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कृषि

प्राकृतिक खेती हेतु राष्ट्रीय मिशन

  • 01 Apr 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्राकृतिक खेती हेतु राष्ट्रीय मिशन, बायोमास मल्चिंग, भारत का सकल फसल क्षेत्र (GCA), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति, वर्षा जल संचयन।

मेन्स के लिये:

प्राकृतिक खेती का महत्त्व, प्राकृतिक खेती से जुड़े मुद्दे।

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार ने रसायन मुक्त और जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देने के लिये एक अलग तथा स्वतंत्र योजना के रूप में प्राकृतिक खेती हेतु राष्ट्रीय मिशन (NMNF) शुरू किया है। 

प्राकृतिक खेती हेतु राष्ट्रीय मिशन:

  • परिचय:  
    • देश भर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) तैयार किया गया है।  
  • आवृत्त क्षेत्र:  
    • NMNF 15,000 क्लस्टर विकसित करके 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को आवृत्त करेगा। अपने खेत में प्राकृतिक खेती शुरू करने के इच्छुक किसानों को क्लस्टर सदस्यों के रूप में पंजीकृत किया जाएगा, प्रत्येक क्लस्टर में 50 हेक्टेयर भूमि के साथ 50 या उससे अधिक किसान शामिल होंगे।  
      • इसके अलावा प्रत्येक क्लस्टर एक गाँव भी हो सकता है या एक ही ग्राम पंचायत के तहत आने वाले 2-3 आसपास के गाँवों को शामिल कर सकता है।  
  • वित्तीय सहायता:
    • NMNF के तहत किसानों को ऑन-फार्म इनपुट उत्पादन बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये तीन वर्ष हेतु प्रतिवर्ष 15,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की वित्तीय सहायता मिलेगी।  
    • हालाँकि किसानों को प्रोत्साहन तभी प्रदान किया जाएगा जब वे प्राकृतिक खेती के लिये प्रतिबद्ध हों और वास्तविक रूप से इसे अपना रहे हों।
      • यदि कोई किसान प्राकृतिक खेती का उपयोग नहीं करता है, तो बाद की किस्तों का भुगतान नहीं किया जाएगा।
  • कार्यान्वयन की प्रगति के लिये वेब पोर्टल: 
    • प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये कार्यान्वयन ढाँचे, संसाधनों, कार्यान्वयन की प्रगति, किसान पंजीकरण, ब्लॉग आदि की जानकारी प्रदान करने वाला एक वेब पोर्टल भी लॉन्च किया गया है।
  • मास्टर ट्रेनर:
    • कृषि मंत्रालय राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (MANAGE) तथा राष्ट्रीय जैविक और प्राकृतिक खेती केंद्र (NCONF) के माध्यम से मास्टर ट्रेनरों, 'चैंपियन' किसानों तथा  प्राकृतिक खेती की तकनीकों का अभ्यास करने वाले किसानों को बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है।
  • BRCs की स्थापना:  
    • केंद्र द्वारा 15,000 भारतीय प्राकृतिक खेती जैव-इनपुट संसाधन केंद्र (Bio-inputs Resources Centres- BRCs) स्थापित किये जाने का प्रस्ताव है ताकि जैव-संसाधनों तक आसान पहुँच प्रदान की जा सके, जिसमें गोबर एवं मूत्र, नीम और बायोकल्चर की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
      • ये जैव-इनपुट संसाधन केंद्र प्राकृतिक खेती के प्रस्तावित 15,000 मॉडल समूहों के साथ स्थापित किये जाएंगे।

प्राकृतिक खेती: 

  • परिचय:  
    • प्राकृतिक खेती स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों पर आधारित एक रसायन मुक्त कृषि पद्धति है।
      • यह पारंपरिक स्वदेशी तरीकों को प्रोत्साहित करती है जो उत्पादकों को बाहरी आदानों पर निर्भर रहने से मुक्त करते हैं।
    • प्राकृतिक खेती का प्रमुख ध्यान बायोमास मल्चिंग के साथ ऑन-फार्म बायोमास रीसाइक्लिंग, ऑन-फार्म देसी गाय के गोबर एवं मूत्र का उपयोग, विविधता के माध्यम से कीटों का प्रबंधन, ऑन-फार्म वनस्पति मिश्रण एवं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी सिंथेटिक रासायनिक आदानों का बहिष्करण है।  
  • महत्त्व: 
    • बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करना: चूँकि प्राकृतिक खेती में किसी भी सिंथेटिक रसायन का उपयोग नहीं होता है जिसकी वजह से यह स्वास्थ्य के लिये कम जोखिमपूर्ण है
      • इन खाद्यान्नों में उच्च पोषण तत्त्व होता है और बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।
    • किसानों की आय में वृद्धि: प्राकृतिक खेती का उद्देश्य लागत तथा जोखिम में कमी, समान पैदावार और इंटरक्रॉपिंग से आय के परिणामस्वरूप किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि कर खेती को व्यवहार्य एवं आकांक्षी बनाना है।
    • मृदा स्वास्थ्य में वृद्धि: प्राकृतिक खेती का सबसे तात्कालिक प्रभाव मृदा विज्ञान के साथ इसको प्रभावित करने वाले रोगाणुओं एवं केंचुओं जैसे अन्य जीवित जीवों के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
      • यह मृदा के स्वास्थ्य में सुधार कर उत्पादकता में वृद्धि करती है।
  • समस्याएँ: 
    • सिंचाई सुविधा का अभाव: भारत के सकल फसली क्षेत्र (GCA) का केवल 52% राष्ट्रीय स्तर पर सिंचित है। भले ही भारत ने आज़ादी के बाद से महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, फिर भी कई क्षेत्र अभी भी सिंचाई हेतु मानसून पर निर्भर हैं, जिससे अधिक फसल उत्पादन की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
    • प्राकृतिक आदानों की तत्काल उपलब्धता का अभाव: किसान अक्सर रसायन मुक्त कृषि उत्पादन को आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक आदानों की कमी का हवाला देते हुए बाधा के रूप में देखते है। प्रत्येक किसान के पास प्राकृतिक विधि से उत्पादन हेतु समय, धैर्य या श्रम नहीं होता है।
    • फसल विविधीकरण का अभाव: भारत में कृषि के तेज़ी से व्यावसायीकरण के बावजूद अधिकांश किसान मानते हैं कि अनाज़ हमेशा उनकी मुख्य फसल होगी (अनाज के पक्ष में न्यूनतम समर्थन मूल्य कम होने के कारण) और फसल विविधीकरण की उपेक्षा करते हैं।
  • प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने हेतु अन्य पहलें: 
    • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): 
      • NMNF भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) का विस्तार है, जो परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत एक उप-योजना है।
      • PKVY उन किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है जो जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाना चाहते हैं और उन्हें कीट प्रबंधन एवं मृदा की उर्वरता प्रबंधन हेतु पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
    • क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर: 
      • क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर भू-दृश्यों-फसल भूमि, पशुधन, वनों और मत्स्यपालन के प्रबंधन हेतु एकीकृत दृष्टिकोण है, जो खाद्य सुरक्षा तथा जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करता है।
      • इसका लक्ष्य तीन मुख्य उद्देश्यों से निपटना है: कृषि उत्पादकता और आय में लगातार वृद्धि करना, जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन एवं निर्माण करना, साथ ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना।  

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. स्थायी कृषि (पर्माकल्चर), पारंपरिक रासायनिक कृषि से किस प्रकार भिन्न है? (2021) 

  1. स्थायी कृषि एकधान्य कृषि पद्धति को हतोत्साहित करती है, किंतु पारंपरिक रासायनिक कृषि में एकधान्य कृषि पद्धति की प्रधानता है। 
  2. पारंपरिक रासायनिक कृषि के कारण मृदा की लवणता में वृद्धि हो सकती है किंतु इस तरह की परिघटना स्थायी कृषि में नहीं देखी जाती है। 
  3. पारंपरिक रासायनिक कृषि अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में आसानी से संभव है किंतु ऐसे क्षेत्रों में स्थायी कृषि इतनी आसानी से संभव नहीं है। 
  4. मल्च बनाने की प्रथा (मल्चिंग) स्थायी कृषि में काफी महत्त्वपूर्ण है किंतु पारंपरिक रासायनिक कृषि में ऐसी प्रथा आवश्यक नहीं है। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 3 
(b) केवल 1, 2 और 4 
(c) केवल 4   
(d) केवल 2 और 3 

उत्तर: (b) 


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी ‘मिश्रित खेती’ की प्रमुख विशेषता है? (2012) 

(a) नकदी और खाद्य दोनों सस्यों की साथ-साथ खेती   
(b) दो या दो से अधिक सस्यों को एक ही खेत में उगाना  
(c) पशुपालन और सस्य उत्पादन को एक साथ करना  
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं  

उत्तर: (c) 


मेन्स: 

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021) 

प्रश्न. जल इंजीनियरिंग और कृषि विज्ञान के क्षेत्रों में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019) 

स्रोत: पी.आई.बी.

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