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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

लीची से संबद्ध रोग के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय जर्नल की नैतिकता पर सवाल

  • 03 Feb 2017
  • 8 min read

पृष्ठभूमि

हाल ही में बिहार के मुज़फ्फरपुर (Muzaffarpur) में जिस वैज्ञानिक द्वारा एक 15 वर्षीय युवक में घातक रहस्यमय बीमारी की खोज की गई है, उसने बिहार राज्य की ओर से अंतर्राष्ट्रीय जर्नल “लेंसेट ग्लोबल हेल्थ” (Lancet Global Health)  में 30  जनवरी को इस खोज के विषय में खबर के प्रकाशित किये जाने के तरीके के विरुद्ध नैतिकता के मुद्दे (Ethics Issues) को उठाया है|

प्रमुख बिंदु

  • हाल ही में वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (Christian Medical College) से संबद्ध हुए एक विषाणु विज्ञानी (virologist) डॉ० टी. जैकब जॉन द्वारा इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा गया कि विज्ञान में किसी के द्वारा किये गए कार्य को श्रेय न दिया जाना स्वीकार्य नहीं है| 
  • डॉ० जॉन ने कहा कि लेंसेट जर्नल द्वारा इस अनुसंधान के विषय में प्रकाशित खबर में यह वर्णित न करना कि यह अनुसंधान किसके द्वारा किया गया है, उनके द्वारा प्रकाशित खबरों की वास्तविकता के प्रति संदेह उत्पन्न करता है| 
  • ध्यातव्य है कि डॉ० जॉन द्वारा वर्ष 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह वर्णित किया गया था कि जमैका में पाए जाने वाले एक फल ‘एक्की’ (Ackee) तथा इसी प्रजाति कुल के भारत में पाए जाने वाले फल ‘लीची’ के मध्य एक समरूप रोग का पता लगाया गया है, जिसे जमैका में ‘तीव्र मस्तिष्क विकृति’ (Acute Encephalopathy) कहा जाता है|
  • डॉ० जॉन द्वारा स्पष्ट किया गया था कि यह बीमारी गैर-संक्रामक एन्सिफलोपेथी (Non-Infectious Encephalopathy) और गैर-विषाक्त संक्रामक पदार्थ इन्सेफेलाइटिस  (Viral Encephalitis) के कारण हुई थी|
  • डॉ० जॉन द्वारा मुज़फ्फरपुर में फैली बीमारी तथा एक्की के ज़हर के बारीकी से अध्ययन के पश्चात् यह पाया गया कि जिन बच्चों ने शाम के समय भोजन नहीं किया तथा सुबह खाली पेट लीची के फल का अधिक सेवन किया है, उनके रक्त में शर्करा की मात्रा कम होने तथा तीव्र मस्तिष्क विकृति होने के कारण तीव्र सिर दर्द होने और कभी-कभी मृत्यु होने के भी मामले सामने आए हैं|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2014 में इस बीमारी की चपेट में आने वाले तकरीबन 390 बच्चों में से122 मौत के शिकार हो गए थे|

लेखकों ने दावे का खंडन किया

  • हालाँकि, लेंसेट जर्नल द्वारा लेखक के इन दावों का खंडन किया गया है| जर्नल की ओर से जारी किये बयान में यह स्पष्ट किया गया है कि उक्त खबर में डॉ० जॉन सहित तीन अन्य वैज्ञानिकों के भी नाम अंकित किये गए थे |
  • लेंसेट जर्नल द्वारा प्रस्तुत दावों में यह स्पष्ट किया गया है कि कुछ मूल बातों को शामिल नहीं किया गया है| उदाहरण के लिये, इस रोग से संक्रमित बच्चों के खून तथा पेशाब की जाँच में हाईपोग्लिसिन ए के मेटाबोलिटेस (Metabolites of Hypoglycin A) तथा मिथाइइलेंसाइक्लोप्रोपाइल्गिसिन (Methylenecyclopropylglycine - MPCG) नामक तत्त्व पाए गए हैं| इन विषैले तत्त्वों के कारण मानव के शरीर में उपापचयी असमानताएँ पाई जाती हैं|
  • इसके अतिरिक्त, इस जर्नल में इस बीमारी तथा रात्रि के भोजन की अनुपस्थिति में लीची के उपभोग से संबंधित महत्त्वपूर्ण सांख्यिकीय महामारी विज्ञान की जानकारी के विषय में भी मूल शोध में कोई वर्णन नहीं किया गया था|
  • ध्यातव्य है कि मस्तिष्क के मेरु द्रव (Cerebrospinal Fluid) में ज्वलनशील सेल (Inflammatory Cell) प्रतिक्रिया की अनुपस्थिति, हाइपोग्लाईकिमिया (Hypoglycaemia) और ज्वर की असंगत उपस्थिति कुछ ऐसे आधार थे जिसके कारण इसे एनसीफेलोपेथी (Encephalopathy) कहा गया |
  • यह वस्तुतः निम्न रक्त शर्करा से जुड़ा हुआ एनसीफेलोपेथी का ही एक प्रकार है| साथ ही, यह एक जैवरासायनिक रोग है न कि संक्रामक रोग|
  • इस रोग की उत्पत्ति के विषय में उल्लेख करने के अलावा इस पत्र ने लीची में एमसीपीजी की उपस्थिति का भी उल्लेख किया था| 
  • दिसम्बर 2015 में प्रकाशित एक अन्य पत्र में लीची में एमसीपीजी की उपस्थिति को सूचित किया गया था | हालाँकि, इस पत्र के अनुसार, बच्चों के पेशाब एवं खून के नमूनों में एमसीपीजी अथवा हाइपोग्लाईसीन को अनुपस्थित पाया गया| 
  • इस पत्रिका द्वारा प्राप्त परिणामों में कुपोषित बच्चों द्वारा लीची का उपभोग (विशेषकर दीर्घकालीन उपवास के पश्चात्) जैसे तत्त्वों को भी शामिल किया गया| ध्यातव्य है कि दीर्घकालीन उपवास के पश्चात् जिनके बच्चों के द्वारा प्रातःकाल में अधिक मात्रा में लीची का सेवन किया गया उनमें हाइपोग्लिसीमिक एनसीफेलोपेथी (Hypoglycaemic ncephalopathy) की अधिकाधिक सक्रियता पाई गई है|
  • अगस्त 2014 में प्रकाशित एक पत्र में कहा गया कि वस्तुतः हाइपोग्लिसीमिया (Hypoglycaemia) एक रुके हुए ग्लुकोनियोजेनेसिस (Gluconeogenesis) की ओर संकेत करता है| 
  • इस पत्र में यह उल्लिखित किया गया कि किस प्रकार उचित पोषण प्राप्त बच्चे शरीर में उपस्थित ग्लाइकोजन (Glycogen) भंडार के कारण प्रभावित नहीं होते हैं| यह इसलिये भी संभव है क्योंकि शरीर ग्लूकोज़ के उत्पादन के लिये एक विशेष उपापचय (Specific Metabolic) को कार्य करने से नहीं रोकता है|
  • अंतत: इस सन्दर्भ में प्रस्तुत किये गए कुछ विशेष निष्कर्षों तथा टिप्पणियों पर दृष्टि डालते हुए बिहार सरकार द्वारा पहले ही कुछ विशेष पहलें आरंभ की गई हैं| उदाहरण के तौर पर, बच्चों द्वारा लीची के उपभोग पर माता-पिता द्वारा प्रतिबन्ध लगाना, यह सुनिश्चित करना कि बिना भोजन किये कोई भी बच्चा न सोए, रक्त में ग्लूकोज़ का मापन करना तथा इसकी उपस्थिति पाए जाने के समय तुरंत ही 10% डेक्सट्रोज़ (dextrose) को पानी में डालकर बच्चों को पिलाना इत्यादि|
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