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एटालिन जलविद्युत परियोजना

  • 08 Jun 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एटालिन जलविद्युत परियोजना, दिबांग घाटी, वन सलाहकार समिति

मेन्स के लिये:

वृद्धि और विकास को प्राथमिकता, वृद्धि और विकास को पर्यावरण पर प्राथमिकता

चर्चा में क्यों?

अरुणाचल प्रदेश में वन्यजीव वैज्ञानिकों और संरक्षणवादियों ने दिबांग घाटी में प्रस्तावित एटालिन जलविद्युत परियोजना (3,097 मेगावाट) से स्थानीय जैवविविधता के लिये खतरों को चिह्नित किया। इस मुद्दे को उठाने के लिये उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF & CC) के तहत वन सलाहकार समिति (FAC) से संपर्क किया। .

दिबांग नदी का महत्त्व:

  • यह परियोजना दिबांग नदी पर आधारित है और इसे 7 वर्षों में पूरा करने का प्रस्ताव है।
    • दिबांग ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी है जो अरुणाचल प्रदेश और असम राज्यों से होकर प्रवाहित होती है।
  • इसमें दिबांग की सहायक नदियों: दीर और टैंगोन पर दो बाँंधों के निर्माण की परिकल्पना की गई है।
  • यह परियोजना हिमालयी क्षेत्र के सबसे समृद्ध जैव-भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत आती है और प्रमुख जैव-भौगोलिक क्षेत्रों जैसे- पैलेरक्टिक ज़ोन और इंडो-मलय क्षेत्र के जंक्शन पर स्थित होगी।
  • स्थापित क्षमता के मामले में इसके भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में से एक होने की उम्मीद है।

पर्यावरणविदों द्वारा उठाई गई प्रमुख चुनौतियाँ:

  • संरक्षणवादियों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि FAC उप-समिति ने प्रस्ताव की सिफारिश करते हुए वन संरक्षण और संबंधित कानूनी मुद्दों के स्थापित सिद्धांतों की अनदेखी की।
  • FAC ने वन विभाजन के खतरे को नज़रअंदाज किया।
    • वन विभाजन का परिणाम विकास परियोजनाओं के प्राकृतिक वनों के साथ सन्निहित परिदृश्यों में गैर-नियोजित गतिविधियों के रूप में होता है और जैवविविधता हॉटस्पॉट में दुर्लभ पुष्प एवं जीव प्रजातियों के लिये खतरा उत्पन्न होता है।
  • FAC की स्थल निरीक्षण रिपोर्ट पर भी मुख्य विवरणों को उपेक्षित करने का सवाल उठाया गया था, जैसे कि निरीक्षण की गई अल्टीट्यूडिनल रेंज में ग्रिड की संख्या और वहांँ वनस्पति की स्थिति, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की विभिन्न अनुसूचियों में सूचीबद्ध जंगली जानवरों के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष संकेत एवं क्षेत्र के पारिस्थितिक मूल्य की समग्र सराहना।
  • एटालिन पर पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट की अपर्याप्तता पर भी प्रकाश डाला गया।
    • वन्यजीव अधिकारियों ने टिप्पणियों को नज़रअंदाज कर दिया, जिसमें क्षेत्र में 25 विश्व स्तर पर लुप्तप्राय स्तनपायी और पक्षी प्रजातियों के प्रभावित होने का खतरा है।
  • बटरफ्लाई और रेप्टाइल पार्कों की स्थापना जैसे प्रस्तावित शमन उपाय अपर्याप्त हैं।

वन सलाहकार समिति (Forest Advisory Committee- FAC):

  • FAC ‘वन (संरक्षण) अधिनयम, 1980 के तहत स्थापित एक संविधिक निकाय है।
  • FAC ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (Ministry of Environment, Forest and Climate Change-MOEF&CC) के अंतर्गत कार्य करती है।
  • यह समिति गैर-वन उपयोगों जैसे-खनन, औद्योगिक परियोजनाओं आदि के लिये वन भूमि के प्रयोग की अनुमति देने और सरकार को वन मंज़ूरी के मुद्दे पर सलाह देने का कार्य करती है

आगे की राह

  • समुदाय के नेतृत्व वाला दृष्टिकोण: क्षेत्र की स्थानीय आबादी से परामर्श किया जाना चाहियेऔर निर्णय लेने में उनकी भागीदारी होनी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अंतिम निर्णय लेने से उनकी चिंताओं को प्रतिबिंबित किया जका सके।
  • पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों का सीमांकन: जिन क्षेत्रों में जैवविविधता के नुकसान का खतरा है, उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिये उचित रूप से चित्रित किया जाना चाहिये कि वे अबाधित रहें।
  • पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए): स्थानीय पर्यावरण पर परियोजना के प्रभाव का व्यापक रूप से एक उचित और पूर्ण मूल्यांकन अध्ययन किया जाना चाहिये।
  • संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार: लुप्तप्राय जानवरों और पौधों की रक्षा के लिये अधिक-से-अधिक राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों की स्थापना की जानी चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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