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भूगोल

अल नीनो और ला नीना पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • 06 Sep 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

 अल नीनो, ला नीना, अल नीनो-दक्षिणी दोलन

मेन्स के लिये:

अल नीनो और ला नीना घटना पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव एवं इसके वैश्विक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

एक हालिया शोध के अनुसार, जलवायु परिवर्तन अत्यधिक बार अल नीनो और ला नीना घटनाओं की बारंबारता का कारण बन सकता है।

  • यह निष्कर्ष दक्षिण कोरिया के सबसे तेज़ सुपर कंप्यूटरों में से एक ‘एलेफ’ का उपयोग करके प्राप्त किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • हालिया शोध के निष्कर्ष:
    • वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि से भविष्य में अल नीनो-दक्षिणी दोलन’ (ENSO) समुद्र की सतह के तापमान विसंगति के कमज़ोर होने का कारण बन सकता है।
    • जलवाष्प के वाष्पीकरण के कारण भविष्य में अल नीनो की घटनाएँ वातावरण में ऊष्मा को और अधिक तेज़ी से समाप्त करेंगी। इसके अलावा भविष्य में पूर्वी और पश्चिमी उष्णकटिबंधीय प्रशांत के बीच तापमान में अंतर कम होगा, जिससे ENSO चक्र के दौरान चरम तापमान सीमा के विकास में बाधा उत्पन्न होगी।
    • भविष्य में ‘ट्रॉपिकल इंस्टैबिलिटी वेव्स’ (TIWs) का कमज़ोर होना ला नीना घटना के विघटन का कारण बन सकता है।
      • TIWs भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर में मासिक परिवर्तनशीलता की एक प्रमुख विशेषता है।
  • ENSO:
    • अल नीनो-दक्षिणी दोलन, जिसे ENSO के रूप में भी जाना जाता है, समुद्र की सतह के तापमान (अल नीनो) और भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के ऊपर के वातावरण (दक्षिणी दोलन) के वायु दाब में एक आवधिक उतार-चढ़ाव है।
    • अल नीनो और ला नीना भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र के तापमान में बदलाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले जटिल मौसम पैटर्न हैं। वे ENSO चक्र के विपरीत चरण हैं।
    • अल नीनो और ला नीना घटनाएँ आमतौर पर 9 से 12 महीने तक चलती हैं, लेकिन कुछ लंबी घटनाएँ वर्षों तक जारी रह सकती हैं।
  • अल नीनो :
    • परिचय :
      • अल नीनो एक जलवायु पैटर्न है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के असामान्य रूप से तापन की स्थिति को दर्शाता है।
        • यह अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) घटना की "उष्ण अवस्था" है।
        • यह घटना ला नीना की तुलना में अधिक बार होती है।
    • प्रभाव :
      • गर्म जल प्रशांत ज़ेट स्ट्रीम को अपनी तटस्थ स्थिति से दक्षिण की ओर ले जाने का कारण बनता है। इस परिवर्तन के सापेक्ष, उत्तरी अमेरिका और कनाडा के क्षेत्र सामान्य से अधिक शुष्क और उष्ण हो गए हैं। लेकिन अमेरिका के खाड़ी तट एवं दक्षिण-पूर्व में यह अवधि सामान्य से अधिक नमीयुक्त होती है जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ में वृद्धि होती है।
      • अल नीनो के कारण दक्षिण अमेरिका में बारिश अधिक होती है, वहीं इंडोनेशिया एवं ऑस्ट्रेलिया में इसके कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।
      • अल नीनो का गहरा प्रभाव प्रशांत तट से दूर स्थित समुद्री जीवन पर भी पड़ता है।
        • सामान्य परिस्थितियों में अपवेलिंग (Upwelling) के कारण समुद्र की गहराई से ठंडा पोषक तत्त्वों से युक्त जल ऊपरी सतह पर आ जाता है।
        • अल नीनो के दौरान अपवेलिंग प्रक्रिया कमज़ोर पड़ जाती है या पूरी तरह से रुक जाती है जिसके परिणामस्वरूप गहराई में मौज़ूद पोषक तत्त्वों के सतह पर न आ पाने के कारण तट पर स्थित फाइटोप्लैंकटन (Phytoplankton) जंतुओं की संख्या में कमी आती है। यह उन मछलियों को प्रभावित करती है जिनका भोजन फाइटोप्लैंकटन है, साथ ही यह मछली खाने वाले प्रत्येक जीव को प्रभावित करती है।
        • गर्म जल उष्णकटिबंधीय प्रजातियों को भी सतह पर ला सकता है, जैसे- येलोटेल और एल्बाकोर टूना मछली, ये सामान्यत: सर्वाधिक ठंडे क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • ला नीना:
    • परिचय
      • ला नीना, ENSO की ‘शीत अवस्था’ होती है, यह पैटर्न पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र के असामान्य शीतलन को दर्शाता है।
        • अल नीनो की घटना जो कि आमतौर पर एक वर्ष से अधिक समय तक नहीं रहती है, के विपरीत ला नीना की घटनाएँ एक वर्ष से तीन वर्ष तक बनी रह सकती हैं।
        • दोनों घटनाएँ उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दियों के दौरान चरम पर होती हैं।
    • प्रभाव
      • अमेरिका के पश्चिमी तट के पास ‘अपवेलिंग’ बढ़ जाती है, जिससे पोषक तत्त्वों से भरपूर ठंडा पानी सतह पर आ जाता है।
      • दक्षिण अमेरिका के मत्स्य पालन उद्योग पर प्रायः इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
      • यह अधिक गंभीर ‘हरिकेन’ को भी बढ़ावा दे सकता है।
      • यह जेट स्ट्रीम को उत्तर की ओर ले जाने का भी कारण बनता है, जो कि पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में पहुँचकर कमज़ोर हो जाता है।
      • यह पेरू और इक्वाडोर जैसे दक्षिण अमेरिकी देशों में सूखे का भी कारण बनता है।
        • पश्चिमी प्रशांत, हिंद महासागर और सोमालियाई तट के पास तापमान में वृद्धि के कारण ऑस्ट्रेलिया में भी भारी बाढ़ आती है।

El-Nino

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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