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आंतरिक सुरक्षा

आईएनएस विक्रांत का समुद्री परीक्षण

  • 05 Aug 2021
  • 4 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आईएनएस विक्रांत,  प्रोजेक्ट-75I, रक्षा अधिग्रहण परिषद, वर्ष 1971 का  युद्ध, मिग-29K, बराक LR SAM 

मेन्स के लिये:

आईएनएस विक्रांत के समुद्री परीक्षण का भारतीय नौसेना हेतु महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आईएनएस विक्रांत नामक स्वदेशी विमान वाहक (IAC) 1 का समुद्री परीक्षण (परीक्षणों के अंतिम चरणों में से एक) शुरू किया गया।

  • इसके वर्ष 2022 में शामिल होने की संभावना है। वर्तमान में भारत के पास केवल एक विमान वाहक पोत है-रूसी मूल का आईएनएस विक्रमादित्य।
  • इससे पहले रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने प्रोजेक्ट-75 I के तहत भारतीय नौसेना के लिये छह उन्नत पनडुब्बियों के प्रस्ताव हेतु अनुरोध (RFP) जारी करने को मंज़ूरी दी थी।

प्रमुख बिंदु

  • नौसेना के सेवामुक्त प्रथम वाहक के नाम पर पोत का नाम विक्रांत रखा जाएगा।
    • भारत ने वर्ष 1961 में यूनाइटेड किंगडम से विक्रांत का अधिग्रहण किया और इसने पाकिस्तान के साथ वर्ष 1971 के युद्ध में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके कारण बांग्लादेश का जन्म हुआ।
  • IAC-1 बोर्ड के 76% से अधिक सामग्री और उपकरण स्वदेशी हैं।
  • इसमें 30 विमानों का एक वायु घटक होगा, जिसमें स्वदेशी उन्नत हल्के हेलीकाप्टरों के अलावा मिग-29K लड़ाकू जेट, कामोव-31 हवाई पूर्व चेतावनी हेलीकॉप्टर और जल्द ही शामिल होने वाले MH-60R बहु-भूमिका हेलीकॉप्टर होंगे।
  • इसकी 30 समुद्री मील (लगभग 55 किमी. प्रति घंटे) की शीर्ष गति होने की उम्मीद है और यह चार गैस टर्बाइनों द्वारा संचालित है। इसकी सहनशक्ति 18 समुद्री मील (32 किमी. प्रति घंटे) की गति से 7,500 समुद्री मील है।
  • शिपबोर्न हथियारों में बराक LR SAM और AK-630 शामिल हैं, जबकि इसमें सेंसर के रूप में MFSTAR और RAN-40L 3D रडार हैं। पोत में एक ‘पावर ईडब्ल्यू (इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर) सूट’ भी है।
  • इसमें विमान संचालन को नियंत्रित करने के लिये रनवे की एक जोड़ी और 'शॉर्ट टेक ऑफ अरेस्ट रिकवरी' सिस्टम है।

महत्त्व:

  • यह विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में युद्ध और समुद्री नियंत्रण क्षमता को मज़बूत करता है।
  • वायु सेना की क्षमता में वृद्धि: यह लंबी दूरी के साथ वायु सेना की शक्ति को प्रक्षेपित करनेके साथ एक अतुलनीय सैन्य उपकरण के रुप में भी कार्य करेगा। जिसमें हवाई अवरोध, सतही युद्ध, आक्रामक और रक्षात्मक काउंटर-एयर, हवाई पनडुब्बी रोधी युद्ध तथा हवाई हमले के पूर्व चेतावनी शामिल हैं।
  • आत्मनिर्भरता: वर्तमान में केवल पांँच या छह देशों के पास विमानवाहक पोत बनाने की क्षमता है। भारत अब इस विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है।

भावी प्रयास:

  • वर्ष 2015 से नौसेना देश के लिये एक तीसरे विमानवाहक पोत बनाने की मंज़ूरी मांग रही है जिसे अगर मंज़ूरी मिल जाती है, तो यह भारत का दूसरा स्वदेशी विमान वाहक (IAC-2) बन जाएगा। 
  • आईएनएस विशाल (INS Vishal) नाम से प्रस्तावित यह वाहक 65,000 टन का विशाल पोत है, जो आईएसी-1 (IAC-1) और आईएनएस विक्रमादित्य (INS Vikramaditya) से काफी बड़ा है।

स्रोत: द हिंदू  

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