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आंतरिक सुरक्षा

UNHCR जा सकते हैं म्याँमार शरणार्थी: मणिपुर उच्च न्यायालय

  • 05 May 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मणिपुर के उच्च न्यायालय (High Court) ने मणिपुर के एक सीमावर्ती शहर में फँसे म्याँमार  के सात नागरिकों को नई दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (United Nations High Commissioner for Refugees- UNHCR) के समक्ष जाने की अनुमति दी है।

  • इन सभी सातों नागरिकों ने म्याँमार में सैन्य तख्तापलट के बाद भारत में प्रवेश किया था।
  • इस तख्तापलट ने वर्ष 2011 (वर्ष 1962 से सत्ता में रही सेना ने संसदीय चुनाव और अन्य सुधारों को लागू किया था) में शुरू हुए अर्द्ध-लोकतंत्र को थोड़े समय बाद पुनः सैन्य शासन में बदल दिया।

प्रमुख बिंदु

मणिपुर उच्च न्यायालय की टिप्पणी:

  • हालाँकि भारत के पास कोई शरणार्थी सुरक्षा नीति या ढाँचा नहीं है, लेकिन फिर भी यह पड़ोसी देशों से आए बड़ी संख्या में शरणार्थियों को शरण देता है।
    • भारत आमतौर पर अफगानिस्तान और म्याँमार से आए शरणार्थियों की स्थिति पर UNHCR की मान्यता का सम्मान करता है।
  • यद्यपि भारत संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमयों का पक्षकार देश नहीं है, किंतु यह ‘मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा’ (Universal Declaration of Human Rights), 1948 तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार नियम’ (International Covenant on Civil and Political Rights), 1966 का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 21 में शरणार्थियों को उनके मूल-देश में वापस नहीं भेजे जाने यानी ‘नॉन-रिफाउलमेंट’ (Non-Refoulement) का अधिकार शामिल है।
    • नॉन-रिफाउलमेंट, अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत एक सिद्धांत है, जिसके अनुसार अपने देश से उत्पीड़न के कारण भागने वाले व्यक्ति को उसी देश में वापस जाने के लिये मज़बूर नहीं किया जाना चाहिये।

भारत-म्याँमार सीमा:

Myanmar

  • सीमावर्ती राज्य: भारत और म्याँमार के बीच 1,643 किलोमीटर (मिज़ोरम 510 किलोमीटर, मणिपुर 398 किलोमीटर, अरुणाचल प्रदेश 520 किलोमीटर और नगालैंड 215 किलोमीटर) की सीमा है तथा दोनों तरफ के लोगों के बीच पारिवारिक संबंध है। 
  • मुक्त संचरण व्यवस्था:
    • भारत और म्याँमार के बीच एक मुक्त संचरण व्यवस्था (Free Movement Regime) मौज़ूद है।
    • इस व्यवस्था के अंतर्गत पहाड़ी जनजातियों के प्रत्येक सदस्य, जो भारत या म्याँमार के नागरिक हैं और भारत-म्याँमार सीमा (IMB) के दोनों ओर 16 किमी. के भीतर निवास करते हैं, एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी सीमा पास (एक वर्ष की वैधता) के साथ सीमा पार कर सकते हैं तथा प्रत्येक यात्रा के दौरान दो सप्ताह तक वहाँ रह सकते हैं।
  • म्याँमार से भारत में हाल के पलायन:
    • भारत में पहले से ही बहुत सारे रोहिंग्या, म्याँमार से पलायन करके आए हुए हैं।
      • रोहिंग्या म्याँमार के जातीय मुस्लिम हैं, जो अराकान क्षेत्र में राखीन प्रांत में रहते हैं।
      • म्याँमार में बौद्ध संप्रदाय के लोगों के साथ झड़प के बाद वर्ष 2012 से लगभग 1,68,000 रोहिंग्या भारत आ चुके हैं।
    • म्याँमार सेना ने 1 फरवरी, 2021 को तख्तापलट के माध्यम से म्याँमार की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था, तब से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में लोगों का अंतर्वाह शुरू हुआ है।
      • इन शरणार्थियों में म्याँमार के चिन जनजातीय समूह के लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्त्ताओं के साथ म्याँमार के कई पुलिसकर्मी भी शामिल हैं, जिन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के आदेशों को मानने से इंकार कर दिया था।

शरणार्थियों पर भारत का पक्ष:

  • भारत बीते लंबे समय से शरणार्थियों को शरण देता रहा है। वर्तमान में भारत में लगभग 3,00,000 लोग शरणार्थी के रूप में रहते हैं, लेकिन यह वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन या वर्ष 1967 के इसके प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है और न ही इसके पास कोई शरणार्थी नीति या शरणार्थी कानून है।
  • इससे भारत के लिये शरणार्थियों के प्रहसन पर निर्णय लेने हेतु तमाम विकल्प खुले हैं। भारत सरकार शरणार्थियों के किसी भी समूह को अवैध आप्रवासी घोषित कर सकती है, उदाहरण के लिये UNHCR के सत्यापन के बावज़ूद भारत सरकार द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये विदेशी अधिनियम (Foreigners Act) या भारतीय पासपोर्ट अधिनियम (Indian Passport Act) के प्रयोग का निर्णय लिया गया।
  • हाल ही में भारत ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के द्वारा अपनी एक शरणार्थी नीति स्पष्ट की है, जिसके अंतर्गत भारतीय नागरिकता प्रदान करने हेतु धर्म के आधार पर शरणार्थियों के बीच भेदभाव की नीति अपनाई गई है।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधि, 1951

  • यह संयुक्त राष्ट्र (United Nation) की एक बहुपक्षीय संधि है, जिसमें शरणार्थी की परिभाषा, उनके अधिकार तथा हस्ताक्षरकर्त्ता देश की शरणार्थियों के प्रति ज़िम्मेदारियों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
  • यह संधि युद्ध अपराधियों, आतंकवाद से जुड़े व्यक्तियों को शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं देती है।
  • यह संधि जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह से संबद्धता या पृथक राजनीतिक विचारों के कारण उत्पीड़न तथा अपना देश छोड़ने को मज़बूर लोगों के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करती है।
  • यह संधि वर्ष 1948 की ‘मानवाधिकारों पर सार्वभौम घोषणा’ (UDHR) के अनुच्छेद-14 से प्रेरित है। UDHR किसी अन्य देश में पीड़ित व्यक्ति को शरण मांगने का अधिकार प्रदान करती है।
  • वर्ष 1967 का प्रोटोकॉल सभी देशों के शरणार्थियों को शामिल करता है, इससे पूर्व वर्ष 1951 में की गई संधि सिर्फ यूरोप के शरणार्थियों को ही शामिल करती थी।
  • भारत इस संधि/अभिसमय का पक्षकार नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त 

  • संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) एक संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी और एक वैश्विक संगठन है जो शरणार्थियों के जीवन बचाने, उसके अधिकारों की रक्षा करने और उनके लिये बेहतर भविष्य के निर्माण के प्रति समर्पित है।
  • संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी की स्थापना वर्ष 1950 में की गई थी।
  • इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।

स्रोत: द हिंदू

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