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भारतीय अर्थव्यवस्था

जनजातीय क्षेत्रों में मोती की खेती को बढ़ावा: ट्राइफेड

  • 21 Sep 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ

मेन्स के लिये:

मोती की खेती के लाभ और इसो बढ़ावा देने संबंधी उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ट्राइफेड (भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ) ने आदिवासी क्षेत्रों में मोती की खेती को बढ़ावा देने के लिये झारखंड स्थित ‘पूर्ति एग्रोटेक’ के साथ एक समझौता किया है।

भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ

  • यह राष्ट्रीय स्तर का एक शीर्ष संगठन है, जो जनजातीय मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। यह वर्ष 1987 में अस्तित्व में आया था।
  • इसका प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है और देश में विभिन्न स्थानों पर स्थित 13 क्षेत्रीय कार्यालयों का नेटवर्क है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी उत्पादों जैसे- धातु शिल्प, आदिवासी वस्त्र आदि के विपणन व विकास के माध्यम से देश में आदिवासी लोगों का सामाजिक-आर्थिक विकास करना है।
  • यह मुख्य रूप से दो कार्य करता है- लघु वनोपज (MFP) विकास एवं खुदरा विपणन।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • समझौते के तहत विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के अलावा ‘पूर्ति एग्रोटेक’ द्वारा 141 ट्राइब्स इंडिया आउटलेट्स के माध्यम से मोती बेचे जाएंगे।
    • ‘पूर्ति एग्रोटेक’ के केंद्र को ‘वन धन विकास केंद्र क्लस्टर’ (VDVKC) के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके अलावा झारखंड में मोती की खेती के लिये ऐसे 25 ‘वन धन विकास केंद्र क्लस्टर’ विकसित करने की योजना है।
      • ‘वन धन विकास केंद्र क्लस्टर’ आदिवासियों को कौशल उन्नयन एवं क्षमता निर्माण प्रशिक्षण प्रदान करते हैं और प्राथमिक प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्द्धन सुविधाओं की स्थापना करते हैं।
      • ट्राइफेड ने प्राकृतिक 'वन धन' उत्पादों को बढ़ावा देने और बेचने के लिये ई-किराना प्लेटफॉर्म ‘बिग बास्केट’ के साथ एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किये हैं।
    • सीपों का प्रजनन एवं मोतियों का विकास व्यवसाय की एक सतत् विधि है और इसे प्रायः उन आदिवासियों द्वारा अभ्यास में लाया जा सकता है, जिनकी आस-पास के जल निकायों तक पहुँच है।
    • यह आने वाले समय में आदिवासियों की आजीविका के लिये गेम-चेंजर साबित होगा।
  • मोती की खेती
    • मोती दुनिया में एकमात्र ऐसा रत्न है, जो किसी जीवित प्राणी से प्राप्त होता है। सीप और मसल्स जैसे मोलस्क इन कीमती रत्नों का उत्पादन करते हैं 
      • पर्ल सीप की खेती दुनिया के कई देशों में सुसंस्कृत मोतियों के उत्पादन के रूप में की जाती है।
    • मीठे पानी के मोती को मसल्स का उपयोग करके खेतों में उगाया जाता है। चूँकि मसल्स ऑर्गेनिक होस्ट होते हैं, इसलिये मोती प्राकृतिक रूप से खारे पानी की सीपों की तुलना में 10 गुना बड़े हो सकते हैं और ताज़े पानी के मोती की चमक भी अधिक होती है।
  • लाभ:
    • किसानों की आय में बढ़ोतरी: भारत में किसानों की आय आमतौर पर जलवायु जैसे बाहरी कारकों पर निर्भर होती है और यह निर्भरता अक्सर उनको नुकसान पहुँचती है, लेकिन दूसरी ओर, मोती की खेती इन कारकों से पूरी तरह से स्वतंत्र है और अधिक लाभ देती है।
    • पर्यावरण के अनुकूल: मोती की खेती पर्यावरण अनुकूल है। यह मछली को रहने के लिये आवास प्रदान करती है जिससे प्रजातियों की विविधता में सुधार होता है।
    • जल शोधन: फिल्टर फीडर सीप (Filter feeder oysters) भी जल को शुद्ध करने का कार्य करते  हैं। एक अकेला सीप एक दिन में 15 गैलन पानी को साफ करता है।
      • यह जल में भारी धातुओं को एक जगह इकट्ठा करता है और हानिकारक प्रदूषकों को भी हटाता है।
  • शुरू की गई पहलें:
    • मोती की खेती करने वाले किसान प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
    • मोती की खेती के दायरे को ध्यान में रखते हुए मत्स्य पालन विभाग ने इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने हेतु नीली क्रांति योजना में मोती पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसे एक उप-घटक के रूप में शामिल किया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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