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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत में सोलर सेल और मॉड्यूल निर्माण 'अप्रचलित'

  • 20 Dec 2017
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?
एक ऐसे समय में जब भारत सरकार यह तय करने का प्रयास कर रही है कि भारतीय सोलर सेलों (solar cells) और मॉड्यूल निर्माताओं (modules manufacturers) को एंटी डंपिंग ड्यूटी के ज़रिये संरक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिये, वहाँ नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy) का यह बयान कि देश में सोलर सेल/मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता "अप्रचलित" (obsolete) है, काफी निराशाजनक है।

'प्रौद्योगिकी उन्नयन फंड'

  • भारत में सौर ऊर्जा के उत्पादन हेतु समर्थन करने के लिये एक 'अवधारणा नोट’ (concept note) में मंत्रालय द्वारा "प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता" (direct financial support) की बात कही गई। 
  • साथ ही इसके लिये तकरीबन 11,000 करोड़ रुपए और एक 'टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन फंड' (technology upgradation fund) के निर्माण पर भी बल दिया गया।
  • यह वस्त्र उद्योग के संबंध में बने ऐसे ही फंड पर आधारित अवधारणा है।
  • 'टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन फंड' एक ब्याज सबवेंशन स्कीम (जैसा कि कपड़ा उद्योग के लिये है) या प्रौद्योगिकी उन्नयन परियोजनाओं के लिये एक पूंजीगत सब्सिडी हो सकती है।

वर्तमान स्थिति

  • मंत्रालय द्वारा स्पष्ट किया गया कि देश में 3.1 गीगावाट सेल और 8.8 गीगावाट मॉड्यूल (मॉड्यूल को बनाने के लिये सेलों का उपयोग किया जाता है) बनाने की क्षमता स्थापित की जा चुकी है। 
  • हालांकि, अवधारणा नोट के अनुसार, "अप्रचलित तकनीक के कारण इस क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा रहा है।“ 
  • अभी तक केवल 1.5 गीगावाट क्षमता वाली सेल निर्माण और 3 गीगावाट क्षमता वाले मॉड्यूल निर्माण का उपयोग किया गया है।

पी.ई.आर. सेल

  • मौजूदा क्षमता मुख्य रूप से बहु-क्रिस्टलीय (multi-crystalline) ए.एल.-बी.एस.एफ. (Aluminium-Back Surface Field) सौर सेलों पर आधारित है, जिनकी अपनी दक्षता सीमाएँ हैं। साथ ही बहुत कम कंपनियों द्वारा बेहतर पी.ई.आर.सी. (Passivated Emitter Rear Cell) तकनीक की ओर कदम बढ़ाए गए हैं।
  • पी.ई.आर. सेल ऐसी सेल होती हैं जिन पर पीछे की ओर एक प्रकाश प्रतिबिंबित परत लगी होती है। ये सामान्य सेलों की तुलना में अधिक कुशल और लागत प्रभावी होती हैं।

डी.सी.आर. योजना को पुनर्जीवित करना

  • सौर निर्माण के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने के अलावा मंत्रालय द्वारा 'डी.सी.आर. (domestic content requirement - DCR) योजना को "पुनर्जीवित करने" का भी प्रस्ताव पेश किया गया है।
  • यह योजना स्थानीय रूप से निर्मित सेलों और मॉड्यूलों के लिये बाज़ार का एक हिस्सा सुरक्षित रखने में उल्लेखनीय भूमिका निभाती है। 
  • हालाँकि इस योजना के तहत विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) के वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन किया गया। 
  • वर्तमान में डी.सी.आर. योजना के तहत 1,436 मेगावाट की सौर परियोजनाओं को चालू किया गया, जबकि 1000 मेगावाट की परियोजनाएँ अभी निर्माणाधीन हैं और अभी सब बंद हैं।
  • हालाँकि, इस समस्या को मद्देनज़र रखते हुए ही केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों द्वारा स्थानीय-निर्मित उत्पादों का उपयोग करके 12,000 मेगावाट की परियोजनाओं की स्थापना करने का प्रस्ताव पेश किया गया है।
  • अवधारणा नोट भी उन लोगों को पूंजीगत सब्सिडी के बारे में बताता है जिन्होंने सोलर मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को स्थापित किया है, जिसमें मूल्य में वृद्धि के स्तर को अनुक्रमित किया गया है।
  • इसके विपरीत, वे निर्माण कार्य हेतु आवश्यक बिजली की आपूर्ति के लिये सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना भी कर सकते हैं, साथ ही बाद में वापसी के लिये ग्रिड के साथ बिजली बैंक को सुविधाएँ प्रदान कर सकते हैं।

पॉलिसिलिकॉन का प्रयोग

  • सौर पैनलों का निर्माण (जिसे मॉड्यूल भी कहा जाता है) पॉलिसिलिकॉन (polysilicon) से शुरू होता है, जो सिलिकॉन से बना होता है। 
  • पॉलिसिलिकॉन को सिल्लियों के रूप में तैयार किया जाता है, जो वेफर्स में कटौती करती हैं। सेलों के निर्माण में वेफर्स का इस्तेमाल किया जाता है। एक सेल की एक स्ट्रिंग को मॉड्यूल कहा जाता है। 
  • वर्तमान में भारत में आयातित सामग्री से केवल मॉड्यूल और सेलों का ही निर्माण किया जाता है। 

संशोधित-विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना

  • वर्तमान में इन मॉड्यूल और सेलों के निर्माण के लिये उपलब्ध एकमात्र प्रोत्साहन योजना के रूप में संशोधित-विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना (Modified-Special Incentive Package Scheme) ही मौजूद  है। 
  • यह योजना सभी इलेक्ट्रॉनिक सामान निर्माताओं के लिये उपलब्ध है। इसका क्रियान्वयन इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology) द्वारा किया गया है। 

विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना

  • कैबिनेट ने इलेक्ट्रोनिक संरचना निर्माण एवं विनिर्माण (ESDM) क्षेत्र में बड़े स्तर पर विनिर्माण को प्रोत्साहित करने हेतु एक विशेष प्रोत्साहन पैकेज उप्लब्ध करने के लिये जुलाई 2012 में एम-सिप्स को स्वीकृति प्रदान की।
  • यह योजना पूंजी व्यय के लिये सब्सिडी मुहैया कराती है।  
  • यह सब्सिडी विशेष आर्थिक क्षेत्रों में 20% तथा गैर-विशेष आर्थिक क्षेत्रों में 25% है।
  • इसके विस्तार में वृद्धि और प्रक्रिया के सरलीकरण के लिये इस योजना को अगस्त 2015 में संशोधित किया गया था।  
  • एम –सिप्स इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र के निवेश पर सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम है।
  • भारत में इलेक्ट्रॉनिक संरचना के निर्माण एवं विनिर्माण क्षेत्र (ESDM) के निवेश में तेज़ी लाने  के अतिरिक्त एम-सिप्स में किये गए संशोधनों से रोज़गार के अवसरों का सृजन करने तथा आयातों पर निर्भरता कम होने की आशा की जा रही है।  
  • इस योजना के तहत प्राप्त किये गए प्रोजेक्टों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से एक मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराने की सामर्थ्य है।
  • यह योजना सभी राज्यों और ज़िलों को कवर करती है तथा उन्हें इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण में निवेशों को आकर्षित करने का एक अवसर उपलब्ध कराती है।

संशोधन की मुख्य विशेषताएँ  

  • इस योजना के तहत आवेदनों को 31 दिसम्बर, 2018 अथवा उस समय तक प्राप्त किया जाएगा जब तक प्रोत्साहन प्रतिबद्धता 10,000 करोड़ रुपए तक न पहुँच जाए| यदि प्रोत्साहन प्रतिबद्धता 10,000 करोड़ तक पहुँच जाती है तो आगे की वित्तीय प्रतिबद्धताओं का निर्णय करने के लिये इसकी समीक्षा की जाएगी।  
  • नई स्वीकृतियों के लिये इस योजना के तहत दिया जाने वाला प्रोत्साहन, प्रोजेक्ट की स्वीकृति की तारीख से उपलब्ध होगा न कि आवेदन की रसीद प्राप्त होने के दिनांक से। प्रोजेक्ट की स्वीकृति की तारीख से 5 वर्षों के अंदर किये गए निवेशों के लिये प्रोत्साहन उपलब्ध होगा। 
  • सम्पूर्ण आवेदन के प्रस्तुतीकरण के 120 दिनों के भीतर ही सामान्यतः योग्य आवेदनों के अनुसार स्वीकृतियाँ प्रदान की जाएंगी। 
  • इस योजना के तहत आरंभिक प्रोत्साहन को प्राप्त करने वाली इकाई कम से कम तीन वर्षों तक वाणिज्यिक उत्पादन में बने रहने के लिये एक उपक्रम उपलब्ध कराएगी। 
  • कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता और नीति आयोग के सीईओ और व्यय सचिव से मिलकर बनी एक पृथक समिति (MEITY) का गठन बड़े प्रोजेक्टों के लिये किया जाएगा, जिनमें 6850 करोड़ (लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के निवेश की कल्पना की गई है।

निष्कर्ष
हालाँकि, कुछ कंपनियों विशेषकर चीन की दो प्रमुख कंपनियों त्रिना सोलर एवं लोंगी (Trina Solar and Longi) ने भारत में विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की है। यदि इन प्रोत्साहनों को गंभीरता से लागू किया जाता है और यदि अगले पाँच सालों में बाज़ार की स्थिति स्पष्ट होती है, तो बहुत से निवेशकों का इस तरफ ध्यान आकर्षित होगा, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिये भी एक अच्छा संकेत है।

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