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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कुलभूषण जाधव मामला – क्या है विवाद का विषय?

  • 16 May 2017
  • 5 min read

संदर्भ
भारत और पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के समक्ष कुलभूषण जाधव मामले में अपने आरंभिक तर्क प्रस्तुत किये परन्तु इन दोनों देशों के मध्य वर्ष 2008 में हुए द्विपक्षीय परामर्शी पहुँच समझौते (bilateral consular access agreement) ने इस कानूनी मसले में एक बड़ी भूमिका निभाई| गौरतलब है कि 21 मई, 2008 को परामर्शी पहुँच समझौते की धारा 6 पर भारत और पाकिस्तान के तत्कालीन उच्चायुक्तों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे| इस धारा के तहत राजनीतिक और सुरक्षा आधार पर की गई गिरफ्तारी, निरोध और सज़ा के मामले में दोनों देशों के हितों को ध्यान में रखा जाएगा|  

प्रमुख बिंदु

  • ‘राजनीतिक या सुरक्षा आधार’ इसलिये महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि यह उन लोगों को दर्शाता है जिन्हें सामान्य भाषा में ‘जासूस’ (spy) के नाम से जाना जाता है| आवश्यक रूप से यह समझौता जासूसों को कारागार में मिलने वाले उन विशेषाधिकारों से छूट प्रदान करता है जो वियना सम्मेलन के हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र (जैसे भारत और पाकिस्तान) कारावास में रह रहे एक-दूसरे देश के नागरिकों को प्रदान करते हैं|
  • राजनीतिक और सुरक्षा कैदियों के इन मामलों की जाँच प्रत्येक देश द्वारा की जाएगी| इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक देश की सरकार द्वारा लिया गया कोई भी राजनीतिक निर्णय उनके कारागारों में रहने वाले अन्य देश के नागरिकों पर लागू होगा| 
  • यदि देशों के संबंध अच्छे होंगे तो सरकार इस प्रकार के कैदियों को उनके देश में वापस भेज देगी, परन्तु यदि दोनों देशों के संबंध अच्छे नहीं होंगे तो संबंधित देश की सरकार ऐसे मामलों को संज्ञान में नहीं लेगी| 
  • इसके अतिरिक्त, भारत के लिये ध्यान देने वाली बात यह है कि अब उसे अन्य राष्ट्रों के साथ होने वाले सम्मेलनों में भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के इन द्विपक्षीय विवादों को उठाना होगा| 
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के पास एक कानूनी रणनीति है जो यह बताती है कि पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के लिये कोई सम्मान नहीं है| 
  • यह विचारणीय है कि इस प्रकार के मामलों को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में प्रस्तुत करने पर अन्य राष्ट्र भी इन द्विपक्षीय मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं| इस प्रकार के मामलों को अंतर्राष्ट्रीय न्ययालय के समक्ष रखने से समस्या का समाधान तो नहीं होगा परन्तु इससे मानवाधिकारो के अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों का हल अवश्य निकाला जा सकता है| 
  • पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना है कि पाकिस्तान ने यह उसी समय स्पष्ट कर दिया था जब वर्ष 2008 में भारत और पाकिस्तान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे| इस समझौते की धारा 6 के अनुसार, ऐसे मामलों में जहाँ निरोध और गिरफ्तारी राजनीतिक अथवा सुरक्षा मामलों से संबंधित होगी वहाँ न्यायालय के समक्ष परामर्शी पहुँच का अनुरोध मामले के गुण-दोषों के आधार पर किया जाएगा| पाकिस्तान की यही स्थिति सदैव बनी रहेगी|
  • वस्तुतः पाकिस्तान ने जाधव को एक ‘सुरक्षा कैदी’ का दर्जा दिया है तथा वह वियना सम्मेलन के स्थान पर 2008 के द्विपक्षीय समझौते को उन पर लागू करेगा| हालाँकि, भारतीय अधिकारियों ने भी वर्ष 2008 के समझौते पर ही बल दिया है तथा यह कहा है कि इसकी धारा 6, वर्ष 1963 के वियना सम्मेलन का उल्लंघन नहीं करती है|

वियना सम्मेलन का अनुच्छेद 36 क्या है?
वियना सम्मेलन के अनुच्छेद 36 के अनुसार, परामर्शी अधिकारी भेजने वाले राष्ट्र( वह देश जिसका नागरिक कारावास में है) के नागरिक अपने देश के नागरिकों के साथ संपर्क स्थापित कर सकते हैं, उन्हें अपने देश के नागरिकों (जो कारावास में हैं) के साथ बाहर जाने का अधिकार है जबकि दूसरे देश के नागरिक को अपने देश के कारावास में रह रहे नागरिकों के परामर्शी अधिकारी को बिना देरी के यह सूचित करना होगा कि उनके देश के एक व्यक्ति को उन्होंने कारावास में कैद कर लिया है|

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