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सामाजिक न्याय

‘LGBTIQ फ्रीडम ज़ोन’

  • 15 Mar 2021
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संघ के कुछ देशों विशेष रूप से पोलैंड और हंगरी में LGBTIQ समुदाय से संबद्ध लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करने हेतु यूरोपीय संसद द्वारा यूरोपीय संघ क्षेत्र को ‘LGBTIQ फ्रीडम ज़ोन’ (LGBTIQ Freedom Zone) घोषित किया गया है।

  • यूरोपीय संघ के अधिकांश देशों (27 से 23)  में समलैंगिक विवाह को  मान्यता प्राप्त है, जबकि इनमें से 16 देशों ने इस संबंध में कानून भी बनाया है।
  • LGBTIQ में लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स तथा क्यूर समुदाय शामिल हैं। 

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • पोलैंड में समलैंगिक संबंधों को कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है तथा देश में  समलैंगिक जोड़ों द्वारा बच्चे गोद लेना प्रतिबंधित है। हालाँकि एकल लोगों को बच्चे गोद लेने की अनुमति है, जबकि कुछ एकल समलैंगिक लोग प्रतिबंध के बावजूद बच्चा गोद लेने के लिये आवेदन करने में कामयाब भी रहे हैं।
    • अब पोलैंड में एक ऐसा प्रस्ताव लाया गया है जिसमें कोई व्यक्ति यदि एकल समलैंगिक माता या पिता के रूप में बच्चे को गोद लेने हेतु आवेदन करता है तो यह आपराधिक कृत्य माना जाएगा।  
    • पोलैंड में सार्वजनिक एवं निर्वाचित अधिकारियों द्वारा LGBTIQ  समुदाय को निशाना बनाकर दिये जाने वाले घृणित भाषणों के कारण इस समुदाय के खिलाफ भेदभाव और हिंसक हमलों में वृद्धि हुई है। 
    • मार्च 2019 के बाद से  100 से अधिक पोलिश क्षेत्रों (Polish Regions), काउंटीज़ (Counties) और नगर पालिकाओं (Municipalities) द्वारा स्वयं को LGBTIQ  "विचारधारा" ( Ideology) से मुक्त घोषित करने वाले प्रस्तावों को अपनाया गया है।
  • हाल ही में हंगरी की संसद ने भी संवैधानिक संशोधनों को अपनाया जो LGBTIQ लोगों के अधिकारों को प्रतिबंधित करते हैं
  • हंगरी और पोलैंड तथा यूरोपीय आयोग (यूरोपीय संघ के कार्यकारी निकाय) के मध्य  कई मुद्दों पर तनाव है, जिनमें से अधिकांश कानून के शासन के दुरुपयोग, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों आदि पर केंद्रित हैं।
  • हंगरी और पोलैंड के प्राधिकारी वर्ग द्वारा LGBTIQ सिद्धांतों को "विदेशी विचारधारा (Foreign Ideology) के रूप में वर्णित किया गया है।

यूरोपीय संघ का संकल्प:

  • यूरोपीय संघ की संसद द्वारा प्रस्तुत इस प्रस्ताव में यूरोपीय संघ क्षेत्र को ‘LGBTIQ फ्रीडम ज़ोन’ (LGBTIQ Freedom Zone) के रूप में घोषित किया गया है। 
  • यह प्रस्ताव LGBTIQ लोगों को यूरोपीय संघ में किसी भी स्थान पर निवास करने,  सार्वजनिक रूप से असहिष्णुता, भेदभाव या उत्पीड़न के डर के बिना अपनी यौन अभिविन्यास और लैंगिक पहचान व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • इस प्रस्ताव में यूरोपीय संघ द्वारा अधिकारियों से सभी स्तरों पर समानता और मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें बढ़ावा देने का आग्रह किया गया है , जिसमें एलजीबीटीक्यू व्यक्ति भी शामिल हैं।

LGBTIQ समुदाय के संदर्भ में वैश्विक परिदृश्य:

  • आयरलैंड: आयरलैंड द्वारा समलैंगिक विवाह को वैधता प्रदान की गई। वर्ष 1993 में आयरलैंड द्वारा समलैंगिकता को हतोत्साहित किया गया था। बाद में यह पहला देश बना जिसने राष्ट्रीय स्तर हुए जनमत संग्रह द्वारा समलैंगिक विवाह को अनुमति प्रदान की।
  • अमेरिका: अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की गई।
  • नेपाल: वर्ष 2007 में नेपाल द्वारा समलैंगिकता को वैध कर दिया गया तथा देश का नया संविधान LGBTIQ  समुदाय को कई अधिकार प्रदान करता  है।

भारत में LGBT समुदाय:

  •  वर्ष 2018 में नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (Navtej Singh Johar v. Union of India) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आईपीसी की धारा 377 को हटा दिये जाने के बाद भी एलजीबीटीक्यू समुदाय हेतु एक नीति को लागू करने और इस समुदाय के लिये बेहतर वातावरण बनाने में व्यापक अंतर है। अभी भी ऐसे कई मुद्दे हैं जिनका सामना  LGBTIQ समुदाय द्वारा विभिन्न स्तरों पर एक चुनौती के रूप में  किया जा रहा है जो इस प्रकार हैं:
    • परिवार: लेैंगिक संरचना की पहचान की समस्या से विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है और परिवार का विघटन होता है। माता-पिता और उनके एलजीबीटीक्यू बच्चों के बीच संचार की कमी और गलतफहमी से परिवार में विवाद बढ़ जाता है।
    • कार्यस्थल पर भेदभाव: कार्यस्थल पर भेदभाव के चलते LGBTIQ समुदाय का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक-आर्थिक असमानताओं से ग्रस्त है।
    • अन्याय: मानवाधिकार और मौलिक अधिकार सभी लोगों के लिये विद्यमान हैं, लेकिन राज्य ऐसे विशेष कानून बनाने में विफल रहे हैं जो LGBTIQ अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों की रक्षा करते हों और वास्तव में न्याय प्रदान करने में सहायक हों।
    • स्वास्थ्य के मुद्दे: समलैंगिकता के अपराधीकरण के कारण भेदभाव की स्थिति उत्पन्न होती है जो एलजीबीटीक्यू लोगों को बेहतर स्वास्थ्य प्रणाली तक पहुंँचने में बाधा उत्पन्न करती है। यह स्थिति उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधा तथा एचआईवी रोकथाम परीक्षण एवं उपचार सेवाओं तक पहुँच प्राप्त करने की उनकी क्षमता को बाधित करती है।
    • अलगाव और नशीली दवाओं का दुरुपयोग: समाज और परिवार में सम्मान की कमी और कम आत्मविश्वास के कारण ये लोग दोस्तों और परिवार से अलग हो जाते हैं। खुद को तनाव, अस्वीकृति और भेदभाव से छुटकारा पाने की भावना के चलते ये लोग ड्रग्स, शराब और तंबाकू  के आदी हो जाते हैं।

संबंधित कानूनी विकास:

  • नाज़ फाउंडेशन बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (2009):
    • दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करते हुए वयस्कों के मध्य सहमति के आधार पर समलैंगिक गतिविधियों को वैधता प्रदान की गई थी।
  • सुरेश कुमार कौशल केस (2013):
    • सर्वोच्च न्यायालय  ने  दिल्ली उच्च न्यायालय (वर्ष 2009) के पिछले फैसले को पलटते हुए तर्क दिया कि "लैंगिक अल्पसंख्यकों की दुर्दशा" को कानून की संवैधानिकता के निर्धारण में एक तर्क के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
  • न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017):
    • सर्वोच्च न्यायालय  ने फैसला सुनाया कि गोपनीयता का मूल अधिकार जीवन और स्वतंत्रता हेतु अनिवार्य  है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। अत: न्यायालय द्वारा यह माना गया कि 'लेैंगिक संरचना गोपनीयता की एक अनिवार्य विशेषता है ’(sexual orientation is an essential attribute of privacy)।
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018)
    • इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने सुरेश कुमार कौशल मामले (2013) में दिये गए निर्णय को रद्द करते हुए समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था।
  • शफीन जहान बनाम असोकन के.एम. और अन्य (2018): सर्वोच्च न्यायालय  द्वारा कहा गया कि साथी का चुनाव करना एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, जो  समलैंगिक जोड़ों पर भी लागू हो सकता है।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019: संसद द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 पारित किया गया, जिसमें लिंग और लेैंगिक पहचान जैसी संकीर्ण सोच की आलोचना की गई।
  • समलैंगिक विवाह:  फरवरी, 2021 में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि भारत में विवाह को तभी मान्यता दी जा सकती है जब वह "जैविक पुरुष"(Biological Man) और "जैविक महिला" (Biological Woman) के बीच हो और वे बच्चा पैदा करने में सक्षम हों।

आगे की राह: 

  • LGTBIQ समुदाय के उत्थान हेतु एक भेदभाव-विरोधी कानून की आवश्यकता है जो इस समुदाय में किसी भी प्रकार के ज़बरन परिवर्तन का विरोध करता हो तथा राज्य और समाज में बदलाव लाने हेतु इस समुदाय की लैंगिक पहचान या यौन अभिविन्यास के साथ इन्हें सशक्त बनाने में सहायक हो। 
  • सरकारी निकायों, विशेष रूप से स्वास्थ्य से संबंधित और कानून व्यवस्था को यह सुनिश्चित करने हेतु संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है कि LGTBIQ समुदाय को सार्वजनिक सेवाओं से वंचित न किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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