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शुरुआती अवस्था में कैसा था सूर्य का व्यवहार

  • 12 Apr 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उल्कापिंड के एक टुकड़े का विश्लेषण करके शोधकर्त्ताओं ने प्रारंभिक अवस्था में सूर्य के व्यवहार की परिकल्पना की है। गौरतलब है कि 21 किलोग्राम वजन का यह उल्कापिंड 1962 में कज़ाखस्तान में पाया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • शोधकर्त्ताओं ने पाया कि शुरुआती वर्षों के दौरान सूर्य अधिक चमक (Superflares) उत्पन्न करने में सक्षम था जो कि वर्ष 1859 के कैरिंगटन घटना (Carrington event) में दर्ज किये गए सबसे तीव्र सौर चमक की तुलना में एक लाख गुना अधिक था।
  • 1859 का सौर तूफान (जिसे कैरिंगटन इवेंट भी कहा जाता है) सौर चक्र 10 (1855-1867) के दौरान एक शक्तिशाली भू-चुंबकीय तूफान था।
  • सौर चमक सूर्य की अचानक से बढ़ी हुई चमक होती है, जो कभी-कभी एक कोरोनल मास इजेक्शन के साथ भी होती है।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस तरह के सुपरफ्लेयर 4.5 अरब साल पहले हुए होंगे जब सूर्य का निर्माण हो रहा था।
  • शोधकर्त्ताओं ने यह भी अनुमान लगाया है कि सूर्य के इस तरह के सुपरफ्लेयर द्वारा विकिरण की वज़ह से ही बेरिलियम -7 जैसे तत्त्व उत्त्पन्न होते हैं।
  • कैल्शियम-एल्युमीनियम-समृद्ध समावेश (Calcium-Aluminum-Rich Inclusions- CAI) सौरमंडल के पहले गठित ठोस पदार्थों में से एक था। CAI लगभग 4.5 बिलियन वर्ष पुराना है।

अंतरिक्ष की चट्टानों से संबंधित शब्दावली
Terms Related to Rocks of Space

क्षुद्रग्रह (एस्टेरॉइड): तारों ग्रहों एवं उपग्रहों के अतिरिक्त असंख्य छोटे पिंड भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। इन पिंडों को क्षुद्रग्रह कहते हैं

  • आम तौर पर ये मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं की बीच पाए जाते हैं। जिन्हें क्षुद्रग्रह बेल्ट कहा जाता है
  • आमतौर पर ये किसी ग्रह के टुकड़े होते हैं जो कभी एक साथ नहीं आए थे।

कभी-कभी ये क्षुद्रग्रह मुख्य बेल्ट से निकलकर पृथ्वी की कक्षाओं को काटते हैं।

धूमकेतु (Comet):

धूमकेतु सौरमंडलीय निकाय है जो पत्थर, धूल, बर्फ और गैस के बने हुए छोटे-छोटे खंड होते है। यह ग्रहों के समान सूर्य की परिक्रमा करते हैं। छोटे पथ वाले धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा एक अंडाकार पथ में लगभग 6 से 200 वर्ष में पूरी करते हैं।कुछ धूमकेतु का पथ वलयाकार होता है और वे मात्र एक बार ही दिखाई देते हैं।

  • जब ये धूमकेतु सूर्य के नज़दीक से गुज़रते हैं तो सूर्य के ताप से गर्म होने के कारण इनसे गैस निकलती है।
  • इस समय में कोमा (,) सदृश्य और कभी-कभी एक पूँछ जैसा दिखाई पड़ता है।

उल्कापिंड (Meteoroid): सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाने वाले पत्थरों के टुकड़ों को उल्कापिंड कहा जाता है। कभी-कभी ये उल्कापिंड पृथ्वी के इतने पास आ जाते है कि इनकी प्रवृत्ति पृथ्वी पर गिरने की हो जाती है इस प्रक्रिया के दौरान वायु के घर्षण के कारण ये जल उठते हैं। फलस्वरूप चमकदार प्रकाश उत्त्पन्न होता है कभी-कभी कोई उल्का पूरी तरह से जले बिना ही पृथ्वी पर गिर जाता है जिससे पृथ्वी पर गड्ढे बन जाते हैं।

उल्का: एक अंतरिक्ष चट्टान जिसे क्षुद्रग्रह या धूमकेतु भी कहा जाता है, जब पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है तो वायु के घर्षण के कारण जलने लगती है। इस चमकदार प्रकाश को उल्का कहा जाता है।

बोलाइड (Bolide): खगोलविद अक्सर उल्कापात में दिखाई देने वाला आग का गोला जो आकर पृथ्वी से टकराता है, के लिये इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं।

कोरोनल मास इजेक्शन
Coronal Mass Ejection

  • सूरज के कोरोना से प्लाज़्मा और उस से संबंधित चुंबकीय क्षेत्र को अंतरिक्ष में निष्कासित किये जाने की परिघटना को कोरोनल मास इजेक्शन (coronal mass ejection) कहते हैं।
  • यह अक्सर सोलर फ्लेयर्स (Solar Flares) के बाद होता है और सौर उभार (Solar Prominence) के साथ देखा जाता है। इसमें निष्कासित प्लाज़्मा सौर वायु का भाग बन जाती है और इसे कोरोनोग्राफी में देखा जा सकता है।

Solar Flares

कोरोना (Corona):

  • सूर्य के वर्णमंडल के वाह्य भाग को किरीट/कोरोना (Corona) कहते हैं।
  • पूर्ण सूर्यग्रहण के समय यह श्वेत वर्ण का होता है।
  • किरीट अत्यंत विस्तृत क्षेत्र में पाया जाता है।

Corona

स्रोत- द हिंदू

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