 के वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के अनुसार, 109 देशों में लगभग 1.1 बिलियन लोग (18.3%) तीव्र बहुआयामी गरीबी में रह रहे हैं, जिनमें से 43.6% लोग कम-से-कम आधे सूचकों में गंभीर वंचना का सामना कर रहे हैं।
  • राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (NMPI): नीति आयोग राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आँकड़ों का उपयोग करके NMPI को मापता है।
    • भारत में बहुआयामी गरीबी वर्ष 2013-14 में 29.17% से घटकर वर्ष 2022-23 में 11.28% रह गई है, जिससे लगभग 24.82 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं।
    • गिनी सूचकांक भी वर्ष 2011-12 में 28.8 से घटकर 2022-23 में 25.5 हो गया है, जो असमानता में कमी को दर्शाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत का गरीबी मापन दृष्टिकोण आय-आधारित पद्धति से बहुआयामी ढाँचे की ओर कैसे विकसित हुआ है?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):

1. विश्व बैंक की गरीबी की परिभाषा क्या है?
गरीबी को कल्याण में स्पष्ट अभाव के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसे बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपर्याप्त आय या उपभोग के आधार पर मापा जाता है।

2. भारत में पहली आधिकारिक गरीबी का अनुमान किसने तैयार किया ?
योजना आयोग ने वर्ष 1962 में भारत में पहली आधिकारिक गरीबी आकलन प्रक्रिया शुरू की थी।

3. तेंदुलकर कमेटी (2009) द्वारा किया गया प्रमुख परिवर्तन क्या था ?
इसने कैलोरी-आधारित मानकों से हटकर संपूर्ण भारत के लिये समान पॉवर्टी लाइन बास्केट (PLB) की सिफारिश की और मिक्स्ड रेफरेंस पीरियड (MRP) खपत डेटा को अपनाया।

4. राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (NMPI) क्या मापता है ?
NFHS के आँकड़ों का उपयोग करते हुए यह स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में अभावों को मापता है, जिससे गरीबी की घटनाओं एवं तीव्रता, दोनों का आकलन किया जाता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. UNDP के समर्थन से 'ऑक्सफोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास नेतृत्व' द्वारा विकसित 'बहु-आयामी निर्धनता सूचकांक' में निम्नलिखित में से कौन-सा/से सम्मिलित है/हैं? (2012)

1. पारिवारिक स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, संपत्ति तथा सेवाओं से वंचन

2. राष्ट्रीय स्तर पर क्रय-शक्ति समता

3. राष्ट्रीय स्तर पर बजट घाटे की मात्रा और GDP की विकास दर

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 


मेंस 

प्रश्न. निर्धनता और कुपोषण एक विषाक्त चक्र का निर्माण करते हैं, जो मानव पूंजी निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इस चक्र को तोड़ने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं ? (2024)

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