जयपुर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 7 अक्तूबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत का पहला सौर मिशन

  • 28 Jan 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आदित्य-L1 मिशन, (लग्रेंजियन/लग्रेंज पॉइंट 1), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), सूर्य के लिये मिशन।

मेन्स के लिये:

आदित्य-L1 मिशन का महत्त्व, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, इसरो का सूर्य के लिये अंतरिक्ष मिशन।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिज़िक्स ने विज़िबल लाइन एमिशन कोरोनग्राफ, आदित्य-L1 पर मुख्य पेलोड को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन को सौंप दिया।

  • ISRO सूर्य और सौर कोरोना (Solar Corona) का निरीक्षण करने के लिये जून या जुलाई 2023 तक सूर्य का निरीक्षण करने वाला पहला भारतीय अंतरिक्ष मिशन आदित्य-L1 शुरू करने की योजना बना रहा है।

Anatomy

आदित्य-L1 मिशन:

  • प्रक्षेपण यान:  
    • आदित्य L1 को 7 पेलोड (उपकरणों) के साथ ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle- PSLV) का उपयोग करके लॉन्च किया जाएगा। 
    • 7 पेलोड के अंतर्गत निम्नलिखित शामिल हैं: 
      • VELC 
      • सौर पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT)
      • सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS)
      • आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX)
      • हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS)
      • आदित्य के लिये प्लाज़्मा विश्लेषक पैकेज (PAPA)
      • उन्नत त्रि-अक्षीय उच्च रिज़ॉल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर 
  • उद्देश्य:  
    • आदित्य L1 सूर्य के कोरोना, सूर्य के प्रकाश मंडल, क्रोमोस्फीयर, सौर उत्सर्जन, सौर तूफानों और सौर प्रज्वाल (Solar Flare) तथा कोरोनल मास इजेक्शन (CME) का अध्ययन करेगा और पूरे समय सूर्य की इमेजिंग करेगा।
      • यह मिशन ISRO द्वारा L1 कक्षा में लॉन्च किया जाएगा जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी. दूर है। आदित्य-L1 इस कक्षा से लगातार सूर्य का अवलोकन कर सकता है।

‘लैग्रेंजियन पॉइंट-1’

  • L1 का अर्थ ‘लैग्रेंजियन/‘लैग्रेंज पॉइंट-1’ से है, जो पृथ्वी-सूर्य प्रणाली के ऑर्बिट में स्थित पाँच बिंदुओं में से एक है। 
    • ‘लैग्रेंज पॉइंट्स’ का आशय अंतरिक्ष में स्थित उन बिंदुओं से होता है, जहाँ दो अंतरिक्ष निकायों (जैसे- सूर्य और पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आकर्षण एवं प्रतिकर्षण का क्षेत्र उत्पन्न होता है।
  • इन बिंदुओं का उपयोग प्रायः अंतरिक्षयान द्वारा अपनी स्थिति बरकरार रखने के लिये आवश्यक ईंधन की खपत को कम करने हेतु किया जा सकता है।
  • ‘लैग्रेंजियन पॉइंट-1’ पर स्थित कोई उपग्रह अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण ग्रहण अथवा ऐसी ही किसी अन्य बाधा के बावजूद सूर्य को लगातार देखने में सक्षम होता है। 
  • नासा की सोलर एंड हेलिओस्फेरिक ऑब्ज़र्वेटरी सैटेलाइट (SOHO) L1 बिंदु पर ही स्थित है। यह सैटेलाइट नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) और यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) की एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परियोजना है।

Lagrangian-points

VELC पेलोड की विशेषताएँ और महत्त्व:

  • विशेषताएँ: 
    • VELC सूर्य के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिये डिज़ाइन किये गए सात उपकरणों में मुख्य पेलोड होगा और यह भारत में निर्मित सबसे सटीक उपकरणों में से एक है
    • इसकी संकल्पना और डिज़ाइन में 15 वर्ष लग गए जो सौर खगोल भौतिकी से संबंधित रहस्यों को सुलझाने में मदद करेगा। 
  • महत्त्व:  
    • यह कोरोना के तापमान, वेग और घनत्व के अध्ययन के साथ-साथ उन प्रक्रियाओं के अध्ययन में सहायता करेगा जो कोरोना तापन और सौर पवन त्वरण का परिणाम है। यह अंतरिक्ष मौसम चालकों के अध्ययन के साथ-साथ कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र के मापन एवं कोरोनल मास इजेक्शन के विकास और उत्पत्ति के अध्ययन में भी मदद करेगा।

सूर्य के संदर्भ में अन्य मिशन:

  • नासा पार्कर सोलर प्रोब: इसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि सूर्य के कोरोना के माध्यम से ऊर्जा और गर्मी कैसे संचालित होती है, साथ ही सौर हवा के त्वरण के स्रोत का अध्ययन करना है।
    • यह नासा के 'लिविंग विद ए स्टार' कार्यक्रम का हिस्सा है जो सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करता है।
  • हेलियोस 2 सोलर प्रोब: पहले का हेलियोस 2 सोलर प्रोब, नासा और पूर्ववर्ती पश्चिम जर्मनी की अंतरिक्ष एजेंसी के बीच एक संयुक्त उद्यम था, जो वर्ष 1976 में सूर्य की सतह के 43 मिलियन किमी. के दायरे में गया था।
  • सोलर ऑर्बिटर: डेटा एकत्र करने के लिये ESAऔर NASA के बीच एक संयुक्त मिशन जो हेलियोफिज़िक्स के एक केंद्रीय प्रश्न का उत्तर देने में मदद करेगा, जैसे- सूर्य पूरे सौरमंडल में लगातार बदलते अंतरिक्ष वातावरण को कैसे निर्मित और नियंत्रित करता है।
  • सूर्य की निगरानी करने वाले अन्य सक्रिय अंतरिक्षयान: उन्नत संरचना एक्सप्लोरर (ACE), इंटरफेस रीजन इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ (IRIS), विंड(WIND), हिनोड(Hinode), सौर गतिशीलता वेधशाला और सौर स्थलीय संबंध वेधशाला (STEREO)। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की है? (2016)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2