दृष्टि आईएएस अब इंदौर में भी! अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें |   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2020

  • 30 Jan 2021
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में टाटा ट्रस्ट ने सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज़, दक्ष (DAKSH), विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और राष्ट्रमंडल मानव अधिकार पहल के सहयोग से इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2020 (India Justice Report-2020) जारी की है।

  • यह रिपोर्ट विभिन्न राज्यों की न्याय करने की क्षमता का आकलन करती है।

प्रमुख बिंदु:

रिपोर्ट के संबंध में:

  • रिपोर्ट में 1 करोड़ से अधिक आबादी वाले 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों तथा 7 छोटे राज्यों में व्यय, रिक्तियों, महिलाओं का प्रतिनिधित्व, मानव संसाधन, बुनियादी ढाँचा, कार्यभार, विविधता का विश्लेषण किया गया है।

रिपोर्ट के अन्य प्रमुख बिंदु:

  • समग्र रैंकिंग:
    • समग्र रैंकिंग न्याय वितरण प्रणाली के चार स्तंभों- न्यायपालिका, पुलिस, जेल और कानूनी सहायता में राज्य की रैंकिंग को दर्शाती है।
    • 18 राज्यों में महाराष्ट्र लगातार दूसरी बार शीर्ष स्थान पर रहा, उसके बाद तमिलनाडु और तेलंगाना थे तथा सबसे अंतिम स्थान पर उत्तर प्रदेश रहा।
    • छोटे राज्यों में गोवा शीर्ष स्थान पर कायम रहा और सबसे निचले स्थान पर अरुणाचल प्रदेश रहा।
  • पुलिस बल में महिला अनुपात:
    • बिहार राज्य पुलिस बल में 25.3% महिलाओं को रोजगार देने के साथ 25 राज्यों की सूची में शीर्ष पर है।
      • पुलिस बल में 20% से अधिक महिलाओं की भागीदारी वाला यह एकमात्र राज्य है। हालाँकि अधिकारी श्रेणी में केवल 6.1% महिलाएँ हैं।
    • तमिलनाडु में महिला पुलिस अधिकारियों का उच्चतम प्रतिशत (24.8%) है, इसके बाद मिज़ोरम (20.1%) का स्थान है।
  • न्यायपालिका में महिला अनुपात:
    • कुल मिलाकर देश भर के उच्च न्यायालयों में केवल 29% न्यायाधीश महिलाएँ हैं, लेकिन सिक्किम को छोड़कर किसी भी राज्य में 20% से अधिक महिला न्यायाधीश नहीं हैं।
    • चार राज्यों- बिहार, उत्तराखंड, त्रिपुरा और मेघालय उच्च न्यायालयों में कोई महिला न्यायाधीश नहीं है।
  • सामाजिक न्याय
    • कर्नाटक एकमात्र राज्य है, जो अधिकारी कैडर और पुलिस बल दोनों के लिये एससी, एसटी एवं ओबीसी हेतु अपना कोटा पूरा करता है।
    • छत्तीसगढ़ एकमात्र अन्य राज्य है जो पुलिस बल की विविध आवश्यकताओं को पूरा करता है।
  • वित्त का अभाव:
    • पिछले 25 वर्षों में केंद्र द्वारा केवल 2019-20 में 1.5 करोड़ लोगों को प्रति व्यक्ति 1.05 रुपए की कानूनी सहायता प्रदान की गई है। 
  • अंडरट्रायल मामलों की अधिकता:
    • सभी कैदियों में से लगभग दो-तिहाई कैदी दोषसिद्धि के विचाराधीन हैं।
      • एक व्यक्ति जिसे हिरासत में रखा गया हो वह अपने अपराध के लिये मुकदमे की प्रतीक्षा करता है।
  • न्याय में देरी का कारण:
    • कानूनी सेवा संस्थानों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, असमान मानव संसाधन वितरण, केंद्रीय निधियों के अनियमित उपयोग और न्यायपालिका पर बोझ आदि कारण लोक अदालतों को प्रभावित करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow