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सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023

  • 28 Apr 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015), सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023 और संबंधित चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय (Bombay High Court ) ने कहा है कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 पैरोडी या व्यंग्य के माध्यम से सरकार की निष्पक्ष आलोचना को संरक्षण प्रदान नहीं करता है।

सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023:

  • मध्यवर्ती संस्थानों के लिये अनिवार्य:
    • कोई भी प्लेटफॉर्म हानिकारक अस्वीकृत ऑनलाइन गेम और उनके विज्ञापनों की अनुमति नहीं दे सकता है।
    • उन्हें भारत सरकार के बारे में गलत जानकारी साझा नहीं करनी चाहिये, जैसा कि एक तथ्य-जाँच इकाई द्वारा पुष्टि की गई है।
      • एक ऑनलाइन मध्यस्थ- जिसमें फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तथा एयरटेल, जियो एवं वोडाफोन आइडिया जैसे इंटरनेट सेवा प्रदाता शामिल हैं, को केंद्र सरकार से संबंधित सामग्री की मेज़बानी न करने के लिये "उचित प्रयास" करना चाहिये जिसे "तथ्य-जाँच इकाई" द्वारा "नकली या भ्रामक" के रूप में पहचाना जाता है तथा आईटी मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है।
  • स्व-नियामक निकाय:
    • ऑनलाइन गेमिंग प्रदान करने वाले प्लेटफॉर्म को एक स्व-नियामक निकाय (SRB) के साथ पंजीकरण करना होगा जो यह निर्धारित करेगा कि खेल "अनुमति" है या नहीं।
    • प्लेटफॉर्म को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ऑनलाइन गेम में कोई जुआ या सट्टेबाज़ी का तत्त्व शामिल न हो। उन्हें कानूनी आवश्यकताओं, मानकों और माता-पिता के नियंत्रण जैसी सुरक्षा सावधानियों का भी पालन करना चाहिये।
  • सेफ हार्बर का दर्जा खत्म किया जाना:
    • यदि आगामी तथ्य-जाँच इकाई द्वारा किसी भी जानकारी को नकली के रूप में चिह्नित किया जाता है, तो मध्यवर्ती संस्थाओं को इसे हटाने की आवश्यकता होगी, ऐसा न करने पर वे अपने सेफ हार्बर को खोने का जोखिम उठाएंगी, जो उन्हें तीसरे पक्ष की सामग्री के खिलाफ मुकदमेबाज़ी से बचाता है।
      • सोशल मीडिया साइट्स को ऐसे पोस्ट हटाने होंगे और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को ऐसी सामग्री के URL को ब्लॉक करना होगा।

प्रमुख आईटी नियम, 2021:

  • सोशल मीडिया प्लेटफार्म द्वारा सावधानी बरतना अनिवार्य करना:
    • विशेष तौर पर आईटी नियम (2021) सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अपने प्लेटफॉर्म पर सामग्री के संबंध में कड़ी निगरानी करने के लिये बाध्य करते हैं।
  • उपयोगकर्त्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना:
    • इस प्रकार व्यक्तियों को पूर्ण या आंशिक नग्नता या यौन क्रिया में दिखाने या छेड़छाड़ की प्रकृति सहित प्रतिरूपण की प्रकृति आदि में मध्यवर्ती संस्थाएँ व्यक्तियों के निजी क्षेत्रों को उजागर करने वाली सामग्री की पहुँच संबंधी शिकायतों की प्राप्ति के 24 घंटों के अंदर उन्हें हटा या अक्षम कर देंगी।।
  • उपयोगकर्त्ताओं को गोपनीयता नीतियों के संदर्भ में शिक्षित करना:
    • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की गोपनीयता नीतियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उपयोगकर्त्ताओं को कॉपीराइट सामग्री और ऐसी किसी भी विषय-वस्तु को प्रसारित न करने के संदर्भ में शिक्षित किया जाए, जो मानहानिकारक, नस्लीय या जातीय रूप से आपत्तिजनक, पीडोफिलिक, भारत की एकता, अखंडता, रक्षा, सुरक्षा या संप्रभुता हेतु खतरा या विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध अथवा किसी समकालीन कानून का उल्लंघन करता हो।

चुनौतियाँ:

  • अस्पष्ट परिभाषा:
    • यह संशोधन झूठी खबरों/फेक न्यूज़ को परिभाषित करने में विफल है, साथ ही सरकार की तथ्य-जाँच इकाई को राज्य से जुड़े "किसी भी व्यवसाय के संबंध में" किसी भी समाचार की सटीकता की पुष्टि करने की अनुमति देता है।
    • अपरिभाषित शब्दों का उपयोग, विशेष रूप से वाक्यांश "कोई भी व्यवसाय" सरकार को यह तय करने की अनियंत्रित शक्ति देता है कि लोग इंटरनेट पर क्या देख, सुन और पढ़ सकते हैं।
  • फेक न्यूज़ को लेकर स्पष्टता का अभाव:
    • IT नियम, 2023 गलत या भ्रामक जानकारी को परिभाषित नहीं करते हैं, न ही वे तथ्य-जाँच इकाई हेतु योग्यता और प्रक्रियाओं को परिभाषित करते हैं।
    • इसने फेक न्यूज़ के रूप में क्या योग्य है, यह निर्धारित करने की सरकार की अत्यधिक शक्ति के बारे में चिंता जताई है क्योंकि नियम शब्द की स्पष्ट परिभाषा प्रदान नहीं करते हैं।
  • जानकारी हटाना:
    • तथ्य-जाँच इकाई द्वारा गलत समझी जाने वाली जानकारी को मध्यवर्ती संस्थाएँ हटा देंगी, केवल राज्य को यह निर्धारित करने की शक्ति है कि क्या सही है।
    • नया विनियमन सरकार को यह तय करने की शक्ति प्रदान करता है कि कौन-सी सूचना फर्ज़ी/गलत है तथा बिचौलियों को फर्ज़ी या गलत माने जाने वाले पोस्ट को हटाने के लिये मज़बूर करके सेंसरशिप का उपयोग करे।
  • उच्चतम न्यायालय के निर्णय का उल्लंघन:
    • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि अभिव्यक्ति/वाक् को सीमित करने वाले कानून न तो संदिग्ध होने चाहिये, न ही व्यापक अनुप्रयोग योग्य (‘Neither be Vague nor Over-broad’)।

आगे की राह

  • गलत सूचनाओं और फर्ज़ी/भ्रामक खबरों से निपटने के लिये सरकार एवं बिचौलिये एल्गोरिदम तथा तथ्य-जाँच वेबसाइट्स जैसे प्रौद्योगिकी समाधानों का उपयोग कर सकते हैं।
  • बिचौलिये स्व-नियामक उपायों को भी लागू कर सकते हैं जैसे कि सामग्री की निगरानी करना तथा तथ्यों की जाँच करने वाली वेबसाइट्स के साथ कार्य करना।
  • इसके अतिरिक्त सेंसरशिप के खतरों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने एवं मुक्त वाक्/अभिव्यक्ति को बढ़ावा देने हेतु सोशल मीडिया अभियानों, कार्यशालाओं एवं सार्वजनिक मंचों पर चर्चा जैसे उपायों का उपयोग कर सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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