इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण

  • 06 Dec 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, भारत के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण 

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण की आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (National Judicial Infrastructure Authority of India- NJIAI) के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया है।

प्रमुख बिंदु 

  • राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (NJIAI):
    • राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण के बारे में:
      • प्रस्तावित NJIAI एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करेगा, जिसमें राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) मॉडल की तरह प्रत्येक राज्य का अपना राज्य न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण होगा।
        • NALSA का गठन समाज के कमज़ोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएंँ प्रदान करने हेतु एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क स्थापित करने के लिये किया गया था।
      • देश में अधीनस्थ न्यायालयों के बजट और बुनियादी ढांँचे के विकास का नियंत्रण NJIAI के अंतर्गत होगा।
      • NALSA (नालसा) जो कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा सेवित है के विपरीत प्रस्तावित NJIAI को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अधीन रखा जाना जाएगा।
      • यह किसी बड़े नीतिगत बदलाव का सुझाव नहीं देगा, लेकिन ज़मीनी स्तर पर  अदालतों को मज़बूती प्रदान करने हेतु चल रही परियोजनाओं में सर्वोच्च न्यायालय को साथ आने की पूरी स्वतंत्रता प्रदान करेगा।
    • सदस्य:
      • NJIAI में कुछ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा कुछ केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल होगे क्योंकि केंद्र को यह भी मालूम होना चाहिये कि धन का उपयोग कहांँ किया जा रहा है।
      • इसी प्रकार राज्य न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण में संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त एक मनोनीत न्यायाधीश, चार से पांँच ज़िला न्यायालय के न्यायाधीश तथा  राज्य सरकार के अधिकारी सदस्य शामिल होगे।
  • NJIAI की आवश्यकता:
    • निधियों का प्रबंधन करने के लिये:
      • न्यायालयों में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) के तहत वर्ष 2019-20 में स्वीकृत कुल 981.98 करोड़ रुपए में से केवल 84.9 करोड़ रुपए ही पाँच राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से उपयोग में लाए गए, शेष 91.36% धन अप्रयुक्त रहा।
        • भारतीय न्यायपालिका के साथ लगभग तीन दशकों (जब 1993-94 में CSS को पेश किया गया था) से यह मुद्दा बना हुआ है।
    • मुकदमों की बढ़ती संख्या को प्रबंधित करने के लिये:
      • भारतीय न्यायपालिका का बुनियादी ढाँचा हर साल दायर होने वाले मुकदमों की बड़ी संख्या के साथ तालमेल नहीं रखता है।
        • इस बात की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि देश में न्यायिक अधिकारियों की कुल स्वीकृत संख्या 24,280 है, लेकिन उपलब्ध न्यायालय कक्षों की संख्या केवल 20,143 है, जिसमें 620 किराए के हॉल शामिल हैं।
    • बृहत्तर स्वायत्तता के लिये:
      • न्यायिक बुनियादी ढाँचे का सुधार और रख-रखाव अभी भी तदर्थ और अनियोजित तरीके से किया जा रहा है।
        • इस हेतु "न्यायपालिका की वित्तीय स्वायत्तता" और NJIAI (जो एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में स्वायत्तता के साथ काम करेगी) के निर्माण की आवश्यकता है।
  • अवसंरचनात्मक रूप से पीछे रहने के कारण:
    • वित्त की कमी:
      • न्यायिक बुनियादी ढाँचे को विकसित करने के लिये, केंद्र सरकार और राज्यों द्वारा न्यायपालिका के बुनियादी ढाँचे संबंधी विकास हेतु केंद्र प्रायोजित योजना, जिसकी शुरुआत वर्ष 1993 में हुई और जुलाई 2021 में अगले पाँच वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया था।
      • हालाँकि राज्य अपने हिस्से का धन उपलब्ध नहीं कराते हैं जिसके परिणामस्वरूप, उनके द्वारा योजना के तहत आवंटित धन का व्यय नहीं हो पाता है और यह व्यपगत हो जाता है।
    • गैर-न्यायिक उद्देश्यों के लिये निधियों का उपयोग:
      • कुछ मामलों में, राज्यों द्वारा यह दावा किया गया है कि उन्होंने गैर-न्यायिक उद्देश्यों के लिये फंड का हिस्सा भी स्थानांतरित किया है।
        • यहाँ तक कि न्यायपालिका, विशेष रूप से निचली अदालतों में, कोई भी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।

भारत में न्यायपालिका से संबद्ध मुद्दे

  • देश में न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात बहुत प्रशंसनीय नहीं है।
    • जबकि अन्य देशों में, यह अनुपात लगभग 50-70 न्यायाधीश प्रति मिलियन व्यक्ति है, भारत में यह अनुपात 20 न्यायाधीश प्रति मिलियन व्यक्ति है।
  • महामारी के बाद से ही न्यायालयी कार्यवाही भी वस्तुतः होने लगी है, पहले न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी की भूमिका ज़्यादा बड़ी नहीं थी।
  • न्यायपालिका में पदों को आवश्यकतानुसार शीघ्रता से नहीं भरा जाता है।
    • उच्च न्यायपालिका के लिये कॉलेजियम द्वारा की जाने वाली सिफारिशों में देरी के कारण न्यायिक नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी होती है।
    • निचली अदालतों के लिये राज्य आयोग/उच्च न्यायालयों द्वारा भर्ती में होने वाली देरी भी खराब न्यायिक व्यवस्था का एक कारण है।
  • अदालतों द्वारा अधिवक्ताओं को बार-बार स्थगन दिया जाता है जिससे न्याय में अनावश्यक देरी होती है।

आगे की राह

  • भारत में न्यायालयों द्वारा बार-बार व्यक्तियों के अधिकारों एवं स्वतंत्रता को बरकरार रखा गया है और ये व्यक्तियों या समाज के साथ उस स्थिति में भी खड़ी रही हैं जब कार्यपालिका द्वारा लिये गए फैसलों का दुष्प्रभाव उन पर पड़ा हो।
  • यदि हम न्यायिक प्रणाली से भिन्न परिणाम चाहते हैं, तो हम इन परिस्थितियों में काम करना जारी नहीं रख सकते।
  • आज़ादी के इस 75 वें वर्ष में अपनी जनता और अपने देश कोअत्याधुनिक न्यायिक अवसंरचना के सृजन और उसे आगे बढ़ाने हेतु तंत्र/प्रक्रियाओं को संस्थागत बनाना सबसे अच्छा उपहार हो सकता है।
  • CSS योजना पूरे देश में ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों/न्यायिक अधिकारियों के लिये सुसज्जित कोर्ट हॉल और आवास की उपलब्धता में वृद्धि करेगी।
  • डिजिटल कंप्यूटर रूम की स्थापना से डिजिटल क्षमताओं में भी सुधार होगा और भारत के डिजिटल इंडिया विज़न के एक हिस्से के रूप में डिजिटलीकरण की पहल को बढ़ावा मिलेगा।

स्रोत: द हिंदू 

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2