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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पृथ्वी की सुरक्षा हेतु एक समझौता

  • 22 Jan 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विश्व स्वास्थ्य संगठन (UN Environment and the World Health Organisation) द्वारा पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिमों को रोकने के लिये की जा रही कार्यवाहियों में तेज़ी लाने हेतु एक नए व्यापक सहयोग समझौते पर सहमति व्यक्त की गई है। गौरतलब है कि पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिमों के कारण सालाना तकरीबन 12.6 मिलियन लोगों की मृत्यु होती है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के प्रमुख और डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक द्वारा वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
  • इस समझौते के अंतर्गत अपशिष्ट एवं रसायन प्रबंधन, पानी की गुणवत्ता में सुधार, भोजन और पोषण के मुद्दों पर सहयोग जैसे पक्षों को भी शामिल किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त इस समझौते के अंतर्गत जलवायु, पर्यावरण और स्वास्थ्य लाभों को मद्देनज़र रखते हुए वायु प्रदूषण को कम करने हेतु ब्रीथ लाइफ एडवोकेसी अभियान (Breathe Life advocacy campaign) के संयुक्त प्रबंधन के प्रावधान को भी शामिल किया गया है।
  • यह समझौता पिछले 15 वर्षों में पर्यावरण और स्वास्थ्य समस्याओं के आलोक में संयुक्त कार्य के संबंध में सबसे महत्त्वपूर्ण औपचारिक समझौते का प्रतिनिधित्व करता प्रतीत होता है।

प्रभाव

  • जैसा कि हम सभी जानते हैं हमारा स्वास्थ्य सीधे पर्यावरण के स्वास्थ्य से संबंधित होता है, यदि पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है तो उसका सीधा प्रभाव हमारे जीवन में परिलक्षित होने लगता है।
  • उदाहरण के तौर पर, वायु एवं जल प्रदूषण के साथ-साथ रासायनिक खतरों के परिणामस्वरूप सालाना 12.6 मिलियन लोग काल का ग्रास बन जाते हैं। यदि इस संबंध में संयुक्त प्रयासों को गति प्रदान करते हुए ऐसे समझौते को बल दिया जाता है तो बहुत हद तक इस समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है। 
  • इस प्रकार होने वाली मौतों में से अधिकांश एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों में होती हैं।
  • दोनों संस्थाओं के मध्य हुआ यह नया समझौता संयुक्त अनुसंधान, उपकरणों के विकास और मार्गदर्शन, क्षमता निर्माण, सतत् विकास लक्ष्यों की निगरानी, वैश्विक और क्षेत्रीय भागीदारी के संबंध में एक व्यवस्थित रूपरेखा प्रस्तुत करता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन विश्व के देशों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर आपसी सहयोग एवं मानक विकसित करने की एक महत्त्वपूर्ण संस्था है। 
  • इस संस्था की स्थापना 7 अप्रैल, 1948 में की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक आनुषंगिक इकाई है। 
  • इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा शहर में स्थित है। 
  • इसका भारतीय मुख्यालय राजधानी क्षेत्र नई दिल्ली में है। 
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के 193 सदस्य देश तथा दो संबद्ध सदस्य हैं। 
  • इसका लक्ष्य सभी लोगों को स्वास्थ्य के उच्चतम संभव स्तर की प्राप्ति में सहायता प्रदान करना है। 
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन को सर्वाधिक सफल संयुक्त राष्ट्र अभिकरणों में से एक माना जाता है।
  • यह अंतरिम स्वास्थ्य कार्यों से संबंधित समन्वयकारी प्राधिकरण के रूप में भी कार्य करता है तथा स्वास्थ्य मामलों में सक्रिय सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • इसके कार्यक्रमों में स्वास्थ्य सेवाओं का विकास, रोग निवारण व नियंत्रण, पर्यावरणीय स्वास्थ्य का संवर्द्धन, स्वस्थ मानव शक्ति विकास तथा जैव-चिकित्सा, स्वास्थ्य सेवाओं, शोध व स्वास्थ्य कार्यक्रमों का विकास एवं प्रोत्साहन शामिल हैं।

क्या है सीओपी-21?

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के ढाँचे यानी यूएनएफसीसीसी (United Nations Framework Convention on Climate Change - UNFCCC) में शामिल सदस्यों का सम्मेलन कॉन्‍फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (Conferences of the Parties-COPs) कहलाता है।
  • ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को स्थिर करने और पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने के लिये वर्ष 1994 में इसका गठन किया गया था। 
  • वर्ष 1995 से सीओपी की बैठक प्रतिवर्ष होती है।
  • साल 2015 में इसके सदस्‍य देशों की संख्या 197 थी। दिसंबर 2015 में सम्‍मेलन के दौरान ही पेरिस जलवायु समझौता प्रभाव में आया।

पेरिस जलवायु समझौता

  • इस समझौते में यह लक्ष्य तय किया गया था कि इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान को 2⁰C के नीचे रखने की हर संभव कोशिश की जाएगी। 
  • इसका कारण यह बताया गया था कि वैश्विक तापमान 2⁰C से अधिक होने पर समुद्र का स्तर बढ़ने लगेगा, मौसम में बदलाव देखने को मिलेगा और जल व भोजन का अभाव भी हो सकता है।
  • इसके अंतर्गत उत्सर्जन में 2⁰C की कमी लाने का लक्ष्य तय करके जल्द ही इसे प्राप्त करने की प्रतिबद्धता तो ज़ाहिर की गई थी, परन्तु इसका मार्ग तय नहीं किया गया था।
  • तात्पर्य यह है देश इस बात से अवगत ही नहीं हैं कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में उन्हें क्या करना होगा।
  • दरअसल, सभी देशों में कार्बन उत्सर्जन स्तर अलग-अलग होता है, अतः सभी को अपने देश में होने वाले उत्सर्जन के आधार पर ही उसमें कटौती करनी होगी।
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