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भारत में एसिड अटैक पर कानून

  • 19 Dec 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, भारतीय दंड संहिता (IPC), विष अधिनियम, 1919।

मेन्स के लिये:

भारत में एसिड अटैक, एसिड अटैक संबंधी कानून, एसिड बिक्री के नियमन पर कानून, एसिड अटैक पीड़ितों के लिये मुआवज़ा और देखभाल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली में तीन लड़कों द्वारा एक युवती पर एसिड अटैक किया गया। इस घटना ने एसिड अटैक के जघन्य अपराध और संक्षारक पदार्थों की आसान उपलब्धता को केंद्रीय विषय बना दिया है।

भारत में एसिड अटैक:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में 150, वर्ष 2020 में 105 और वर्ष 2021 में 102 ऐसे मामले दर्ज किये गए थे।
  • पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में ऐसे मामले अधिक संख्या में दर्ज किये गए हैं, जो आमतौर पर साल-दर-साल देश के सभी मामलों का लगभग 50% होता है।
  • वर्ष 2019 में एसिड अटैक की चार्जशीट दर 83% और सज़ा दर 54% थी।
  • वर्ष 2020 में इस प्रकार के मामले क्रमशः 86% और 72% थे तथा वर्ष 2021 में क्रमशः 89% और 20% दर्ज किये गए थे।
  • वर्ष 2015 में गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को अभियोजन में तेज़ी लाकर एसिड हमलों के मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिये एक परामर्श जारी किया था।

भारत में एसिड अटैक पर कानून:

  • भारतीय दंड संहिता: वर्ष 2013 तक एसिड अटैक को अलग अपराध के रूप में नहीं माना जाता था। हालाँकि भारतीय दंड संहिता (IPC) में किये गए संशोधनों के बाद एसिड अटैक को भारतीय दंड संहिता (IPC) की एक अलग धारा (326A) के अंतर्गत रखा गया तथा 10 वर्ष के न्यूनतम कारावास के साथ दंडनीय बनाया गया था, जो ज़ुर्माने सहित आजीवन कारावास के रूप में बढ़ाया जा सकता है।
  • उपचार से इनकार: कानून में पुलिस अधिकारियों द्वारा पीड़ितों की प्राथमिकी दर्ज करने या उपचार से इनकार करने पर सज़ा का भी प्रावधान है।
    • उपचार से इनकार (सार्वजनिक और निजी दोनों अस्पतालों द्वारा) करने पर एक वर्ष तक की कैद हो सकती है और पुलिस अधिकारी द्वारा कर्तव्य की अवहेलना करने पर दो वर्ष तक की कैद हो सकती है।

एसिड बिक्री के नियमन पर कानून:

  • विष अधिनियम, 1919: वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने एसिड अटैक का संज्ञान लिया और एसिड पदार्थों की बिक्री के नियमन पर एक आदेश पारित किया।
    • आदेश के आधार पर गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को एक सलाह जारी की कि कैसे एसिड की बिक्री को विनियमित किया जाए और विष अधिनियम, 1919 के तहत मॉडल विष कब्ज़ा और बिक्री नियम, 2013 (Model Poisons Possession and Sale Rules, 2013) तैयार किया जाए।
    • परिणामस्वरूप राज्यों को मॉडल नियमों के आधार पर अपने स्वयं के नियम बनाने के लिये कहा गया क्योंकि मामला राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता था।
  • डेटा का रखरखाव: एसिड की ओवर-द-काउंटर बिक्री (बिना किसी वैध नुस्खे के) की अनुमति नहीं थी, जब तक कि विक्रेता एसिड की बिक्री को रिकॉर्ड करने वाली लॉगबुक/रजिस्टर नहीं रखता।
    • इस लॉगबुक में एसिड बेचने वाले व्यक्ति का विवरण, बेची गई मात्रा, व्यक्ति का पता और एसिड खरीदने का कारण भी शामिल होना था।
  • आयु प्रतिबंध और दस्तावेज़ीकरण: बिक्री केवल सरकार द्वारा जारी पते वाली एक फोटो पहचान पत्र की प्रस्तुति पर की जानी है। खरीदार को यह भी साबित करना होगा कि उसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है।
  • एसिड स्टॉक की ज़ब्ती: विक्रेता को 15 दिनों के भीतर और एसिड के अघोषित स्टॉक के मामले में संबंधित उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (Sub-Divisional Magistrate- SDM) के साथ एसिड के सभी स्टॉक की घोषणा करनी होगी। SDM स्टॉक को ज़ब्त कर सकता है और किसी भी दिशा-निर्देश के उल्लंघन के लिये उपयुक्त रूप से 50,000 रुपए तक का जुर्माना लगा सकता है।
  • रिकॉर्ड-कीपिंग: नियमों के अनुसार, शैक्षणिक संस्थानों, अनुसंधान प्रयोगशालाओं, अस्पतालों, सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विभागों, जिन्हें एसिड रखने एवं स्टोर करने की आवश्यकता होती है, को एसिड के उपयोग का एक रजिस्टर बनाए रखना होगा तथा संबंधित SDM के साथ इसे दर्ज करना होगा।
  • जवाबदेही: नियमों के अनुसार, एक व्यक्ति को अपने परिसर में एसिड और सुरक्षित रखने के लिये जवाबदेह बनाया जाएगा। एसिड को इस व्यक्ति की देखरेख में संग्रहीत किया जाएगा तथा प्रयोगशालाओं/भंडारण के स्थान को छोड़ने वाले छात्रों/कर्मियों की अनिवार्य जाँच होगी जहाँ एसिड का उपयोग किया जाता है।

एसिड-अटैक पीड़ितों हेतु मुआवज़ा और देखभाल:

  • मुआवज़ा: एसिड अटैक पीड़ितों को संबंधित राज्य सरकार/केंद्रशासित प्रदेश द्वारा देखभाल और पुनर्वास लागत के रूप में कम-से-कम 3 लाख रुपए का मुआवज़ा दिया जाता है।
  • नि:शुल्क उपचार: राज्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे यह सुनिश्चित करें कि एसिड अटैक के पीड़ितों को सार्वजनिक या निजी किसी भी अस्पताल में निःशुल्क उपचार उपलब्ध कराया जाए। पीड़ित को दिये जाने वाले एक लाख रुपए के मुआवज़े में इलाज पर होने वाले खर्च को शामिल नहीं किया जाना चाहिये।
  • बिस्तरों का आरक्षण: एसिड अटैक के पीड़ितों को प्लास्टिक सर्जरी की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है और इसलिये एसिड अटैक के पीड़ितों के इलाज के लिये निजी अस्पतालों में 1-2 बिस्तर आरक्षित किये जा सकते हैं।
  • सामाजिक एकीकरण कार्यक्रम: राज्यों को भी पीड़ितों के लिये सामाजिक एकीकरण कार्यक्रमों का विस्तार करना चाहिये, जिसके लिये गैर-सरकारी संगठनों (NGO) को विशेष रूप से उनकी पुनर्वास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु वित्तपोषित किया जा सकता है।

आगे की राह

  • किसी को पीछे नहीं छोड़ने का वादा: महिलाओं के खिलाफ हिंसा समानता, विकास, शांति के साथ-साथ महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों की पूर्ति में बाधा बनी हुई है।
    • कुल मिलाकर सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) का ‘किसी को भी पीछे नहीं छोड़ने का वादा’ महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को समाप्त किये बिना पूरा नहीं किया जा सकता है।
  • समग्र दृष्टिकोण: महिलाओं के खिलाफ अपराध को अकेले कानून की अदालत में हल नहीं किया जा सकता है। इसके लिये समग्र दृष्टिकोण और संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने की आवश्यकता है।
  • भागीदारी: कानून निर्माताओं, पुलिस अधिकारियों, फोरेंसिक विभाग, अभियोजकों, न्यायपालिका, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, गैर-सरकारी संगठनों तथा पुनर्वास केंद्रों सहित सभी हितधारकों को एक साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ): 

प्रश्न. समय और स्थान के विरुद्ध भारत में महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (मेन्स-2019)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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