ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

सामाजिक न्याय

भारत में ज़हरीली शराब से होने वाली दुर्घटनाएँ

  • 19 May 2025
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मेथनॉल, इथेनॉल, भारतीय न्याय संहिता, भौगोलिक सूचना प्रणाली, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

मेन्स के लिये:

नकली शराब का मानव शरीर पर प्रभाव, शराब प्रतिबंध के पक्ष और विपक्ष, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

पंजाब के अमृतसर ज़िले में एक बड़ी ज़हरीली शराब त्रासदी में 21 लोगों की मृत्यु हो गई और कई लोग अस्पताल में भर्ती हैं। यह घटना तब हुई जब लोगों ने ज़हरीली शराब पी थी जिसमें अत्यधिक ज़हरीला रसायन मेथनॉल होने का संदेह है।

नोट: हूच (Hooch) शब्द का प्रयोग सामान्यतः खराब गुणवत्ता वाली शराब के लिये किया जाता है, जो हूचिनो नामक अलास्का की एक मूल जनजाति से लिया गया है, जो बहुत ही तीक्ष्ण शराब बनाने के लिये जानी जाती थी।

  • इसका उत्पादन प्रायः अनियमित एवं अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में किया जाता है। कभी-कभी शराब में मेथनॉल (इथेनॉल के साथ एक औद्योगिक अल्कोहल) की उच्च मात्रा होती है, जो अत्यधिक विषैली होती है और इसका सेवन घातक हो सकता है।

मेथनॉल क्या है?

  • परिचय: मेथनॉल, जिसे मिथाइल अल्कोहल, वुड अल्कोहल या वुड स्पिरिट के नाम से भी जाना जाता है, सबसे सरल अल्कोहल अणु है, जिसका रासायनिक सूत्र CH₃OH होता है।
    • मेथनॉल एक रंगहीन, वाष्पशील द्रव है जिसमें हल्का मीठा और तीखा गंध होता है तथा यह जल के साथ पूरी तरह मिश्रित हो जाता है।
  • अनुप्रयोग: यह पेंट, वार्निश और प्लास्टिक में विलायक के रूप में कार्य करता है। यह फॉर्मेल्डिहाइड, एसिटिक एसिड और विभिन्न सुगंधित हाइड्रोकार्बन के उत्पादन में एक प्रमुख कच्चा माल है।
    • मेथनॉल एक एंटीफ्रीज एजेंट तथा ईंधन योजक के रूप में भी कार्य करता है, जो मोटर वाहन और विमानन ईंधन से जल को हटाने में सहायता करता है।
    • इसके अतिरिक्त, यह सतत् ऊर्जा अनुप्रयोगों में एक जैवनिम्नीकरणीय ऊर्जा संसाधन के रूप में प्रमुखता प्राप्त कर रहा है।
  • मानव शरीर पर प्रभाव: मेथनॉल मनुष्यों के लिये अत्यंत विषैला होता है, खासकर यदि इसे निगला जाए। यह यकृत में फॉर्मिक एसिड में टूटता है, जिससे चयापचय एसिडोसिस होता है और रक्त का pH स्तर कम हो जाता है।   
    • यह शरीर की कोशिकाओं में ऑक्सीजन के उपयोग को बाधित करता है, जिससे अंगों को नुकसान पहुँचता है। मेथनॉल ऑप्टिक नर्व को भी क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिससे अंधापन हो सकता है, और मस्तिष्क में सूजन या रक्तस्राव हो सकता है, जो कोमा या मृत्यु का कारण बन सकता है।
  • नियामक ढाँचा: खाद्य सुरक्षा और मानक (मादक पेय पदार्थ) नियम, 2018 में शराबों में मेथनॉल की अधिकतम सीमा निर्धारित की गई है ताकि सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके।
    • मेथनॉल को खतरनाक रसायनों के निर्माण, भंडारण और आयात नियम, 1989 की अनुसूची I में शामिल किया गया है।
    • भारतीय मानक IS 517 मेथनॉल की गुणवत्ता निर्धारण के लिये विनिर्देश प्रदान करता है।

Methanol

भारत में अवैध शराब से होने वाली त्रासदियों के क्या कारण हैं?

  • आर्थिक असुरक्षा और गरीबी: आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोग अक्सर सस्ती और स्थानीय रूप से बनी शराब (हुच) का सहारा लेते हैं क्योंकि वे लाइसेंस प्राप्त, गुणवत्ता वाली शराब खरीदने में सक्षम नहीं होते।
    • हुच की लागत लाइसेंस प्राप्त शराब की तुलना में काफी कम होती है क्योंकि इसमें उत्पाद शुल्क और करों से बचाव किया जाता है।
  • मेथनॉल का व्यापक दुरुपयोग: मेथनॉल एक सस्ता औद्योगिक रसायन है, जिसे अक्सर अवैध शराब में उसकी ताकत बढ़ाने के लिये मिलाया जाता है, जबकि यह अत्यधिक विषैला होता है। अवैध शराब बनाने वाले अक्सर मेथनॉल का उपयोग प्राणघातक हुच बनाने में करते हैं, जैसा कि कई सामूहिक विषाक्तता मामलों में देखा गया है।
    • विनियमन और प्रवर्तन का आभाव: उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1944 और स्थानीय नियमों के बावजूद, प्रवर्तन अक्सर कमज़ोर रहता है, जिससे अवैध शराब निर्माण और वितरण को बढ़ावा मिलता है।
    • शराबबंदी वाले राज्यों (जैसे बिहार, गुजरात) में, अवैध शराब के नेटवर्क भूमिगत रूप से फैलते हैं और कमज़ोर प्रवर्तन का लाभ उठाते हैं।
    • मेथिल अल्कोहल को विष अधिनियम, 1919 में दी गई परिभाषा के अंतर्गत "विष" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, जिससे कानूनी दायित्व की सीमा सीमित हो जाती है।
      • यह कानूनी अंतर ऐसे मामलों के अभियोजन को जटिल बना देता है और विधायी सुधार की आवश्यकता को उजागर करता है।
  • राजनीतिक और नौकरशाही गठजोड़: अवैध शराब के व्यापार में अक्सर राजनीतिक संरक्षण और नौकरशाही की संलिप्तता के आरोप लगाए जाते हैं।
    • राजनीतिक संबंध कभी-कभी अवैध शराब निर्माताओं को संरक्षण प्रदान करते हैं, जिससे कानून प्रवर्तन कार्रवाई में बाधा आती है। रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के कारण तस्कर बिना पुलिस हस्तक्षेप के भय के कार्य करते हैं।
  • जागरूकता का आभाव और सामाजिक कलंक: ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में बिना नियंत्रण वाली शराब के सेवन के खतरों के प्रति जागरूकता का अभाव है।
  • शराब की लत से जुड़ा सामाजिक कलंक भी लोगों को विषाक्तता के लक्षण दिखने पर चिकित्सकीय सहायता लेने से रोकता है।
  • सामुदायिक रिपोर्टिंग तंत्र का अभाव: स्थानीय शराब माफियाओं के भय से समुदाय अवैध शराब उत्पादन की रिपोर्ट करने से बचते हैं।
  • अक्सर ऐसी कोई संरचित प्रणाली नहीं होती है जिसके माध्यम से अधिकारियों को गुमनाम रूप से अवैध शराब की तस्करी की गतिविधियों की सूचना दी जा सके।
  • आपूर्ति शृंखला निगरानी में खामियाँ: मेथनॉल जैसे कच्चे माल की डिजिटल ट्रैकिंग और निगरानी का अभाव, अनियंत्रित वितरण को बढ़ावा देता है।
  • वास्तविक समय ट्रैकिंग तंत्र के अभाव में अवैध शराब बनाने वाली फैक्ट्रियों की पहचान करना कठिन हो जाता है।
  • भारत में अवैध शराब त्रासदियों से संबंधित प्रमुख मामले:
    • मुंबई (वर्ष 2015): मालवानी में मेथनॉल विषाक्तता के कारण लगभग 100 लोगों की मृत्यु हुई।
    • पंजाब (वर्ष 2020): कई ज़िलों में मिलावटी शराब पीने से 100 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।
    • बिहार (वर्ष 2022): शराबबंदी के बावजूद सारण में जहरीली शराब पीने से 40 लोगों की मृत्यु हुई।
    • तमिलनाडु (वर्ष 2024): तमिलनाडु के कल्लाकुरिची में एक अवैध शराब त्रासदी में 50 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।

अवैध शराब की रोकथाम के लिये कानूनी उपाय

  • आबकारी अधिनियम, 1944 शराब के उत्पादन और वितरण को नियंत्रित करता है, जिसमें अवैध निर्माण के लिये दंड का प्रावधान भी शामिल है।
  • बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में पूर्ण शराबबंदी है, फिर भी अवैध शराब की घटनाएँ अभी भी होती हैं।
  • भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 में अवैध शराब से संबंधित मौतों के लिये धारा 103 (हत्या) और 105 (गैर इरादतन हत्या) जैसी विशिष्ट धाराएँ शामिल हैं।
  • शराब का विनियमन भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची, विशेष रूप से राज्य सूची के अंतर्गत आता है, जो राज्यों को इसके उत्पादन, बिक्री और वितरण पर कानून बनाने का विशेष अधिकार देता है। इसलिये शराब से जुड़े कानून अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं।

अवैध शराब से होने वाली त्रासदियों को रोकने के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?

  • प्रभावी प्रवर्तन और निगरानी: ऑपरेशन मूनशाइन (कोच्चि, केरल में संचालित) जैसी पहल, आबकारी, पुलिस और वन विभागों द्वारा समन्वित छापेमारी एवं निगरानी की सफलता को दर्शाती है। 
  • मेथनॉल उत्पादन, बिक्री और परिवहन की निगरानी के लिये रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत एक केंद्रीकृत मेथनॉल ट्रैकिंग पोर्टल लॉन्च किया जाना चाहिये।
  • मेथनॉल आपूर्ति शृंखलाओं का अपरिवर्तनीय खाता बनाने के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग करें, जिससे अवैध शराब उत्पादन को रोका जा सके।
  • अवैध शराब बनाने वाले स्थानों की पहचान के लिये GIS (भौगोलिक सूचना प्रणाली) मैपिंग और सीसीटीवी निगरानी जैसे डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके प्रवर्तन प्रभावकारिता में सुधार किया जा सकता है।
  • जन जागरूकता अभियान: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के अंतर्गत, संवेदनशील क्षेत्रों में नकली शराब और मेथनॉल विषाक्तता के खतरों के बारे में शिक्षित करने हेतु केंद्रित IEC (सूचना, शिक्षा और संचार) अभियान शुरू करना चाहिये।
    • पंचायतों, धार्मिक नेताओं तथा स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को शराब के सेवन को हतोत्साहित करने और अवैध शराब निर्माण की सूचना देने के लिये प्रेरित किया जा सकता है।
  • सस्ती, गुणवत्ता-नियंत्रित शराब तक पहुँच: कराधान को युक्तिसंगत बनाने के साथ सुरक्षित, विनियमित शराब की उपलब्धता सुनिश्चित करने से नकली शराब की मांग में कमी लाई जा सकती है।
  • सामाजिक-आर्थिक सहायता और वैकल्पिक आजीविका: अवैध शराब के उपभोग या उत्पादन पर आर्थिक निर्भरता को कम करने के क्रम में दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) के तहत प्रभावित समुदायों को कौशल विकास कार्यक्रमों में एकीकृत करना चाहिये।
    • अवैध शराब के शिकार लोगों के बच्चों को शैक्षिक छात्रवृत्ति के साथ स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना चाहिये।
  • पुलिस और आबकारी अधिकारियों की जवाबदेहिता: अवैध शराब के व्यापार पर अंकुश लगाने से संबंधित स्पष्ट मानदंडों के साथ पुलिस एवं आबकारी विभागों हेतु एक लेखा परीक्षा प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये।
    • लापरवाह या दोषी पाए गए अधिकारियों के विरुद्ध कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देश और सर्वोत्तम प्रथाएँ: शराब के हानिकारक उपयोग को कम करने के क्रम में इसकी उपलब्धता को नियंत्रित करने, मूल्य निर्धारण नीतियों के माध्यम से मांग को कम करने तथा अवैध शराब उत्पादन को रोकने पर केंद्रित WHO की वैश्विक रणनीति (2010) का अनुसरण करना चाहिये।
    • सतत् विकास लक्ष्य संख्या (SDG) 3.5 मादक द्रव्यों के सेवन की रोकथाम एवं संबंधित उपचार को उन्नत करने पर केंद्रित है।

निष्कर्ष

भारत में बार-बार होने वाली शराब संबंधी त्रासदियाँ सामाजिक-आर्थिक पहलुओं के साथ शासन विफलता की परिचायक हैं। अमृतसर की घटना से इसके सख्त विनियमन, जन जागरूकता, प्रवर्तन संबंधी जवाबदेही तथा सामुदायिक भागीदारी को शामिल करते हुए इस संदर्भ में एक समन्वित दृष्टिकोण को अपनाने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है ताकि अवैध शराब के व्यापार को बढ़ावा देने वाले दुष्चक्र को तोड़ा जा सके।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: शराब से होने वाली दुर्घटनाओं में मेथनॉल विषाक्तता को एक प्रमुख लोक स्वास्थ्य संकट के रूप में देखा जा रहा है। इसे हल करने के लिये कौन से निवारक तंत्र स्थापित किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से किसमें 'ट्राइक्लोसन' के विद्यमान होने की सर्वाधिक संभावना है, जिसके लंबे समय तक उच्च स्तर के प्रभावन में रहने को हानिकारक माना जाता है? (2021)

(A) खाद्य परिरक्षक
(B) फल पकाने वाले पदार्थ
(C) पुनः प्रयुक्त प्लास्टिक के पात्र
(D) प्रसाधन सामग्री

उत्तर: D

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2