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भारतीय अर्थव्यवस्था

IBC सुधार: आय का वितरण

  • 29 Mar 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गैर-निष्पादित संपत्तियाँ (NPA), लिक्विडेशन वैल्यू, नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT), अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCITRAL)।

मेन्स के लिये:

दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), IBC के तहत लेनदारों के बीच वितरित आय।

चर्चा में क्यों?

कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने दिवाला और दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC), 2016 में कई बदलावों का प्रस्ताव दिया है।

IBC में सुझाए गए बदलाव:

  • मंत्रालय का मानना है कि कुछ लेनदार इस बात से चिंतित हैं कि जब किसी कंपनी के ऋणों का समाधान किया जाता है तो उन्हें धन का उचित हिस्सा नहीं प्राप्त होता है।
    • इसे संबोधित करने हेतु यह लेनदारों के बीच धन को वितरित करने के लिये एक निष्पक्ष प्रणाली बनाने का सुझाव देता है।
  • इसमें प्रत्येक लेनदार के दावे के आधार पर धन के वितरण हेतु एक विशिष्ट सूत्र का उपयोग करना शामिल है।
    • परिसमापन मूल्य से अधिक कोई भी अधिशेष सभी लेनदारों के बीच उनके असंतुष्ट दावे के अनुपात में समानुपातिक होगा।

दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016:

  • सरकार ने दिवाला और दिवालियापन से संबंधित सभी कानूनों को समेकित करने और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets- NPA), जो वर्षों से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये एक गंभीर समस्या रही है, से निपटने के लिये IBC, 2016 को लागू किया।
  • दिवाला एक ऐसी स्थिति है जब व्यक्ति या कंपनियाँ अपना बकाया कर्ज़ चुकाने में असमर्थ होती हैं।
    • दूसरी ओर दिवालियापन एक ऐसी स्थिति है जिसमें सक्षम क्षेत्राधिकार की न्यायालय किसी व्यक्ति या अन्य संस्था को दिवालिया घोषित करती है और मामले को निपटाने एवं लेनदारों के अधिकारों की रक्षा करने हेतु उचित आदेश जारी करती है। यह एक कानूनी घोषणा है कि संबंधित व्यक्ति या संस्था ऋण चुकाने में असमर्थ है।
  • IBC में सभी व्यक्ति, कंपनियाँ, सीमित देयता भागीदारी (Limited Liability Partnerships- LLP) और साझेदारी फर्म शामिल हैं।
    • न्यायिक प्राधिकरण:
      • कंपनियों और LLP हेतु राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal- NCLT)।
      • व्यक्तियों और साझेदारी फर्मों हेतु ऋण वसूली न्यायाधिकरण (Debt Recovery Tribunal- DRT)।

IBC के तहत लेनदारों के बीच आय के वितरण की विधि:

  • एक कंपनी के विभिन्न लेनदार होते हैं जैसे- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी ऋणदाता, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ, व्यापारिक लेनदार, विक्रेता, काम करने वाले, कर्मचारी, सरकारें आदि।
    • यह सहिंता इन लेनदारों को ऋण की प्रकृति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में रखती है।
  • बैंक, बॉण्ड जारीकर्त्ता और उधारदाताओं को वित्तीय लेनदारों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उधारकर्त्ता कंपनी द्वारा प्रस्तुत सुरक्षा के आधार पर वित्तीय लेनदारों को आगे सुरक्षित एवं असुरक्षित लेनदारों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • इस संहिता की धारा 53 प्राथमिकता के क्रम को निर्धारित करती है जिसमें परिसमापन मूल्य के आधार पर लेनदारों को आय वितरित की जाएगी।
  • इस वॉटरफॉल तंत्र के अनुसार, सुरक्षित वित्तीय लेनदार प्राथमिकता के क्रम में सर्वोच्च स्थान पर हैं। उनके बाद असुरक्षित वित्तीय लेनदार, सरकारी बकाया और अंत में परिचालन लेनदार का स्थान है।
    • इस प्रकार जब तक सभी दावों का पूर्ण भुगतान नहीं किया जाता है, तब तक बैंक जैसे वित्तीय लेनदार प्राथमिक होते हैं। वॉटरफॉल तंत्र में वित्तीय लेनदारों के स्तर पर धन समाप्त हो सकता है, इससे अन्य लेनदारों के लिये लगभग कुछ भी नहीं बचता है।

आय वितरण के विषय में न्यायशास्त्र:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने एस्सार स्टील इंडिया लिमिटेड मामले में लेनदारों को भुगतान करने के तरीके से संबंधित एक मामले पर फैसला सुनाया।
    • राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) ने स्पष्ट किया था कि सभी लेनदारों को समान भुगतान किया जाना चाहिये, भले ही उनके पास प्रतिभूति हो अथवा न हो।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने NCLAT से असहमति जताते हुए कहा कि सुरक्षित लेनदारों को पहले भुगतान किया जाना चाहिये क्योंकि उनके प्रतिभूति ब्याज को संरक्षित करने की आवश्यकता है।
  • संहिता की धारा 30(4) के अनुसार, समाधान योजना को अधिकृत करते समय लेनदारों की समिति द्वारा प्रतिभूति ब्याज के मूल्य को ध्यान में रखा जा सकता है।
  • दिवाला कानून पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (United Nations Commission on International Trade Law- UNCITRAL) के विधायी गाइड का कहना है कि सुरक्षित लेनदार अपनी सुरक्षा के मूल्य के आधार पर भुगतान प्राप्त कर सकते हैं, जबकि असुरक्षित और कनिष्ठ (Junior) लेनदारों को कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा हाल ही में समाचारों में आए 'दबावयुक्त परिसंपत्तियों के धारणीय संरचन पद्धति (स्कीम फॉर सस्टेनेबल स्ट्रक्चरिंग ऑफ स्ट्रेस्ड एसेट्स/S4A)' का सर्वोत्कृष्ट वर्णन करता है?

(a) यह सरकार द्वारा निरूपित विकासपरक योजनाओं की पारिस्थितिकीय कीमतों पर विचार करने की पद्धति है ।
(b) यह वास्तविक कठिनाइयों का सामना कर रही बड़ी कॉर्पोरेट इकाइयों की वित्तीय संरचना के पुनर्संरचन के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक की स्कीम है ।
(c) यह केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के बारे में सरकार की विनिवेश योजना है।
(d) यह सरकार द्वारा हाल ही में क्रियान्वित 'इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड' का एक महत्त्वपूर्ण उपबंध है।

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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