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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

शंघायी सहयोग संगठन (एससीओ) में स्थायी सदस्य के तौर पर भारत और पाकिस्तान

  • 15 Mar 2017
  • 3 min read

समाचारों में क्यों ?

विदित हो कि हाल ही में चीन की सरकारी मीडिया ने छह सदस्यीय शंघायी सहयोग संगठन (एससीओ) में भारत और पाकिस्तान को शामिल करने की वकालत की है। चीनी दैनिक ग्लोबल टाइम्स के अनुसार इससे दोनों देशों के बीच आतंकवाद के खिलाफ सहयोग बढ़ाने और आपसी मतभेदों को सुलझाने में मदद मिलेगी।

क्या होगा प्रभाव ?

गौरतलब है कि यदि दोनों देश एससीओ की सदस्यता पाने के लिये इसके समझौतों और संधियों का पालन करते हैं तो इससे दोनों के संबंधों में सुधार आने की सम्भावना व्यापक हो जाएगी।

एससीओ की सदस्यता पाने के लिये भारत और पाकिस्तान को न केवल दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने होंगे, बल्कि एससीओ के कानूनों का भी पालन करना होगा। ध्यातव्य है कि इन नियमों में सीमा रक्षा सहयोग समझौता भी शामिल होगा जिस पर एससीओ के सदस्य देशों ने 2015 में हस्ताक्षर किये थे।

उल्लेखनीय है कि एससीओ के प्रावधान के तहत यदि सदस्य देशों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है तो कोई तीसरा सदस्य देश इसकी मध्यस्थता कर सकता है। दोनों देशों के आपसी मतभेदों को दूर करने के लिये एससीओ एक नया मंच साबित हो सकता है।

शंघायी सहयोग संगठन

शंघायी सहयोग संगठन का मुख्यालय बीजिंग में है और चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, तज़ाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान इसके स्थायी सदस्य हैं। वहीं, अफगानिस्तान, बेलारूस, भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान का दर्ज़ा पर्यवेक्षक सदस्यों का है। गौरतलब है कि इस साल जून में कज़ाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में एससीओ की सालाना बैठक में भारत और पाकिस्तान को इसमें पूर्णकालिक सदस्य के रूप में शामिल किये जाने की उम्मीद है।

निष्कर्ष

भारत का एससीओ सदस्यों के साथ शामिल होने का उद्देश्य दक्षिण एशिया क्षेत्र में शांति, सुरक्षा, ऊर्जा व्यापार, नागरिकों के बीच आपसी संबंध और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, होना चाहिये। भारत और पाकिस्तान की एससीओ में सदस्यता से दोनों देशों को सीमा विवाद हल करने में मदद मिलेगी, इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि सदस्य देशों के मध्य लोकतांत्रिक सीमाएँ बनाने में एससीओ मददगार साबित होगा। हालाँकि हो सकता है कि यह यह सिर्फ विचार हो, अतः भारत को भारत-पाक विवाद में तीसरे पक्ष की किसी भूमिका से परहेज़ करना होगा। यदि सदस्य देश अपने दायित्वों का उचित निर्वहन करें तो एससीओ में भारत की सदस्यता संगठन, मध्य एशिया, रूस और चीन के साथ-साथ भारत के लिये भी लाभदायक है।

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