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लोक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024

  • 07 Feb 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024, लोकसभा, ऑप्टिकल मार्क रिकग्निशन (ओएमआर), यूपीएससी सीएसई विगत वर्ष के प्रश्न।

मेन्स के लिये:

लोक परीक्षा (कदाचार रोकथाम) विधेयक-2024 , विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनके निर्माण तथा  कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोक परीक्षा (कदाचार रोकथाम) विधेयक-2024 को लोकसभा में पेश किया गया है, जिसका उद्देश्य लोक परीक्षा प्रणाली में अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता लाने के लिये “अनुचित साधनों” को रोकना है।

  • एक बार कानून बन जाने के बाद यह विधेयक "राज्यों के लिये अपने विवेक पर इसे अपनाने के क्रम में एक मॉडल मसौदा" के रूप में कार्य करेगा। 

इस प्रकार के विधेयक की आवश्यकता:

  • प्रश्न पत्र लीक के मामले:
    • हाल के वर्षों में देशभर की भर्ती परीक्षाओं में प्रश्न-पत्र लीक होने के मामले बहुत बड़ी संख्या में सामने आए हैं।
      • पिछले पाँच वर्षों में 16 राज्यों में पेपर लीक की कम-से-कम 48 घटनाएँ हुईं हैं, जिससे सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया बाधित हुई है।
      • इससे लगभग 1.2 लाख पदों के लिये होने वाली भर्ती से कम-से-कम 1.51 करोड़ आवेदकों का जीवन प्रभावित हुआ है।

  • कदाचार के कारण परीक्षाओं में देरी होना:
    • सार्वजनिक परीक्षाओं में कदाचार के कारण देरी होती है और परीक्षाएँ रद्द हो जाती हैं, जिससे लाखों युवाओं की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • वर्तमान में अपनाए गए अनुचित तरीकों अथवा किये गए अपराधों से निपटने के लिये कोई विशिष्ट ठोस कानून नहीं है।
    • व्यापक केंद्रीय कानून के माध्यम से परीक्षा प्रणाली के भीतर कमज़ोरियों का लाभ उठाने वाले तत्त्वों की पहचान करना और प्रभावी ढंग से उनका समाधान करना भी महत्त्वपूर्ण है।
  • अधिक पारदर्शिता लाने के लिये:
    • विधेयक का उद्देश्य लोक परीक्षा प्रणालियों में अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता लाना है साथ ही युवाओं को आश्वस्त करना है कि उनके ईमानदारीपूर्ण तथा वास्तविक प्रयासों को उचित पुरस्कार के साथ उनका भविष्य सुरक्षित होगा।
    • विधेयक का उद्देश्य उन व्यक्तियों, संगठित समूहों अथवा संस्थानों को प्रभावी ढंग से और कानूनी रूप से रोकना है जो विभिन्न अनुचित तरीकों में लिप्त हैं साथ ही मौद्रिक या अनुचित लाभ के लिये  लोक परीक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

विधेयक के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • लोक परीक्षा को परिभाषित करता है:
    • धारा 2(k) के तहत, लोक परीक्षा को विधेयक की अनुसूची में सूचीबद्ध "लोक परीक्षा प्राधिकरण" या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा आयोजित किसी भी परीक्षा के रूप में परिभाषित किया गया है।
      • अनुसूची में पाँच लोक परीक्षा प्राधिकरणों, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), कर्मचारी चयन आयोग (SSC), रेलवे भर्ती बोर्ड (RRB), बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान (IBPS), राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) की सूची है।
        • NTA JEE (मेन),  NEET-UG, UGC-NET, कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) जैसी परीक्षा आयोजित करता है।
    • इन नामित सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरणों के अलावा “केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय या विभाग और कर्मचारियों की भर्ती के लिये उनसे जुड़े तथा अधीनस्थ कार्यालय” भी नए कानून के दायरे में आएँगे।
      • केंद्र सरकार आवश्यकता पड़ने पर एक अधिसूचना के माध्यम से अनुसूची में नए प्राधिकरण जोड़ सकती है।
  • सज़ा:
    • विधेयक की धारा 9 में कहा गया है कि सभी अपराध संज्ञेय, गैर-ज़मानती और गैर-शमनयोग्य होंगे।
      • संज्ञेय अपराधों में मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना मामले की जाँच करना पुलिस का कर्त्तव्य है।
      • एक गैर-शमनयोग्य अपराध वह है जिसमें शिकायतकर्त्ता द्वारा मामला वापस नहीं लिया जा सकता है, भले ही शिकायतकर्त्ता और आरोपी के बीच समझौता हो गया हो तथा मुकदमा आवश्यक रूप से चलना चाहिये।
        • इसका तात्पर्य यह है कि बिना वारंट के गिरफ्तारी की जा सकती है और ज़मानत अधिकार का मामला नहीं होगा, बल्कि एक मजिस्ट्रेट यह निर्धारित करेगा कि अभियुक्त को ज़मानत पर रिहा किया जा सकता है या नहीं।
    • "अनुचित साधनों और अपराधों का सहारा लेने वाले किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों" के लिये सज़ा तीन से पाँच वर्ष का कारावास और 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
    • यदि दोषी ज़ुर्माना देने में विफल रहता है, तो भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रावधानों के अनुसार कारावास की अतिरिक्त सज़ा दी जाएगी।
    • सेवा प्रदाताओं के लिये सज़ा:
      • परीक्षाओं के संचालन के लिये सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरण द्वारा नियुक्त सेवा प्रदाता भी 1 करोड़ रुपए तक के ज़ुर्माने के साथ दंडित किया जा सकता है और यदि सेवा प्रदाता अवैध गतिविधियों में शामिल है, तो परीक्षा की आनुपातिक लागत भी उससे वसूल की जाएगी।
  • अनुचित साधनों की परिभाषा:
    •  विधेयक की धारा 3 में कम-से-कम 15 कार्यों को सूचीबद्ध किया गया है जो मौद्रिक या गलत लाभ के लिये सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों का उपयोग करने के बराबर हैं।
      • इन कृत्यों में शामिल हैं: प्रश्न पत्र या उत्तर कुंजी या उसके हिस्से को लीक करना और प्रश्न पत्र या ऑप्टिकल मार्क रिकॉग्निशन (OMR) रिस्पॉन्स शीट को बिना अधिकार के अपने कब्जे में लेना, सार्वजनिक परीक्षा के दौरान किसी अनधिकृत व्यक्ति द्वारा प्रश्नों का समाधान प्रदान करना।
    • यह अनुभाग उम्मीदवारों की शॉर्ट-लिस्टिंग या किसी उम्मीदवार की योग्यता या रैंक को अंतिम रूप देने हेतु आवश्यक किसी भी दस्तावेज़ के साथ छेड़छाड़ को भी सूचीबद्ध करता है- कंप्यूटर नेटवर्क या कंप्यूटर सिस्टम के साथ छेड़छाड़, धोखाधड़ी या आर्थिक लाभ के लिये फर्जी वेबसाइट बनाना तथा फर्जी प्रवेश पत्र या ऑफर लेटर जारी करना गैरकानूनी कृत्य है।
  • जाँच और प्रवर्तन:
    • विधेयक में कहा गया है कि प्रस्तावित कानून के तहत अपराधों की जाँच पुलिस उपाधीक्षक या सहायक पुलिस आयुक्त स्तर से नीचे के अधिकारियों द्वारा नहीं की जाएगी।
  • राज्यों के लिये मॉडल मसौदा:
    • यह विधेयक राज्यों द्वारा अपने विवेकाधिकार से इसके अंगीकरण हेतु एक मॉडल मसौदे के रूप में भी कार्य करेगा, जिसका उद्देश्य आपराधिक तत्त्वों को उनकी राज्य-स्तरीय सार्वजनिक परीक्षाओं को बाधित करने से रोकने में राज्यों की सहायता करना है।
  • उच्च स्तरीय राष्ट्रीय तकनीकी समिति:
    • सार्वजनिक परीक्षाओं पर एक उच्च स्तरीय राष्ट्रीय तकनीकी समिति का गठन किया जाएगा।
      • यह समिति डिजिटल प्लेटफॉर्म को सुरक्षित करने के लिये प्रोटोकॉल विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करेगी। यह सुव्यवस्थित IT सुरक्षा प्रणालियों को कार्यान्वित करने के लिये रणनीति तैयार करेगा।
      • यह समिति  IT तथा भौतिक बुनियादी ढाँचे दोनों के संबंध में राष्ट्रीय सेवा एवं मानक स्तर तैयार करेगी। दक्षता व विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये परीक्षाओं के संचालन हेतु  इन मानकों का कार्यान्वन किया जाएगा।

विधेयक से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • राज्य सरकारों का विवेकाधिकार:
    • हालाँकि विधेयक का उद्देश्य राज्यों के लिये इसे अंगीकरण के लिये एक मॉडल के रूप में प्रदर्शित करना है किंतु राज्य सरकारों को दिए गए विवेकाधिकार से विभिन्न राज्यों में इसके कार्यान्वयन में भिन्नता हो सकती है।
      • इससे सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों के उपयोग को रोकने में कानून की प्रभावशीलता संभावित रूप से कमज़ोर हो सकती है।
  • प्रतिबंधों से संबंधित खामियाँ:
    • अपराधियों के लिये दंड के संबंध में विधेयक के प्रावधानों में खामियाँ हो सकती हैं जिनका उपयोग दांडिक प्रतिबंधों से बचने के लिये किया जा सकता है।
      • उदाहरणार्थ यदि सेवा प्रदाता पर लगाया गया जुर्माना अनुचित साधनों से प्राप्त वित्तीय लाभ के अनुरूप नहीं होने की स्थिति में इसका पर्याप्त निवारक के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय तकनीकी समिति पर स्पष्टता का अभाव:
    • हालाँकि विधेयक में सार्वजनिक परीक्षाओं पर एक उच्च-स्तरीय राष्ट्रीय तकनीकी समिति के गठन का प्रस्ताव है किंतु इसकी संरचना, योग्यता तथा अधिदेश के संबंध में स्पष्टता का अभाव है।
    • समिति के सदस्यों की योग्यता और संरचना पर स्पष्ट दिशानिर्देशों के बिना, परीक्षा संचालन के लिये सुव्यवस्थित IT सुरक्षा प्रणालियों तथा राष्ट्रीय मानकों को तैयार करने में उनकी विशेषज्ञता एवं निष्पक्षता के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • विधिक चुनौतियों की संभावना:
    • विधेयक को अपराधों की संज्ञेयता, गैर-ज़मानतीता तथा गैर-शमनक्षमता संबंधी प्रावधानों से संबंधित विधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इस मत पर असहमति हो सकती है कि अपराधों की गंभीरता को देखते हुए ये कठोर दंड उचित हैं अथवा नहीं तथा क्या नैसर्गिक न्याय सिद्धांतों का अनुपालन किया जाता है।

निष्कर्ष

  • विधेयक नामित कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा जाँच तथा प्रवर्तन के उपायों की रूपरेखा तैयार करता है किंतु परीक्षा प्रक्रिया में उत्तरदायित्व एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये व्यापक निरीक्षण तंत्र की आवश्यकता है।
  • इसमें परीक्षाओं के संचालन का अनुवीक्षण करना, शिकायतों का निवारण करना एवं कदाचार का प्रभावी ढंग से पता लगाने और उसकी रोकथाम के लिये परीक्षा प्रक्रियाओं का अंकेक्षण करना शामिल है।

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