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कृषि

महाराष्ट्र पुनः शीर्ष चीनी उत्पादक राज्य

  • 08 Jun 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गन्ने की फसल, रेड रॉट कवक रोग, दक्षिण-पश्चिम मानसून, इथेनॉल सम्मिश्रण। 

मेन्स के लिये:

कृषि उत्पादकता को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय और मौसम संबंधी कारक, खाद्य सुरक्षा के लिये चुनौतियों के रूप में इथेनॉल सम्मिश्रण। 

चर्चा में क्यों? 

महाराष्ट्र पांँच साल बाद एक बार फिर भारत का शीर्ष चीनी उत्पादक राज्य बन गया है। चीनी उत्पादन में इसने उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ दिया है। 

  • वर्ष 2021-22 के लिये महाराष्ट्र द्वारा चीनी का कुल उत्पादन 138 लाख टन है। 
  • वर्ष 2021-22 में उत्तर प्रदेश द्वारा उत्पादित कुल चीनी 105 लाख टन है। 

महाराष्ट्र में चीनी के भारी उत्पादन का कारण: 

  • जल की प्रचुर मात्रा में आपूर्ति: 
    • गन्ना एक जल गहन फसल है जिसे एक बड़ी जल आपूर्ति की आवश्यकता होती है और  महाराष्ट्र के किसान इसे वर्षा, जलाशयों, नहरों के नेटवर्क तथा भूजल से उचित रूप से प्राप्त कर रहे हैं। 
    • दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम के दौरान वर्ष 2019 से महाराष्ट्र में पर्याप्त वर्षा जल प्राप्त हो रहा है। 
    • पर्याप्त वर्षा के कारण भूजल जलभृत और अन्य जलाशय जल से भर गए। जल के ये स्रोत कृषि उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
  • गन्ना उत्पादन की कम रिपोर्टिंग: 
    • महाराष्ट्र राज्य में गन्ने के वास्तविक उत्पादन से संबंधित आंँकड़े बिल्कुल सटीक नहीं थे। 
    • इसे ध्यान में रखते हुए संबंधित प्रशासन ने गन्ना उत्पादन के दर्ज आंँकड़ों में सुधार करने का प्रयास किया। 
      • इसके परिणामस्वरूप अंततः गन्ना उत्पादन का रकबा 11.42 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 12.4 लाख हेक्टेयर हो गया।  
      • इस प्रकार महाराष्ट्र ने वर्ष 2021-22 में गन्ने के रकबे में वृद्धि का लाभ उठाया। 

उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन में गिरावट के कारण: 

  • उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा इथेनॉल उत्पादक बन गया है क्योंकि उत्तर प्रदेश में गन्ने के उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा इथेनॉल के उत्पादन में संलिप्त हो गया है। 
    • यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2021-22 में गन्ने से 12.60 लाख टन चीनी को इथेनॉल बनाने के लिये प्रेरित किया गया है, जबकि 2020-21 में 7.19 लाख टन और 2019-20 में 4.81 लाख टन तथा 2018-19 में 0.31 लाख टन चीनी का उपयोग किया गया था। 
  • अत्यधिक वर्षा के साथ जलभराव की समस्या  से उत्तर प्रदेश राज्य में गन्ने की फसल को भारी नुकसान हुआ है। 
  • उत्तर प्रदेश में गन्ना क्षेत्र में अधिकांश भूमि (87%) में गन्ने की एक ही किस्म (Co-0238) की फसल उगाई  जाती है। यह गन्ने की उच्च उपज वाली किस्म नहीं है। 
  • गन्ने की फसल पर रेड रॉट कवक रोग का प्रतिकूल प्रभाव उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादन में गिरावट का एक गंभीर कारण है। 
    • गन्ने की Co-0238 किस्म रेड रॉट कवक रोगों के लिये अत्यधिक संवेदनशील है। 
    • इसे Co-0118 और Co-15023 जैसी नई किस्मों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये क्योंकि ये दोनों ही रेड रॉट कवक रोग के प्रतिरोधी हैं।         

गन्ना (Sugarcane): 

  • तापमान: उष्ण और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 डिग्री सेल्सियस के बीच। 
  • वर्षा : लगभग 100-50 सेमी.। 
  • मिट्टी का प्रकार: गहरी समृद्ध दोमट मिट्टी। 
  • शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य: उत्तर प्रदेश> महाराष्ट्र> कर्नाटक> तमिलनाडु> बिहार। 
  • ब्राज़ील के बाद भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। 
  • इसे बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, क्योंकि इसके लिये अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। 
  • इसमें बुवाई से लेकर कटाई तक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है। 
  • यह चीनी, गुड़, खांडसारी और राब का मुख्य स्रोत है। 
  • चीनी उद्योग को समर्थन देने हेतु सरकार की दो पहलें हैं- चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता देने की योजना (SEFASU) और जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति गन्ना उत्पादन योजना। 

इथेनॉल सम्मिश्रण: 

  • इथेनॉल: यह प्रमुख जैव ईंधनों में से एक है, जो प्रकृतिक रूप से खमीर अथवा एथिलीन हाइड्रेशन जैसी पेट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं के माध्यम से शर्करा के किण्वन द्वारा उत्पन्न होता है। 
  • इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP): इसका उद्देश्य कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता को कम करना, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करना और किसानों की आय को बढ़ाना है। 
  • सम्मिश्रण लक्ष्य: भारत सरकार ने पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) के लक्ष्य को परिवर्तित कर वर्ष 2030 से वर्ष 2025 तक कर दिया है।  

विगत वर्ष का प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में गन्ने की खेती में वर्तमान प्रवत्तियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: 

  1. जब ‘बड चिप सैटलिंग्स (Bud Chip Settlings)’ को नर्सरी में उगाकर मुख्य कृषि भूमि में प्रतिरोपित किया जाता है, तब बीज सामग्री में बड़ी बचत होती है। 
  2. जब सैट्स का सीधे रोपण किया जाता है, तब एक-कलिका (Single-Budded) सैट्स का अंकुरण प्रतिशत कई-कलिका (Many Budded) सैट्स की तुलना में बेहतर होता है। 
  3. खराब मौसम की दशा में यदि सैट्स का सीधे रोपण होता है, तब एक-कलिका सैट्स का जीवित बचना बड़े सैट्स की तुलना में बेहतर होता है। 
  4. गन्ने की खेती ऊतक संवर्द्धन से तैयार की गई सैटलिंग से की जा सकती है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 और 2 

(b) केवल 3 

(c) केवल 1 और 4 

(d) केवल 2, 3 और 4 

 उत्तर: C 

व्याख्या: 

  • टिश्यू कल्चर तकनीक: 
    • टिश्यू कल्चर एक ऐसी तकनीक है जिसमें पौधों के टुकड़ों को काटा और तैयार किया जाता है तथा एक प्रयोगशाला में उगाया जाता है। 
    • यह मौजूदा व्यावसायिक किस्मों के रोग मुक्त गन्ने का तेज़ी से उत्पादन और आपूर्ति करने का एक नया तरीका प्रदान करता है। 
    • यह मातृ पौधे को क्लोन करने के लिये मेरिस्टेम का उपयोग करता है। 
    • यह आनुवांशिक पहचान को भी संरक्षित करता है। 
    • टिश्यू कल्चर तकनीक, अत्यधिक खर्चीली और भौतिक सीमाओं के कारण, गैर-आर्थिक हो रही है। 
  • बड चिप तकनीक: 
    • ऊतक संस्कृति के एक व्यवहार्य विकल्प के रूप मे यह द्रव्यमान को कम करता है और बीजों के त्वरित गुणन को सक्षम बनाता है। 
    • यह विधि दो से तीन कली सेट लगाने की पारंपरिक विधि की तुलना में अधिक लाभकारी और सुविधाजनक साबित हुई है। 
    • रोपण के लिये उपयोग की जाने वाली बीज सामग्री पर पर्याप्त बचत के साथ अपेक्षाकृत बेहतर रिटर्न प्राप्त होता है। 

अत: कथन 1 सही है। 

  • शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि दो कलिका वाले सेट्स बेहतर उपज के साथ लगभग 65 से 70% अंकुरित होते हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है। 
  • खराब मौसम के तहत बड़े सेटों का बेहतर अस्तित्व होता है लेकिन रासायनिक उपचार से संरक्षित होने पर सिंगल बडेड सेट भी 70% अंकुरित होते हैं। अत: कथन 3 सही नहीं है। 
  • टिश्यू कल्चर का उपयोग गन्ने के जमाव को अंकुरित करने और विकसित करने के लिये किया जा सकता है जिसे बाद में खेत में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। अत: कथन 4 सही है। अतः विकल्प C सही  है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

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