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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-आर्मेनिया संबंध

  • 30 Dec 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आर्मेनिया की अवस्थिति

मेन्स के लिये:

भारत-आर्मेनिया संबंध

चर्चा में क्यों?

आर्मेनिया और भारत वर्ष 2022 में द्विपक्षीय राजनयिक संबंधों की 30वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं। 

Armenia

ऐतिहासिक संबंध: 

  • आर्मेनिया और भारत के बीच सक्रिय राजनीतिक संबंध हैं। अंतर्राष्ट्रीय निकायों के तहत दोनों देशों के बीच प्रभावी सहयोग है।
  • वर्ष 1991 में आर्मेनिया की स्वतंत्रता के बाद आर्मेनिया-भारत संबंधों को फिर से स्थापित किया गया।
  • वर्ष 1992 में आर्मेनिया गणराज्य और भारत के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए।
  • वर्ष 1999 में येरेवन में भारतीय दूतावास स्थापित किया गया।
  • यदि आर्मेनिया-भारत राजनीतिक संबंधों का "उत्कृष्ट" के रूप में मूल्यांकन किया जाए, तो आर्मेनिया एकमात्र स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रमंडल (CIS) देश है, जिसके साथ भारत के वर्ष 1995 में (रूस के अलावा) राजनयिक संबंध थे।
    • CIS की स्थापना वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद हुई थी।
    • वर्तमान में CIS में शामिल देश हैं: अज़रबैजान, आर्मेनिया, बेलारूस, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, मोल्दोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान और यूक्रेन।
  • भारत और आर्मेनिया ने वर्ष 1995 में मित्रता और सहयोग पर एक संधि पर हस्ताक्षर किये।
  • लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग को पर्याप्त नहीं माना जा सकता है।

दोनों देशों के बीच सहयोग के क्षेत्र:

  • रक्षा संबंध:
    • आर्मेनिया ने 2020 के युद्ध से पहले ही भारतीय सैन्य उपकरण में दिलचस्पी दिखाई थी। 
    • वर्ष 2020 में आर्मेनिया ने चार वेपन लोकेटिंग रडार (WLR) यानी स्वाति रडार की आपूर्ति के लिये भारत के साथ 40 मिलियन अमेरिकी  डॉलर के हथियारों के सौदे पर हस्ताक्षर किये
    • अक्तूबर 2022 में भारत ने आर्मेनिया के साथ मिसाइल, रॉकेट और गोला-बारूद के निर्यात के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। 
  • आपूर्ति शृंखला और अर्थव्यवस्था:
    • आर्मेनिया वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की प्रतियोगिता में, यूरेशियन कॉरिडोर, जो फारस की खाड़ी से रूस और यूरोप तक फैला हुआ है, केंद्र के लिये एक संभावित स्थान प्रदान कर सकता है।
    • आर्मेनिया कृषि, फार्मास्यूटिकल्स, विनिर्माण और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भारत की उन्नति में एक योग्य भागीदार भी साबित हो सकता है।
    • यह सहयोग ऋणग्रस्त चीनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव मॉडल के लिये एक उत्कृष्ट विकल्प प्रदान कर सकता है।
    • यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आर्मेनिया द्वारा भारतीय रक्षा हार्डवेयर की बढ़ती खरीद से अंततः भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के रक्षा विनिर्माण दोनों को प्रोत्साहन मिलेगा।

भारत के लिये आर्मेनिया का महत्त्व:

  • अखिल-तुर्कवाद का मुकाबला:
    • अंकारा से प्रशासित एक अखिल-तुर्क साम्राज्य स्थापित करने की तुर्की की शाही महत्त्वाकांक्षा वर्तमान काकेशस और यूरेशिया के अन्य हिस्सों में देखी जा सकती है।
    • नस्लवादी सिद्धांत एक साम्राज्य की कल्पना करता है जिसमें सभी राष्ट्र और क्षेत्र शामिल होते हैं जो तुर्की भाषा बोलते हैं, उन भाषाओं और तुर्की में बोली जाने वाली भाषाओं के बीच अंतर की सीमा के साथ-साथ क्षेत्रों की संबंधित आबादी के अनुमोदन की उपेक्षा करते हैं।
    • आर्मेनिया को सैन्य उपकरण के हालिया निर्यात के साथ नई दिल्ली ने खुले तौर पर खुद को नागोर्नो-काराबाख संघर्ष में आर्मेनियाई पक्ष में रखा है, इसलिये भारत ने तुर्की और पाकिस्तान सहित अज़रबैजान एवं उसके समर्थकों के साथ-साथ अंकारा की विस्तारवादी अखिल-तुर्की महत्त्वाकांक्षा का मुकाबला करने के लिये आर्मेनिया का पक्ष लिया है।
  • भू-सामरिक लाभ: 
    • एक सहयोगी के रूप में पाकिस्तान, अज़रबैजान के संघर्षों में सेना तथा सैन्य साजो-सामान की आपूर्ति करता रहा है
    • इसी प्रकार अज़रबैजान ने भी इस्लामाबाद में अपने साझेदारों को भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और भू-रणनीतिक लाभ प्रदान किये है।
    • अर्मेनिया में अज़रबैजान की सफलता से पाकिस्तान अत्यधिक सक्रिय हो जाएगा जिसके घातक परिणाम हो सकते हैं।
    • अर्मेनियाई क्षेत्र पर ज़बरन अधिग्रहण करने का उद्देश्य तुर्की, अज़रबैजान, पाकिस्तान तथा तुर्की-उन्मुख राष्ट्रों से लेकर चीन तक तक अबाध पहुँच हासिल करना है।
      • सैन्य साजो-सामान तथा गोला-बारूद को कश्मीर की सीमा तक पहुँचाने के लिये इस मार्ग का उपयोग किया जा सकता है।
    • इसे रोकने के लिये भारत अपने सैन्य कौशल और क्षमताओं के रूप में आर्मेनिया की सहायता कर सकता है ताकि वह अज़रबैजान की सैन्य ताकत से स्वयं से सुरक्षित रख सके।
  • आर्थिक सहयोग: 

आगे की राह

  • आर्मेनिया-भारत सहयोग विकसित लोकतंत्रों के साथ आर्मेनिया के लिये व्यापक संपर्कों का एक अभिन्न अंग बन सकता है। इन उद्देश्यों के लिये उच्च-गुणवत्ता और सूक्ष्म कूटनीति अनिवार्य है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की संरचना भी बदल रही है, जिससे संभावित खतरे और अवसर दोनों पैदा हो रहे हैं।
  • इन बदलते वैश्विक संबंधों के परिदृश्य में आर्मेनिया को विदेशी संबंधों के गहरे विविधीकरण की आवश्यकता है।
  • पश्चिमी देश इस दिशा में महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता बन सकते हैं।
  • समान मूल्यों को साझा करके आर्मेनिया और राज्यों का समुदाय एक साथ मिलकर काम करने में सक्षम होंगे।
    • यह सहयोग का महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो आधुनिकीकरण के सिद्धांत, संस्थागतकरण और संभवतः राष्ट्रीय रक्षा को मज़बूत करने के सक्रिय कार्यान्वयन को सुनिश्चित करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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