इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

चावल के निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव

  • 03 Nov 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चावल, मानसून, खरीफ और रबी क्रिब्स, खाद्य सुरक्षा, बासमती तथा गैर-बासमती चावल के निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव।

मेन्स के लिये:

चावल के निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव, देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसलों के फसल पैटर्न, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों को जुटाने, वृद्धि, विकास एवं रोज़गार से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

जुलाई 2023 में भारत ने केंद्रीय पूल में सार्वजनिक स्टॉक में कमी, अनाज की ऊँची कीमतों और असमान मानसून के बढ़ते खतरे के बीच गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसने वैश्विक एवं घरेलू स्तर पर कीमतों को प्रभावित किया है।

भारत द्वारा चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के कारण:

  • घरेलू खाद्य सुरक्षा:
    • चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करने से भारत की बड़ी आबादी की खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये देश में विशेष रूप से केंद्रीय पूल में पर्याप्त स्टॉक बनाए रखने में सहायता मिलती है।
    • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023-24 सीज़न में प्रमुख खरीफ फसलों के उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, चावल का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 3.7% कम होने का अनुमान है।
  • बढ़ती घरेलू कीमतें:
    • सरकार ने घरेलू चावल की कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये निर्यात प्रतिबंध लगाए। जब घरेलू बाज़ार में चावल की कमी होती है, तो कीमतें बढ़ने लगती हैं और प्रतिबंध कीमतों को स्थिर करने तथा उपभोक्ताओं को मुद्रास्फीति से बचाने में सहायता कर सकते हैं।
  • मानसून से संबंधित अनिश्चितता:
    • भारत कृषि उत्पादन के लिये मानसून के मौसम पर अत्यधिक निर्भर रहता है। अप्रत्याशित अथवा असमान मानसून फसल की पैदावार को प्रभावित कर सकता है।
    • खराब मॉनसून सीज़न की स्थिति में चावल के स्टॉक को संरक्षित करने के लिये निर्यात प्रतिबंधों को एहतियाती उपाय के रूप में माना गया था।

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध का प्रभाव:

  • चावल की वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव:
    • भारत के चावल प्रतिबंधों से पिछले कुछ महीनों में घरेलू और वैश्विक बाज़ारों में आपूर्ति, उपलब्धता एवं कीमतों पर प्रभाव पड़ा है।
    • भारत द्वारा गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद चावल की वैश्विक कीमतों में तत्काल प्रभाव से पर्याप्त वृद्धि हुई।
    • हालाँकि आगामी महीनों में कीमतों में थोड़ी नरमी आई, किंतु वे कीमतें प्रतिबंध-पूर्व अवधि की तुलना में अभी भी अधिक हैं।
  • घरेलू मूल्य वृद्धि:
    • निर्यात प्रतिबंध के बावजूद भारत में घरेलू चावल की कीमतों में वृद्धि जारी है।
    • अक्तूबर 2023 तक प्रति क्विंटल चावल का औसत थोक मूल्य विगत अवधि की तुलना में काफी अधिक था, जो पिछले महीने की तुलना में 27.43% की वृद्धि दर्शाता है।
    • वर्ष 2022 की तुलना में खुदरा कीमतों में वृद्धि हुई है, अक्तूबर 2023 में प्रति किलोग्राम चावल की औसत कीमत एक वर्ष पहले की तुलना में 12.59% अधिक है तथा सरकार द्वारा निर्यात नियमों को लागू किये जाने की तुलना में 11.72% अधिक है।
  • समग्र आर्थिक प्रभाव:
    • चावल निर्यात पर प्रतिबंधों के दूरगामी आर्थिक परिणाम सामने आए हैं, जिससे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ार प्रभावित हुए हैं।
    • इन परिणामों में कीमतों में उतार-चढ़ाव, वैश्विक व्यापार में व्यवधान और आयात करने वाले देशों में खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव शामिल हैं।

चावल के बारे में मुख्य तथ्य:

  • चावल भारत की अधिकांश आबादी का मुख्य भोजन है।
  • यह एक खरीफ फसल है जिसके लिये उच्च तापमान (25°C से ऊपर), उच्च आर्द्रता और 100 सेमी. से अधिक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
    • न्यून वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे अधिक सिंचाई करके उगाया जाता है।
  • दक्षिणी राज्यों और पश्चिम बंगाल में जलवायु परिस्थितियाँ एक कृषि वर्ष में चावल की दो या तीन फसलें उगाने में सहायक साबित होती हैं।
    • पश्चिम बंगाल के किसान चावल की तीन फसलें उगाते हैं जिन्हें 'औस', 'अमन' और 'बोरो' कहा जाता है।
  • भारत में कुल फसली क्षेत्र के लगभग एक-चौथाई भाग में चावल की खेती की जाती है।
    • अग्रणी उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब।
    • उच्च उपज वाले राज्य: पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल।
  • चीन के बाद भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।

भारत द्वारा चावल का निर्यात:

  • भारत विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) के अनुसार, वर्ष 2022 के दौरान कुल वैश्विक चावल निर्यात (56 मिलियन टन) में भारत का योगदान लगभग 40% था।
  • भारत के चावल निर्यात को मोटे तौर पर बासमती और गैर-बासमती चावल में वर्गीकृत किया गया है।
    • बासमती चावल: सत्र 2022-23 में भारत ने 45.61 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल का निर्यात किया।
      • भारत से बासमती चावल के शीर्ष आयातकों में ईरान, सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और यमन शामिल हैं।
    • गैर-बासमती चावल: वित्त वर्ष 2022-23 में भारत ने 177.91 लाख मीट्रिक टन गैर-बासमती चावल का निर्यात किया।
      • गैर-बासमती चावल में सोना मसूरी और जीरा चावल जैसी किस्में शामिल हैं।
  • गैर-बासमती श्वेत चावल का शीर्ष गंतव्य: बेनिन, मेडागास्कर, केन्या, कोटे डी' आइवर, मोज़ाम्बिक, वियतनाम।
  • देश में गैर-बासमती चावल श्रेणी में 6 उप-श्रेणियाँ शामिल हैं- बीज के गुणों वाले भूसी युक्त चावल; भूसी युक्त अन्य चावल; भूसी (भूरा) चावल; उसना (Parboiled) चावल; गैर-बासमती सफेद चावल; और टूटे हुए चावल।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा देश पिछले पाँच वर्षों के दौरान विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है? (2019)

(a) चीन 
(b) भारत 
(c) म्याँमार 
(d) वियतनाम 

उत्तर: (b)


प्रश्न. जैव ईंधन पर भारत की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किसका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020)

  1. कसावा 
  2. क्षतिग्रस्त गेहूंँ के दाने 
  3. मूंँगफली के बीज 
  4. चने की दाल 
  5. सड़े हुए आलू 
  6. मीठे चुकंदर

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 क्षतिग्रस्त खाद्यान्न जो मानव उपभोग के लिये अनुपयुक्त हैं जैसे- गेहूंँ, टूटे चावल आदि से इथेनॉल के उत्पादन की अनुमति देती है। 
  • यह नीति राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति के अनुमोदन के आधार पर खाद्यान्न की अधिशेष मात्रा को इथेनॉल में परिवर्तित करने की भी अनुमति देती है।
  • यह नीति इथेनॉल उत्पादन में प्रयोग होने वाले तथा मानव उपभोग के लिये अनुपयुक्त पदार्थ जैसे- गन्ने का रस, चीनी युक्त सामग्री- चुकंदर, मीठा चारा, स्टार्च युक्त सामग्री तथा मकई, कसावा, गेहूंँ, टूटे चावल, सड़े हुए आलू के उपयोग की अनुमति देकर इथेनॉल उत्पादन हेतु कच्चे माल के दायरे का विस्तार करती है। अत: 1, 2, 5 और 6 सही हैं।

अत: विकल्प (a) सही उत्तर है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2