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अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

  • 23 Feb 2021
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

यूनेस्को (UNESCO) प्रतिवर्ष 21 फरवरी को भाषायी और सांस्कृतिक विविधता तथा बहुभाषावाद के विषय में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (International Mother Language Day) मनाता है।

  • अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, 2021 की थीम ‘शिक्षा और समाज में समावेशन के लिये बहुभाषावाद को प्रोत्साहन’ (Fostering Multilingualism for Inclusion in Education and Society) है। भाषा और बहुभाषावाद से समावेशी विकास तथा सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goal) को प्राप्त करना आसान हो सकता है।
  • विश्व में 7,000 से अधिक भाषाएँ हैं, जिसमें से सिर्फ भारत में ही लगभग 22 आधिकारिक मान्यता प्राप्त भाषाएँ, 1635 मातृभाषाएँ और 234 पहचान योग्य मातृभाषाएँ हैं।

प्रमुख बिंदु

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के विषय में:

  • इसकी घोषणा यूनेस्को द्वारा 17 नवंबर, 1999 को की गई थी और जिसे विश्व द्वारा वर्ष 2000 से मनाया जाने लगा। यह दिन बांग्लादेश द्वारा अपनी मातृभाषा बांग्ला की रक्षा के लिये किये गए लंबे संघर्ष की भी याद दिलाता है।
  • 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का विचार कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम द्वारा सुझाया गया था। इन्होंने बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान ढाका में वर्ष 1952 में हुई हत्याओं को याद करने के लिये उक्त तिथि प्रस्तावित की थी।
  • इस पहल का उद्देश्य विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की विविध संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा करना तथा मातृभाषाओं का संरक्षण करना एवं उन्हें बढ़ावा देना है।

संबंधित डेटा:

  • संयुक्त राष्ट्र (United Nation) के अनुसार, हर दो हफ्ते में एक भाषा गायब हो जाती है और दुनिया एक पूरी सांस्कृतिक तथा बौद्धिक विरासत खो देती है।
    • वैश्वीकरण के दौर में बेहतर रोज़गार के अवसरों के लिये विदेशी भाषा सीखने की होड़ मातृभाषाओं के लुप्त होने के पीछे एक प्रमुख कारण है।
  • दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000 भाषाओं में से लगभग 43% भाषाएँ लुप्तप्राय हैं।
  • वास्तव में केवल कुछ सौ भाषाओं को ही शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक क्षेत्र में जगह दी गई है। वैश्विक आबादी के लगभग 40% लोगों ने ऐसी भाषा में शिक्षा प्राप्त नहीं की है, जिसे वे बोलते या समझते हैं।
  • सिर्फ सौ से कम भाषाओं का उपयोग डिजिटल जगत में किया जाता है।

भाषाओं के संरक्षण के लिये वैश्विक प्रयास:

  • संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 और वर्ष 2032 के बीच की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक (International Decade of Indigenous Languages) के रूप में नामित किया है।
    • इसके पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (International Year of Indigenous Languages) के रूप में घोषित किया था।
  • यूनेस्को द्वारा वर्ष 2018 में चांग्शा (Changsha- चीन) में की गई युलु उद्घोषणा (Yuelu Proclamation) भाषायी संसाधनों और विविधता की रक्षा करने के लिये विश्व के देशों तथा क्षेत्रों के प्रयासों के मार्गदर्शन में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है।

भारत द्वारा की गई पहलें:

  • हाल ही में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy), 2020 में मातृभाषाओं के विकास पर अधिकतम ध्यान दिया गया है।
    • इस नीति में सुझाव दिया गया है कि जहाँ तक संभव हो शिक्षा का माध्यम कम-से-कम कक्षा 5 तक (अधिमानतः 8वीं कक्षा तक और उससे आगे) मातृभाषा/भाषा/क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिये।
    • मातृभाषा में शिक्षा दिये जाने से यह छात्रों को उनकी पसंद के विषय और भाषा को सशक्त बनाने में मदद करेगा। यह भारत में बहुभाषी समाज के निर्माण, नई भाषाओं को सीखने की क्षमता आदि में भी मदद करेगा।
  • विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों को क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन के लिये वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology) द्वारा अनुदान प्रदान किया जा रहा है।
    • इस आयोग को सभी भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली विकसित करने के लिये वर्ष 1961 में स्थापित किया गया था।
  • राष्ट्रीय अनुवाद मिशन ( National Translation Mission- NTM) को मैसूर स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages- CIIL) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में निर्धारित विभिन्न विषयों की ज़्यादातर पाठ्य पुस्तकों का भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है।
  • लुप्त हो रही भाषाओं के संरक्षण के लिये "लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण" (Protection and Preservation of Endangered Languages) योजना।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) भी देश में उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देता और ‘लुप्तप्राय भाषाओं के लिये केंद्रीय विश्वविद्यालयों में केंद्र की स्थापना’ योजना के तहत नौ केंद्रीय विश्वविद्यालयों को सहयोग करता है।
  • भारत सरकार की अन्य पहलों में भारत वाणी परियोजना (Bharatavani Project) और भारतीय भाषा विश्वविद्यालय (Bharatiya Bhasha Vishwavidyalaya) को शुरू किया जाना प्रस्तावित है।
    • इसके अतिरिक्त उपराष्ट्रपति ने स्थानीय भाषाओं के उपयोग के लिये प्रशासन, अदालती कार्यवाही, उच्च और तकनीकी शिक्षा आदि अन्य क्षेत्रों पर प्रकाश डाला है।
  • केरल सरकार ने जनजातीय बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के लिये नमथ बसई कार्यक्रम (Namath Basai Programme) चलाया है जो बहुत फायदेमंद साबित हुआ है।
  • मातृभाषा की सुरक्षा के लिये गूगल की परियोजना नवलेखा (Navlekha) प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है। इस परियोजना का उद्देश्य भारतीय स्थानीय भाषाओं में ऑनलाइन सामग्री की उपलब्धता को बढ़ाना है।

संबंधित संवैधानिक और कानूनी प्रावधान

  • संविधान का अनुच्छेद 29 (Article 29- अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण) सभी नागरिकों को अपनी भाषा के संरक्षण का अधिकार देता है और भाषा के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
  • अनुच्छेद 120 (Article 120- संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा) संसद की कार्यवाहियों के लिये हिंदी या अंग्रेज़ी का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन संसद सदस्यों को अपनी मातृभाषा में स्वयं को व्यक्त करने का अधिकार है।
  • भारतीय संविधान का भाग XVII (अनुच्छेद 343 से 351) आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 350A (Article 350A- प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा) के अनुसार, देश के प्रत्येक राज्य और प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी का प्रयास होगा कि वह भाषायी अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक चरण में मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करें।
    • अनुच्छेद 350B भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करता है। विशेष अधिकारी को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा, यह भाषायी अल्पसंख्यकों के सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच करेगा तथा सीधे राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपेगा। तत्पश्चात् राष्ट्रपति उस रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है या उसे संबंधित राज्य/राज्यों की सरकारों को भेज सकता है।
    • आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ यथा- असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी शामिल हैं।
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act), 2009 के अनुसार शिक्षा का माध्यम, जहाँ तक व्यावहारिक हो बच्चे की मातृभाषा ही होनी चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.

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