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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ओसीपी सभ्यता की उपस्थिति के साक्ष्य

  • 01 Mar 2017
  • 3 min read

समाचारों में क्यों?

विदित हो कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले के सकरपुर से खुदाई के पश्चात ताम्बे की छः कुल्हाड़ियाँ और कुछ बर्तन प्राप्त हुए हैं। इस साक्ष्य के आधार पर कई पुरातत्त्वविदों का मानना है कि हो सकता है कि गंगा-यमुना नदियों के आस-पास के क्षेत्र में हडप्पा सभ्यता के समानांतर एक अलग सभ्यता भी आस्तित्व में थी। विदित हो कि भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा इस स्थल पर अभी भी खुदाई का कार्य जारी है जिसमें आगे अन्य साक्ष्यों के भी प्राप्त होने की सम्भावना है।

क्यों व्यक्त की जा रही है ऐसी सम्भावना?

  • अनेक विद्वानों का मत है कि जब वर्तमान पंजाब, हरियाणा और पाकिस्तान के कुछ भाग में सिन्धु घाटी सभ्यता फल-फुल रही थी ठीक उसी समय वर्तमान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में भी एक सभ्यता मौजूद थी।
  • सकरपुर में खुदाई के उपरांत प्राप्त हुई ताम्बे की छः कुल्हाड़ियाँ और मृदभांड, गंगा यमुना दोआब क्षेत्र की उपजाऊ भूमि में बसने वाली मानव सभ्यता के अवशेष हो सकते हैं। विदित हो कि इस सभ्यता को ओसीपी सभ्यता (OCHRE COLOURED POTTERY CULTURE) के नाम से भी जानते हैं।

पृष्ठभूमि

  • गौरतलब है कि अधिकांश गैरिक मृदभांड यानी ओसीपी के स्थल गंगा के दोआब, जो कछारी मैदान हैं, में पाए जाते हैं। ऊपरी गंगा घाटी के कर्इ स्थानों (नसीरपुर, झिंझाना, बहादुराबाद, इत्यादि) में तांबे के भंडार के साथ-साथ ओसीपी भी पाए गए हैं जिससे दोनों के बीच साहचर्य का संकेत मिलता है। लेकिन इतिहासकारों के अनुसार इस साहचर्य के और पुष्टिकरण की आवश्यकता है, और अब तक उन्हें कामचलाऊ ही माना जा रहा है।
  • यह जानना दिलचस्प है कि सिन्धु घाटी सभ्यता की तरह समुचित साक्ष्य न मिलने के कारण ही ओसीपी सभ्यता को पूर्ण सभ्यता के तौर पर प्रमाणित नहीं किया जा सका है। लेकिन इस खुदाई के माध्यम से पहली बार ओसीपी सभ्यता की मौजूदगी के प्रत्यक्ष साक्ष्य मिले हैं। 
  • अतः यदि इस खुदाई से इस सभ्यता की प्रमाणिकता को मज़बूत करने वाले और भी साक्ष्य यदि मिलते हैं तो निश्चित ही यह एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना बनने जा रही है।
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