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सामाजिक न्याय

बाल संरक्षण पर रेलवे के सहयोग से जागरूकता अभियान

  • 08 Jun 2018
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्वनी लोहानी ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights - NCPCR) के साथ संयुक्त रूप से “बाल संरक्षण पर रेलवे के सहयोग से जागरूकता अभियान” की शुरूआत की। इस प्रयास के तहत रेलवे के संपर्क में आने वाले यात्रियों के रूप में बच्चे, त्यागे हुए (abandoned) बच्चे, तस्करी कर लाए गए बच्चे तथा अपने परिवार से जुदा हुए बच्चों के संरक्षण के लिये जागरूकता अभियान शुरू किया गया है।

  • यह अभियान पूरी रेलवे प्रणाली में बच्चों की सुरक्षा के मुद्दे को हल करने और सभी हितधारकों, यात्रियों, विक्रेताओं, कुलियों को संवेदनशील बनाने के लिये शुरू किया गया है।
  • वर्तमान में, रेलवे के संपर्क में बच्चों की देखभाल और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये रेलवे की यह मानक परिचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure - SOP) 88 स्टेशनों पर सफलतापूर्वक लागू की गई है। आने वाले समय में इसे बढ़ाकर 174 स्टेशनों पर लागू करने की योजना है।
  • बाल यौन उत्पीड़न कानूनी, सामाजिक, चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक प्रभाव वाली एक बहु-आयामी समस्या है। इससे बचने के उपायों में बच्चों एवं आम लोगों में जागरूकता फैलाना और माता-पिता को अपने बच्चों के साथ सतर्क, उत्तरदायी, दोस्ताना व अभिव्यक्तिशील होना तथा इन मुद्दों को लेकर बच्चों को शिक्षित करना शामिल हैं।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
National Commission for Protection of Child Rights – NCPCR

  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की स्थापना संसद के एक अधिनियम बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 के अंतर्गत मार्च 2007 में की गई थी।
  • आयोग का अधिदेश यह सुनिश्चित करना है कि समस्त विधियाँ, नीतियाँ कार्यक्रम तथा प्रशासनिक तंत्र बाल अधिकारों के संदर्श के अनुरूप हों, जैसा कि भारत के संविधान तथा साथ ही संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सम्मेलन (कन्वेशन) में प्रतिपादित किया गया है।
  • बालक को 0 से 18 वर्ष के आयु वर्ग में शामिल व्यक्ति के रूप में पारिभाषित किया गया है। 
  • यह आयोग राष्ट्रीय नीतियों एवं कार्यक्रमों में निहित अधिकारों पर आधारित दृष्टिकोण की परिकल्पना करता है तथा इसके अंतर्गत प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्टताओं एवं मज़बूतियों को ध्यान में रखते हुए राज्य, ज़िला और खण्ड स्तरों पर पारिभाषित प्रतिक्रियाओं को भी शामिल किया गया है। 
  • प्रत्येक बालक तक पहुँच बनाने के उद्देश्य से इसके अंतर्गत समुदायों तथा कुटुम्बों तक गहरी पैठ बनाने का आशय रखा गया है तथा अपेक्षा की गई है कि इस संबंध में प्राप्त सभी प्रकार के सामूहिक अनुभव पर उच्चतर स्तर पर सभी प्राधिकारियों द्वारा विचार किया जाए।
  • इस प्रकार, आयोग बालकों तथा उनकी कुशलता को सुनिश्चित करने के लिये राज्य के लिये एक अपरिहार्य भूमिका, सुदृढ़ संस्था-निर्माण प्रक्रियाओं, स्थानीय निकायों और समुदाय स्तर पर विकेन्द्रीकरण के लिये सम्मान तथा इस दिशा में वृहद् सामाजिक चिंता की परिकल्पना करता है।

आयोग का गठन

  • केंद्रीय सरकार प्रत्यायोजित शक्तियों का प्रयोग करने और इस अधिनियम के अंतर्गत इसे निर्दिष्ट किये गए कृत्यों का निष्पादन करने के लिये एक निकाय का गठन करेगी जिसे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के नाम से जाना जाएगा।
  • इसके अंतर्गत एक अध्यक्ष (जिसने बच्चों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये असाधारण कार्य किया है) और 6 सदस्य (जिसमें कम-से-कम दो महिलाएं होगी) होंगे, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा; बाल स्वास्थ्य, देखभाल, कल्याण व बाल विकास; किशोर न्याय या उपेक्षित/वंचित बच्चों की देखभाल, निःशक्त बच्चे; बालश्रम या बच्चों में तनाव का उन्मूलन; बाल मनोविज्ञान या सामाजिक विज्ञान; बच्चों से संबंधित कानून जैसे क्षेत्रों में ख्याति प्राप्त अनुभवी व्यक्तियों में से की जाएगी।

आयोग के कार्य

  • बाल अधिकारों के संरक्षण के लिये उस समय मौजूद कानून के तहत बचाव की स्थिति संबंधी जाँच और समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन के उपायों की सिफारिश करना।
  • इन रक्षात्मक उपायों की कार्यशैली पर प्रतिवर्ष और ऐसे अन्य अंतरालों पर केंद्र सरकार के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करना जिन्हें आयोग द्वारा उपयुक्त पाया जाए।
  • उक्त मामलों में बाल अधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना और कार्यवाही के संबंध में सिफारिश करना।
  • उन सभी कारकों की जाँच करना जो आंतकवाद, साम्प्रदायिक हिंसा, दंगों, प्राकृतिक आपदाओं, घरेलू हिंसा, एचआईवी/एड्स, अनैतिक व्यापार, दुर्व्यवहार, यंत्रणा और शोषण, अश्लील चित्रण तथा वेश्यावृत्ति से प्रभावित बाल अधिकारों का लाभ उठाने का निषेध करते हैं तथा उपयुक्त सुधारात्मक उपायों की सिफारिश करना।
  • अन्य अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और साधनों का अध्ययन करना तथा मौजूदा नीतियों, कार्यक्रमों एवं बाल अधिकारों पर अन्य गतिविधियों की आवधिक समीक्षा करना तथा बच्चों के सर्वोत्तम हित में इनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये सिफारिशें करना।
  • बाल अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान करना और इस संबंध में जागरूकता फैलाना।
  • किशोर संरक्षण गृह या निवास के अन्य किसी स्थान, बच्चों के लिये बनाए गए संस्थान का निरीक्षण करना या निरीक्षण करवाना, ऐसे संस्थान जो केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकरण के अधीन हैं (इनमें किसी सामाजिक संगठन द्वारा चलाए जाने वाले संस्थान भी शामिल है, जहाँ बच्चों को इलाज, सुधार या संरक्षण के प्रयोजन से रखा या रोका जाता है) तथा इनके संबंध में आवश्यक सुधारात्मक कार्रवाई करना।
  • इस संबंध में प्राप्त शिकायतों की जाँच करना और निम्नलिखित मुद्दों से संबंधित मामलों की स्वप्रेरणा से जानकरी लेना:

♦ बाल अधिकारों से वंचित रखना और उल्लंघन।
♦ बच्चों के संरक्षण और विकास के लिये बनाए गए कानूनों का कार्यान्वयन नहीं करना।
♦ नीति निर्णयों, दिशा-निर्देशों या कठिनाई के शमन पर लक्षित अनुदेशों का गैर-अनुपालन और बच्चों का कल्याण सुनिश्चित करना।

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