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जैव विविधता और पर्यावरण

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन

  • 22 Jul 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय हरित अधिकरण,  जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम

मेन्स के लिये

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन की आवश्यकता और उसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) को सूचित किया है कि देश भर में तकरीबन 1.60 लाख से अधिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा (HCF) इकाइयाँ जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमों (Bio-medical Waste Management Rules) के तहत अपेक्षित अनुमति के बिना ही कार्य कर रही हैं। 

प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, सभी राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा प्रस्तुत की गई वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि देश भर के कुल 2,70,416 स्वास्थ्य देखभाल सुविधा इकाइयों में से केवल 1,11,122 इकाइयों ने अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर अपेक्षित अनुमति के लिये आवेदन किया है और मात्र 1,10,356 इकाइयों को इस प्रकार की अनुमति प्राप्त हुई है।
    • इस प्रकार देश भर में कुल 2,70,416 स्वास्थ्य सुविधा इकाइयों में से केवल 1,10,356 इकाइयाँ ही वर्ष 2019 तक अधिकृत हैं।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मुताबिक देश भर में लगभग 50 हज़ार इकाइयाँ ऐसी हैं, जिन्होंने न तो अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर अपेक्षित अनुमति के लिये आवेदन किया है और न ही उन्हें इस संबंध में पहले से कोई अनुमति प्राप्त है।

स्वास्थ्य देखभाल सुविधा इकाइयाँ

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, स्वास्थ्य देखभाल सुविधा इकाइयों में सभी प्रकार के अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र और आइसोलेशन कैंप आदि को शामिल किया जाता है। गौरतलब है कि आपातकालीन स्थितियों में प्रायः स्वास्थ्य देखभाल इकाइयों में रोगियों की संख्या काफी बढ़ जाती है, जिनमें से कुछ को विशिष्ट चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता हो सकती है।
  • संबंधित आँकड़ों पर गौर करते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने राज्यों को इस प्रक्रिया में तेज़ी लाने और 31 दिसंबर, 2020 तक इसे पूरा का निर्देश दिया है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश भर के कुल सात राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जैव चिकित्सा अपशिष्ट के उपचार और निपटान के लिये कोई भी कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटीज़ (Common Biomedical Waste Treatment Facilities-CBWTF) नहीं है।
    • इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अंडमान और निकोबार, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, लक्षद्वीप, नगालैंड, सिक्किम शामिल हैं।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इनमें से अधिकांश राज्यों ने स्वीकार किया है कि वे नए CBWTF की स्थापना करने की प्रक्रिया में हैं।
  • इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पतालों में अलग-अलग रंग के डिब्बों के माध्यम से कचरे का पृथक्करण भी नहीं किया जा रहा है।

कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटीज़ (CBWTF)

  • कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी (CBWTF) का अभिप्राय एक ऐसे ढाँचे से होता है, जहाँ विभिन्न स्वास्थ्य सुविधा इकाइयों से उत्पन्न बायो-मेडिकल अपशिष्ट के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने हेतु उसे आवश्यक उपचार प्रदान किया जाता है, जिससे इस अपशिष्ट का सही ढंग से निपटान किया जा सके।

NGT का निर्णय

  • NGT ने एक बार पुनः महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों को कवर करने वाली ज़िला पर्यावरण योजनाओं की निगरानी के लिये ज़िला योजना समितियों (District Planning Committees) के गठन के निर्देश को दोहराया।
  • NGT ने कहा कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के लिये आवश्यक है कि वे राज्य में CBWTFs द्वारा पालन किये जा रहे मानदंडों की स्थिति की जाँच करें।

पृष्ठभूमि 

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के दिशा-निर्देश उत्तर प्रदेश के एक पत्रकार द्वारा दायर याचिका के संबंध में प्रदान किये गए हैं, जिसमें उन सभी अस्पतालों, चिकित्सा सुविधा इकाइयों और अपशिष्ट निपटान संयंत्रों को बंद करने की मांग की गई की गई थी, जो अपशिष्ट प्रबंधन संबंधित आवश्यक नियमों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं।
  • याचिकाकर्त्ता ने आरोप लगाया था कि देश के कई अस्पतालों में कचरा चुनने वाले लोगों (Rag-Pickers) को जैव अपशिष्ट के अनधिकृत परिवहन की अनुमति दी जाती है और वे अवैज्ञानिक तरीके से इसका निपटान करते हैं, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचता है।

स्रोत: द हिंदू

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