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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्याज दरों का तटस्थ रहना उचित क्यों?

  • 04 Oct 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

  • रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति (एम.पी.सी.) की बैठक में रेपो रेट को बढ़ाने या घटाने के संबंध में निर्णय लिया जाएगा।
  • सरकार के साथ उद्योग जगत भी उम्मीद कर रहा है कि केंद्रीय बैंक वृद्धि दर को प्रोत्साहन देने के लिये ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। हालाँकि वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा करना उचित नहीं होगा।
  • दरअसल, आज मुद्रास्फीति की दर कम है और इन परिस्थितियों में सैद्धांतिक तौर पर रेपो रेट में कटौती की जानी चाहिये, लेकिन ऐसा नहीं किये जाने के भी मज़बूत कारण मौज़ूद हैं।

रेपो रेट और मुद्रास्फीति में संबंध

  • जैसा कि हम जानते हैं कि बैंकों को अपने काम-काज़ के लिये अक्सर बड़ी रकम की ज़रूरत होती है। बैंक इसके लिये आरबीआई से अल्पकाल के लिये कर्ज़ मांगते हैं और इस कर्ज़ पर रिज़र्व बैंक को उन्हें जिस दर से ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।
  • रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिये रिज़र्व बैंक से कर्ज़ लेना सस्ता हो जाता है और तभी बैंक ब्याज दरों में भी कटौती करते हैं, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा रकम कर्ज़ के तौर पर दी जा सके।
  • मुद्रास्फीति बढ़ने का एक मतलब यह भी है कि वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि के कारण, बढ़ी हुई क्रय शक्ति के बावजूद लोग पहले की तुलना में वर्तमान में कम वस्तु एवं सेवाओं का उपभोग कर पा रहे हैं।
  • ऐसी स्थिति में आरबीआई का कार्य यह है कि वह बढ़ती हुई मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखने के लिये बाज़ार से पैसे को अपनी तरफ खींच ले। अतः आरबीआई रेपो रेट में बढ़ोतरी कर देता है ताकि बैंको के लिये कर्ज़ लेना महँगा हो जाए और वे अपनी बैंक दरों को बढ़ा दें, ताकि लोग कर्ज़ न ले सकें।
  • ध्यातव्य है कि पिछले कुछ समय से मुद्रास्फीति में गिरावट देखी जा रही है फिर भी आरबीआई को रेपो रेट को अपरिवर्तित रखना चाहिये, क्योंकि हेडलाइन मुद्रास्फीति के बजाय कोर मुद्रास्फीति को अधिक गंभीरता से लेना चाहिये।

हेडलाइन और कोर मुद्रास्फीति में अंतर

  • हेडलाइन मुद्रास्फीति, मुद्रास्फीति का कच्चा आँकड़ा है जो कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के आधार पर तैयार किया जाता है। हेडलाइन मुद्रास्फीति में खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को भी शामिल किया जाता है।
  • कोर मुद्रास्फीति वह है जिसमें खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को शामिल नहीं किया जाता है। दरअसल, कोर मुद्रास्फीति के आकलन में वैसे मदों पर ध्यान नहीं दिया जाता है जो किसी अर्थव्यवस्था में माँग और उत्पादन के पारंपरिक ढाँचे के बाहर हों, जैसे- पर्यावरणीय समस्यायों के कारण उत्पादन में देखी जाने वाली कमी आदि।

कोर मुद्रास्फीति के संबंध में गंभीरता दिखाना उचित क्यों?

  • वस्तुतः कोर मुद्रास्फीति वह मुद्रास्फीति है जिसमें किसी अर्थव्यवस्था में अंतर्निहित प्रवृत्तियों का अध्ययन किया जाता है, क्योंकि इन्हीं प्रवृत्तियों के आधार पर यह तय किया जाता है कि अमुक समय सीमा के दौरान माँग का रुख कैसा रहेगा और फिर इसके अनुरूप ही किसी तय समय के लिये मौद्रिक नीतियों का निर्माण किया जाता है।
  • कोर मुद्रास्फीति के आकलन में खाद्य वस्तुओं एवं ईंधन की कीमतों को न शामिल करना उचित माना जाता है, क्योंकि खाद्य वस्तुओं एवं ईंधन की कीमतों में त्वरित परिवर्तन की आशंका लगातार बनी रहती है।
  • यदि खाद्य वस्तुओं एवं ईंधन की कीमतों को सम्मिलित करते हुए तैयार किये गए मुद्रास्फीति के आँकड़ों के आधार पर मौद्रिक नीतियों का निर्माण किया जाए तो बदलती कीमतों के आधार पर नीतियों में भी बदलाव लाना होगा और मौद्रिक नीतियों में साप्ताहिक या अर्द्धमासिक बदलाव लाया जाना व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता।
  • अतः संभावना यह है कि आरबीआई द्वारा ब्याज दरों को तटस्थ रखा जाएगा यानी इन्हें घटाने-बढ़ाने के बजाय ज्यों का त्यों रखे जाने की संभावना अधिक है।
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