इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

RTI जवाबदेही रिपोर्ट कार्ड

  • 30 Dec 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, केंद्रीय सूचना आयोग, SIC, सतर्क नागरिक संगठन।

मेन्स के लिये:

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, पारदर्शिता और जवाबदेही।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सतर्क नागरिक संगठन (SNS) ने सूचना का अधिकार (Right to Information- RTI) अधिनियम 2021-22 के तहत जवाबदेही रिपोर्ट कार्ड जारी किया है, जो दर्शाता है कि तमिलनाडु RTI जवाबदेही में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है, जिसकी निपटान दर 14% है।

प्रमुख बिंदु 

  • महाराष्ट्र RTI जवाबदेही में दूसरा सबसे खराब स्थिति वाला राज्य है, जिसकी निपटान दर 23% है।
  • इस मूल्यांकन के भाग के रूप में दायर RTI आवेदनों के जवाब में केवल 10 सूचना आयुक्तों ने पूरी जानकारी प्रदान की। इनमें आंध्र प्रदेश, हरियाणा, झारखंड और पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम, नगालैंड और त्रिपुरा शामिल थे।
  • बिहार राज्य सूचना आयुक्त (State Information Commissioner- SIC), जो वर्ष 2020 और 2021 में प्रकाशित आकलन के लिये RTI अधिनियम के तहत कोई भी जानकारी प्रदान करने में विफल रहा था, ने अपने प्रदर्शन में काफी सुधार किया और इसकी निपटान दर 67% है।
  • देश भर में बड़ी संख्या में सूचना आयुक्तों ने बिना कोई आदेश पारित किये मामले वापस कर दिये थे।
    • उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश ने प्राप्त अपीलों या शिकायतों में से लगभग 40% को वापस कर दिया।
    • 18 सूचना आयुक्तों में से 11 ने बिना कोई आदेश पारित किये अपील या शिकायत वापस कर दी थी।
  • सूचना आयुक्तों के संदर्भ में प्रति आयुक्त निपटान की दर बेहद कम है।  
    • उदाहरण के लिये पश्चिम बंगाल के SIC के पास मामलों की वार्षिक औसत निपटान दर प्रति आयुक्त 222 थी, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक आयुक्त प्रभावी रूप से एक दिन में मुश्किल से एक मामले का निपटान कर रहा था। वैसे लंबित मामलों की संख्या 10,000 से भी अधिक थी।
  • सभी 29 सूचना आयुक्तों में से केवल केंद्रीय सूचना आयुक्त ने एक वर्ष में प्रत्येक आयुक्त द्वारा निपटाए जाने वाली अपीलों अथवा शिकायतों की संख्या के संबंध में एक मानक अपनाया है।

Report-Card

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम: 

  • परिचय: 
    • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 सरकारी सूचना के लिये नागरिकों के प्रश्नों के प्रति समयबद्ध जवाबदेही अनिवार्य बनाता है।
    • सूचना का अधिकार अधिनियम का मूल उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना, सरकार के कामकाज़ में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना, भ्रष्टाचार को रोकना तथा वास्तविक अर्थों में हमारे लोकतंत्र का लोगों के लिये कार्य करना है।
  • सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019
    • इसमें प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त (केंद्र के साथ-साथ राज्यों के) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि के लिये पद धारण करेंगे। इस संशोधन से पहले इनका कार्यकाल 5 साल के लिये तय किया गया था।
    • इसमें प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त (केंद्र के साथ-साथ राज्यों के) के वेतन, भत्ते तथा अन्य सेवा संबंधी शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएंगी। 
      • इस संशोधन से पूर्व, मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा संबंधी शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त के समान थीं एवं सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते तथा अन्य सेवा संबंधी शर्तें एक चुनाव आयुक्त (राज्यों के मामले में राज्य चुनाव आयुक्त) के समान थीं।
    • इसने मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त के लिये पेंशन या किसी अन्य सेवानिवृत्ति लाभ के कारण वेतन कटौती से संबंधित खंडों को समाप्त कर दिया, जो उन्हें उनकी सरकारी नौकरी के लिये प्राप्त हुए थे।
    • RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 की आलोचना कानून को कमज़ोर करने और केंद्र सरकार को अधिक शक्तियाँ देने के आधार पर की गई थी।
  • कार्यान्वयन में समस्याएँ:
    • सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा प्रोएक्टिव डिस्क्लोज़र में गैर-अनुपालन।
    • नागरिकों के प्रति लोक सूचना अधिकारियों (Public Information Officers-PIOs) का शत्रुतापूर्ण रवैया और सूचना छिपाने के लिये सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के प्रावधानों की गलत व्याख्या करना।
    • जनहित और निजता के अधिकार के संबंध में स्पष्टता का अभाव।
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और खराब बुनियादी ढाँचा।
    • सार्वजनिक महत्त्व के आवश्यक मामलों पर सक्रिय नागरिकों द्वारा किये गए सूचना अनुरोधों की अस्वीकृति।
    • RTI कार्यकर्त्ताओं और आवेदकों की आवाज़ दबाने के लिये उनके खिलाफ हमलों एवं धमकियों जैसे अन्य साधन।

केंद्रीय सूचना आयोग (CIC):

  • स्थापना: CIC की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह संवैधानिक निकाय नहीं है।
  • सदस्य: इसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त होता है और दस से अधिक सूचना आयुक्त नहीं हो सकते हैं।
  • नियुक्ति: उन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाता है जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
  • कार्यकाल: मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) पद पर रह सकता है।
  • वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।
  • CIC की शक्तियाँ और कार्य:
    • आयोग का कर्तव्य है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत किसी विषय पर प्राप्त शिकायतों के मामले में संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करे।
    • आयोग उचित आधार होने पर किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान (Suo-Moto Power) लेते हुए जाँच का आदेश दे सकता है।
    • आयोग के पास पूछताछ करने हेतु सम्मन भेजने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में सिविल कोर्ट की शक्तियाँ होती हैं।

आगे की राह

  • सूचना आयोगों का उचित कामकाज़ लोगों को सूचना के अधिकार का एहसास कराने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • RTI कानून के तहत सूचना आयोग अंतिम अपीलीय प्राधिकरण हैं तथा लोगों के सूचना के मौलिक अधिकार की सुरक्षा और सुविधा के लिये अनिवार्य हैं।
  • अधिक प्रभावी और पारदर्शी तरीके से कार्य करने के लिये पारदर्शिता प्रहरी की तत्काल आवश्यकता है।
  • डिजिटल RTI पोर्टल (वेबसाइट या मोबाइल एप) अधिक कुशल और नागरिक-अनुकूल सेवाएँ प्रदान कर सकता है जो परंपरागत मोड के माध्यम से संभव नहीं है।
    • यह पारदर्शिता चाहने वालों और सरकार दोनों के लिये फायदेमंद होगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिक सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, यह अनिवार्य रूप से जवाबदेही की अवधारणा को फिर से परिभाषित करता है। चर्चा कीजिये। (2018) 

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2