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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत हेग संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा

  • 09 Jun 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

काफी विचार-विमर्श के बाद, केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय बाल अपहरण (1980) के नागरिक पहलुओं पर आधारित हेग संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा। इस बहुपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर करने का मतलब यह होगा कि सरकार को उन महिलाओं को विदेशों में वापस भेजना होगा, जो अनुपयुक्त विवाह से बचते हुए अपने बच्चों को भारत में निवास के लिये लाई हैं।

बच्चों के अभिभावकीय अपहरण की चिंता

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अंतर्राष्ट्रीय बाल अपहरण विधेयक, 2016 के नागरिक पहलुओं पर अपना मसौदा जारी किया।
  • संधि पर हस्ताक्षर करने के लिये सरकार पर अमेरिका से बहुत अधिक दबाव रहा है, हालाँकि सरकार ने लंबे समय से यह विचार किया है कि संधि पर हस्ताक्षर करने का निर्णय वैवाहिक विवाद या घरेलू हिंसा से बचने वाली महिलाओं के उत्पीड़न का कारण बन सकता है।
  • अगर भारत इस पर हस्ताक्षर करता है तो वह जापान के उदाहरण का पालन करेगा तथा उसे हेग संधि में प्रवेश करने से पहले सुरक्षा उपायों पर ध्यान देना होगा|
  • इन सबके बावजूद सरकार अभी हेग संधि पर हस्ताक्षर करने के लिये तैयार नहीं है। सरकार का विचार विधि आयोग द्वारा दी गई सिफारिशों के विपरीत है, जिसमें हेग कन्वेंशन में प्रवेश करने का समर्थन किया गया है।
  • भारतीय महिलाओं में ऐसे मामले अधिक दिखाई देते हैं जो अनुपयुक्त विवाह के कारण अक्सर भारत सुरक्षित लौट आती हैं।
  • ऐसी महिलाएँ जो विदेशी नागरिक हैं तथा जिन्होंने भारतीय पुरुषों से शादी की है उनकी अपने बच्चों को छोड़कर वापस विदेश चले जाने की संभावना अधिक होती है|
  • इसलिये हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने से भारतीय महिलाओं को नुकसान होगा। इसके अलावा, जैसा कि हम सभी जानते है इस तरह के अधिकांश मामलों में पुरुषों की बजाय महिलाएँ सबसे अधिक प्रभावित होती हैं|
  • मंत्रालय के मुताबिक, हेग कन्वेंशन को मंज़ूरी देने का मामला संयुक्त राज्य अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों के समूहों द्वारा लॉबिंग के बाद लिया गया था।
  • अंतर्राष्ट्रीय अभिभावक अपहरण में शामिल कानूनी मुद्दों की जाँच करने के लिये केंद्र द्वारा गठित एक समिति ने हेग कन्वेंशन के केंद्रीय प्रावधान का विरोध करते हुए अप्रैल में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • जिसमें कहा गया है कि बच्चे के निवास स्थान का मानदंड, जिसका प्रयोग यह निर्धारित करने के लिये किया जाता है कि क्या बच्चे को माता-पिता द्वारा गलत तरीके से ले जाया गया था और साथ ही बच्चे को निवास स्थान के देश में वापस करना बच्चे के हित में नहीं था|

नोडल निकाय  

  • मंत्रालय ने बच्चों के हिरासत के साथ-साथ ऐसे विवादों से निपटने के लिये मॉडल कानून पर निर्णय लेने हेतु एक नोडल निकाय के रूप में कार्य करने के लिये चाइल्ड रिमूवल डिस्प्यूट रीज़ोल्यूशन अथॉरिटी की स्थापना की भी सिफारिश की।
  • हालाँकि, सरकार न्यायिक विशेषज्ञों के साथ ऐसे मामलों पर निर्णय लेने की ज़िम्मेदारी बच्चों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय आयोग को सौंपने पर विचार कर रही है।

क्या है अंतर्राष्ट्रीय बाल अपहरण के नागरिक पहलुओं को लेकर 1980 का हेग कन्वेंशन?  

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जो उन बच्चों की त्वरित वापसी को सुनिश्चित करती है, जिनका "अपहरण" कर उन्हें उस जगह पर रहने से वंचित कर दिया गया है, जहाँ वे रहने के अभ्यस्त हैं। 
  • अब तक 97 देश इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव के बावजूद भारत ने अभी तक इस कन्वेंशन की पुष्टि नहीं की है। 
  • कन्वेंशन के तहत हस्ताक्षर करने वाले देशों को उनके अभ्यस्त निवास स्थान से गैर-कानूनी ढंग से निकाले गए बच्चों का पता लगाने और उनकी वापसी को सुनिश्चित करने के लिये एक केंद्रीय प्राधिकरण का निर्माण करना होगा। 
  • मान लिया जाए कि किसी देश ने हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किये हैं और इस मसले पर उस देश का अपना कानून कोई अलग राय रखता हो तो भी उसे कन्वेंशन के नियमों के तहत ही कार्य करना होगा|

भारत हेग-कन्वेंशन पर हस्ताक्षर क्यों नहीं करना चाहता है? 

  • इस कन्वेंशन को लेकर पहला विवाद इसके नाम से ही संबंधित है। ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल अपहरण के नागरिक पहलुओं को लेकर 1980 का हेग कंवेंशन’ उन बच्चों की बात करता है, जिनका ‘अपहरण’ किया गया है। 
  • इस मुद्दे पर विचार करने के दौरान विधि आयोग ने भी कहा था कि कैसे कोई माता-पिता अपने ही बच्चे का ‘अपहरण’ कर सकते हैं।  
  • विदित हो कि विदेशी न्यायालयों द्वारा दिये गए निर्णय, भारत के लिये बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन अब हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने के उपरांत हम स्वयं के कानूनों के तहत फैसला लेने के बजाय अंतर्राष्ट्रीय नियमों को मानने के लिये बाध्य हो जाएंगे। 
  • शादी के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों में बसने वाली कई महिलाओं का उनके पतियों द्वारा बहिष्कार कर दिया जाता है। ऐसे में वे अपने बच्चों के साथ भारत में रहने लगती हैं। यदि भारत ने इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किया तो उन्हें अपने बच्चों के बिना रहना होगा।
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