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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत की वैक्सीन कूटनीति

  • 23 Jan 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

भारत ने अपने पड़ोसी और प्रमुख साझेदार देशों को कोरोना वायरस (COVID-19) वैक्सीन प्रदान करने का निर्णय लिया है।

  • वैक्सीन की शुरुआती खेप को विशेष विमानों द्वारा भूटान एवं मालदीव भेजा जा चुका है।

भारत की कोरोना वायरस वैक्सीन

  • हाल ही में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने देश में कोरोना वायरस के विरुद्ध वैक्सीन के सीमित उपयोग के लिये ‘कोविशील्ड’ और ‘कोवैक्सीन’ को मंज़ूरी दी है।
    • कोविशील्ड (Covishield): यह ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका द्वारा विकसित कोरोना वायरस वैक्सीन को दिया गया नाम है, जिसे तकनीकी रूप से AZD1222 या ChAdOx 1 nCoV-19 कहा जाता है।
    • कोवैक्सीन (Covaxin): यह भारत की एकमात्र स्वदेशी कोरोना वैक्सीन है, जिसे रोग पैदा करने वाले जीवित सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय कर विकसित किया जाता है।

प्रमुख बिंदु

वैक्सीन कूटनीति

  • अर्थ: वैक्सीन कूटनीति वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति का हिस्सा है, जिसमें एक राष्ट्र अन्य देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये टीकों के विकास या वितरण का उपयोग करता है।
  • सहयोगात्मक प्रयास: इसमें जीवन रक्षक टीकों और संबंधित तकनीकों का संयुक्त विकास किया जाना भी शामिल है, जहाँ विभिन्न देशों के वैज्ञानिक, संबंधित देशों के बीच राजनयिक संबंधों को महत्त्व दिये बिना सहयोग के लिये एक साथ आते हैं।
  • भारत के लिये लाभप्रद: यह भारत को पड़ोसी देशों और संपूर्ण विश्व के साथ अपनी विदेश नीति तथा राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने का एक अभिनव अवसर प्रदान कर सकता है।
    • ज्ञात हो कि इससे पूर्व भारत ने बड़ी संख्या में देशों को महामारी से निपटने के लिये हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, रेमेडिसविर और पैरासिटामोल दवाइयाँ तथा साथ ही डायग्नोस्टिक किट, वेंटिलेटर, मास्क, दस्ताने और अन्य मेडिकल उपकरण प्रदान किये थे।
    • भारत ने कई पड़ोसी देशों के लिये क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण कार्यशालाओं का भी आयोजन किया है। 

भारत की वैक्सीन कूटनीति योजना:

  • मालदीव, भूटान, बांग्लादेश और नेपाल में वैक्सीन की शिपमेंट पहुँचनी शुरू हो गई है, जबकि म्याँमार और सेशेल्स को जल्द ही वैक्सीन की शिपमेंट प्राप्त हो जाएगी।
  • श्रीलंका, अफगानिस्तान और मॉरीशस के मामलों में भारत आवश्यक नियामक मंज़ूरी की पुष्टि का इंतज़ार कर रहा है।
  • भारत की क्षेत्रीय वैक्सीन कूटनीति का एकमात्र अपवाद पाकिस्तान होगा; जिसने एस्ट्रोज़ेनेका वैक्सीन के उपयोग को मंज़ूरी दे दी है, किंतु अभी तक न तो उसने इस संबंध में भारत से अनुरोध किया है और न ही चर्चा की है।

भारत की वैक्सीन कूटनीति का महत्त्व

  • सामरिक महत्त्व
    • दीर्घावधिक ख्याति अर्जित करना: महामारी के कारण आर्थिक मोर्चे पर संकट का सामना कर रहे पड़ोसी देशों के लिये भारत द्वारा दी जा रही वैक्सीन की खेप कई मायनों में काफी महत्त्वपूर्ण है और इससे भारत अपने निकटवर्ती पड़ोसी देशों व हिंद महासागर के देशों में दीर्घकालिक ख्याति अर्जित कर सकेगा।
      • यह भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के अनुरूप है।
    • चीन की तुलना में रणनीतिक बढ़त: हाल ही में चीन ने नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ बहुपक्षीय वार्ता करते हुए उन्हें कोरोना वायरस वैक्सीन देने की पेशकश की थी।
      • पाकिस्तान के अतिरिक्त अन्य सभी देशों में भारत से जल्द वैक्सीन पहुँचने के कारण चीन की वैक्सीन और मास्क कूटनीति का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है।
    • पश्चिमी देशों की तुलना में लाभ: जहाँ एक ओर समृद्ध पश्चिमी देश, विशेष रूप से यूरोप के देश और अमेरिका अपनी विशिष्ट समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वहीं अपने पड़ोसियों और अन्य विकासशील तथा अल्प-विकसित देशों की सहायता करने के लिये भारत की सराहना की  जा रही है।
  • आर्थिक लाभ
    • वैश्विक आपूर्ति केंद्र के रूप में भारत: भारत के निकट पड़ोसियों के अलावा, दक्षिण कोरिया, कतर, बहरीन, सऊदी अरब, मोरक्को और दक्षिण अफ्रीका आदि देशों ने भी भारत से वैक्सीन खरीदने की इच्छा व्यक्त की है, जो कि आने वाले समय में भारत को वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति का एक प्रमुख केंद्र बना सकता है।
    • भारत के फार्मा विनिर्माण क्षेत्र में बढ़ोतरी: यदि भारतीय टीके विकासशील देशों की तत्काल ज़रूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं, तो यह भारतीय फार्मा बाज़ार के लिये दीर्घकालिक अवसर उपलब्ध करा सकता है।
    • अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मददगार: यदि भारत दुनिया में कोरोना वैक्सीन का विनिर्माण केंद्र बन जाता है, तो इससे भारत के आर्थिक विकास पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
  • ‘वैक्सीन शीत युद्ध’ से बचाव
    • अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ‘शीत युद्ध’ में कोरोना वायरस वैक्सीन को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा रहा था, जिसके कारण प्रायः वैक्सीन टीकाकरण कार्यक्रम में देरी हो रही थी। इस प्रकार भारत द्वारा टीकों की शुरुआती शिपमेंट को इस द्विध्रुवी विवाद से बचाव के रूप में देखा जा सकता है।
  • नैतिक अधिकार प्राप्त करने में सहायक
    • भारत द्वारा वैक्सीन वितरण कार्यक्रम ऐसे समय में संचालित किया जा रहा है, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक ने विकसित देशों के दवा निर्माताओं के नैतिक भ्रष्टाचार की आलोचना की है। ऐसे में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अधिक-से-अधिक नैतिक अधिकार मिल सकते हैं।
  • वैक्सीन राष्ट्रवाद में बाधा
    • ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ का आशय उस तंत्र से है, जिसके माध्यम से एक देश पूर्व-खरीद समझौतों का प्रयोग करते हुए अपने स्वयं के नागरिकों या निवासियों के लिये वैक्सीन की खुराक को सुरक्षित करता है और अन्य देशों को वैक्सीन देने से पूर्व अपने घरेलू बाज़ारों को प्राथमिकता देता है।
    • वैक्सीन राष्ट्रवाद का मुख्य दोष यह है कि इसके कारण प्रायः कम संसाधन वाले देशों को नुकसान का सामना करना पड़ता है। ज़रूरतमंद देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराकर भारत ने ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ के तंत्र को बाधित किया है।

वैश्विक सहयोग को सक्षम बनाना: 

  • भारत द्वारा वैक्सीन की आपूर्ति WHO समर्थित कोवाक्स (COVAX) सुविधा तंत्र के माध्यम से किये जा रहे वैश्विक सहयोग को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

आगे की राह:  

  • भारत को COVID-19 वैक्सीन की घरेलू ज़रूरत और अपनी कूटनीतिक प्रतिबद्धताओं में  संतुलन स्थापित करना होगा। ज्ञात हो कि 16 जनवरी, 2021 को शुरू हुआ भारत का COVID-19 टीकाकरण अभियान विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान है। भारत के लिये बड़ी चुनौती यह होगी कि वह विश्व को वैक्सीन की आपूर्ति करने के साथ ही अपने उन नागरिकों के लिये भी वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित करे, जो इसकी लागत को वहन करने में सक्षम नहीं हैं।   

स्रोत: द हिंदू

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