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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘इनफॉर्मेशन यूटिलिटी’ से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • 16 Oct 2017
  • 7 min read

संदर्भ

पिछले माह ही नेशनल ई-गवर्नेंस सर्विसेज लिमिटेड (National e-Governance services Ltd-NeSL), इन्सोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड, 2016 के अंतर्गत ‘दिवालियापन’ (Bankruptcy) के लिये देश का पहला ‘इनफार्मेशन यूटिलिटी’(Information utility) बन गया है। एन .ई एस.एल को ‘भारतीय स्टेट बैंक’ और ‘भारतीय जीवन बीमा निगम’ के अधीन लाया गया है। दरअसल, हाल ही में भारत के ‘इन्सोल्वेंसी और बैंकरप्सी बोर्ड’ ने भी इन यूटीलिटीज़ को स्थापित करने हेतु बनाए गए मानदंडों को भी आसान बना दिया है। 

इनफॉर्मेशन यूटिलिटी क्या है?

  • इनफॉर्मेशन यूटिलिटी एक ‘सूचना नेटवर्क’ (information network) है, जो उधारियों, डिफॉल्ट और सुरक्षा हितों से संबंधित वित्तीय आँकड़ों का संग्रहण करता है।
  • इस यूटिलिटी को कारोबारों, वित्तीय संस्थाओं, निर्णयन प्राधिकारी (Adjudication authority), दिवालिया पेशेवरों और संबंधित अन्य हितधारकों को वित्तीय सूचना उपलब्ध कराने में विशेषज्ञता हासिल होगी।

यह क्यों महत्त्वपूर्ण है? इसकी उपयोगिता क्या है?

  • इनफॉर्मेशन यूटिलिटी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा इनफॉर्मेशन यूटिलिटी के कार्य पर प्रकाशित की जाने वाली ‘कार्यकारी समूह’ की रिपोर्ट के आधार पर ऋणों और डिफ़ॉल्ट्स के विषय में उच्च गुणवत्तापरक और प्रमाणीकृत सूचना उपलब्ध कराना है।
  • अपेक्षा है कि इनफॉर्मेशन यूटिलिटी इसमें प्रमुख भूमिका का निर्वहन करेगी, क्योंकि उसे पंजीकृत उपभोक्ताओं की वित्तीय सूचनाओं का संग्रहण करने तथा प्राप्त सूचनाओं के सत्यापन की भी अनुमति दी गई है। इसके अतिरिक्त, इसके द्वारा बनाए गए डाटाबेस और रिकार्ड्स,  ऋणदाताओं (lenders) को ऋणों के लेनदेन (credit transactions) संबंधी निर्णय लेने में सहायता करेंगे।
  • चूँकि यूटिलिटी के पास ऋण संबंधी सभी सूचनाएँ मौजूद होंगी अतः इससे देनदार (debtors) भी सतर्क रहेंगे। महत्त्वपूर्ण यह है कि यूटिलिटी के पास उपलब्ध सूचना का उपयोग ‘राष्ट्रीय कंपनी कानून प्राधिकरण’ (National Company Law Tribunal) के समक्ष दिवालियापन मामलों में साक्ष्य के तौर पर किया जा सकता है।

इन यूटिलिटीज़ के संचालन संबंधी नियम क्या हैं?

  • इनफॉर्मेशन यूटिलिटीज़ का संचालन ‘इन्सोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड, 2016 (Insolvency and Bankruptcy code 2016) और आईबीबीआई (इनफॉर्मेशन यूटिलिटीज़) विनियमन, 2017 द्वारा किया जाता है। दरअसल,भारत का इन्सोल्वेंसी और बैंकरप्सी बोर्ड (Insolvency and Bankruptcy Board of India -IBBI)  इस संबंध में कुछ पहलुओं (जैसे- इन संस्थाओं का पंजीकरण और निरसन, उनके शेयरधारिता और उनका शासन) से संबंधित जानकारियाँ प्राप्त करता है।
  • हाल ही में, आईबीबीआई ने इनफॉर्मेशन यूटिलिटीज़ के लिये बनाए गए नियमों में कुछ छूट प्रदान की है। अब स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध भारतीय फर्मों को इन यूटिलिटीज़ में 100% शेयर रखने की अनुमति प्रदान कर दी गई है। इसके अतिरिक्त, व्यक्तियों को भी इन यूटिलिटीज़ में 3 वर्षों की समयावधि के लिये 51 % शेयर रखने की भी अनुमति दे दी गई है।

ये यूटिलिटीज़ दिवालियापन प्रक्रिया में हितधारकों की किस प्रकार से सहायता करेंगी?

  • इस कानून के एक विशेषज्ञ के अनुसार, वित्तीय लेनदारों (वे बैंक जो कंपनी को ऋण उपलब्ध कराते हैं) के लिये यह आवश्यक है कि वे इनफॉर्मेशन यूटिलिटीज़ को वित्तीय सूचना उपलब्ध कराएँ। इसका लाभ यह होगा कि  जब भी वे डिफ़ॉल्ट फर्म के विरुद्ध दिवालियापन कार्यवाही की शुरुआत करेंगे तो ये यूटिलिटीज़ इसमें मदद कर सकती हैं। ये यूटिलिटीज़ ‘आँकड़ों तक पहुँच बनाने’ (accessing data) में एक केंद्रीकृत प्लेटफॉर्म की भाँति कार्य करेंगी।
  • वित्तीय देनदारों के विपरीत, ‘ऑपरेशनल क्रेडिटर’ (फर्मों को वस्तुओं और सेवाओं के आपूर्तिकर्ता) के लिये यह वैकल्पिक है, कि वे  इन यूटिलिटीज़ को वित्तीय सूचना उपलब्ध कराए अथवा नहीं। हालाँकि इनफॉर्मेशन यूटिलिटीज़ के गठन का उद्देश्य ही ‘वित्तीय डाटा भंडार’ (financial data repository) का सृजन करना है, परन्तु यह देखना भी आवश्यक होगा कि फर्म ऑपरेशनल क्रेडिटर पर देय बकाया राशि के संदर्भ में किस सीमा तक डाटा उपलब्ध कराते हैं। साथ ही यह देखना भी प्रासंगिक होगा कि इन्सोल्वेंसी प्रक्रिया के दौरान ये यूटिलिटीज़ ऑपरेशनल क्रेडिटर्स के लिये किस प्रकार मददगार सिद्ध होंगी।

इन यूटिलिटीज़ के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ कौन-कौन सी हैं?

  • वस्तुतः यह वित्तीय लेनदारों, ऑपरेशनल क्रेडिटर्स और कॉर्पोरट देनदारों (corporate debtors) पर निर्भर है कि वे इनफॉर्मेशन यूटिलिटीज़ को आवश्यक सूचना उपलब्ध कराएँ क्योंकि सूचनाओं कि संवेदनशीलता के कारण प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। यहाँ तक कि सूचनाओं को साझा करने में कुछ अवरोध भी उत्पन्न हो सकते हैं।  चूँकि यह एक डिजिटल डाटाबेस है अतः इसमें डाटा कि गोपनीयता और डाटा के चोरी होने का खतरा भी है।
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